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Jamshedpur laborers strike : जमशेदपुर में दो दिन से हड़ताल पर दिहाड़ी मजदूर, ठेकेदार पर मारपीट का आरोप

by Anand Mishra
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Jamshedpur (Jharkhand) : जमशेदपुर शहर के मेहनतकश दिहाड़ी मजदूरों का धैर्य अब जवाब दे गया है। पिछले दो दिनों से इन मजदूरों ने काम का बहिष्कार कर दिया है, अपनी रोजी-रोटी की तलाश को लेकर एक स्थायी ठिकाना और महंगाई के इस दौर में अपनी दैनिक मजदूरी में बढ़ोतरी की पुरजोर मांग कर रहे हैं। मजदूरों का कहना है कि कमरतोड़ महंगाई ने उनके जीवन को दूभर बना दिया है, जबकि उनकी मजदूरी जस की तस बनी हुई है।

शहर के मानगो गोलचक्कर, आजाद नगर थाना क्षेत्र के चेपा पुल और रोड नंबर 15 जैसे प्रमुख चौराहों पर हर दिन बड़ी संख्या में पुरुष और महिला मजदूर काम की आस में खड़े रहते हैं। इनमें महिला मजदूर (जिन्हें स्थानीय भाषा में रेजा कहा जाता है) को औसतन 300 से 350 रुपये, पुरुष मजदूरों (लेबर) को 400 रुपये और कुशल राजमिस्त्रियों को 600 से 700 रुपये तक दैनिक मेहनताना मिलता है। मजदूरों की जायज मांग है कि रेजा को कम से कम 500 रुपये, लेबर को 600 रुपये और मिस्त्री को 700 रुपये से अधिक दैनिक मजदूरी मिलनी चाहिए, ताकि वे इस बढ़ती महंगाई में अपने परिवारों का भरण-पोषण ठीक से कर सकें।

इस बीच, मजदूरों ने रोड नंबर 15 पर एक अप्रिय घटना की जानकारी दी है। उनका आरोप है कि एक ठेकेदार ने उनके साथ मारपीट की और उन्हें उस जगह पर खड़े होकर काम ढूंढने से भी रोका। मजदूरों का स्पष्ट आरोप है कि यह ठेकेदार नहीं चाहता कि वे स्वतंत्र रूप से काम खोजें, बल्कि उन्हें जबरन कम पैसों पर काम करने के लिए बाध्य करना चाहता है। इस दबंगई से परेशान होकर मजदूरों ने शनिवार को आजाद नगर थाना प्रभारी से मिलकर लिखित शिकायत दर्ज कराई है। उन्होंने पुलिस से मांग की है कि उन्हें शहर में एक स्थायी जगह आवंटित की जाए, जहां वे बिना किसी डर के शांतिपूर्वक खड़े होकर अपने लिए रोजगार तलाश सकें।

अपनी व्यथा व्यक्त करते हुए मजदूरों ने बताया कि उन्हें महीने में मुश्किल से 20 से 22 दिन ही काम मिल पाता है, जिससे उनके लिए गुजारा करना अत्यंत कठिन हो गया है। उनकी वर्षों की जमा पूंजी अब धीरे-धीरे समाप्त हो रही है और ऐसे में अपने परिवारों का पेट पालना उनके लिए एक बड़ी चुनौती बन गया है। मजदूरों का यह सामूहिक बहिष्कार और थाने में शिकायत उनकी निराशा और अपनी हक की लड़ाई लड़ने के दृढ़ संकल्प को दर्शाता है। अब देखना यह है कि प्रशासन और संबंधित विभाग उनकी मांगों पर कितना ध्यान देते हैं और उन्हें कब तक न्याय मिलता है।

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