Jamshedpur : भारतीय न्याय व्यवस्था की निष्पक्षता और कानून के समक्ष सभी के समान अधिकार की मिसाल पेश करते हुए जमशेदपुर की एक अदालत ने एक चर्चित सोशल मीडिया केस में आरोपी ख़ालिद मजीद को सभी आरोपों से बाइज्ज़त बरी कर दिया है। इस मामले में ख़ालिद पर धार्मिक भावनाएं आहत करने, सामाजिक वैमनस्य फैलाने और आईटी एक्ट के तहत गंभीर धाराओं में मुकदमा दर्ज था।
यह मामला वर्ष 2020 में साइबर थाना बिष्टुपुर में दर्ज कांड संख्या 20/2020 से जुड़ा था। एफआईआर में आरोप लगाया गया था कि ख़ालिद मजीद ने फेसबुक पोस्ट के माध्यम से धार्मिक भावनाओं को आहत करने का प्रयास किया।
गवाही और न्यायिक प्रक्रिया
सुनवाई के दौरान अभियोजन पक्ष की ओर से कुल 6 गवाहों की गवाही कराई गई। इनमें प्रमुख रूप से पुलिस निरीक्षक महेंद्र महतो, थाना प्रभारी उपेंद्र मंडल, रेणु गुप्ता, दीपक कुमार, किशोर रामसे और पैरो महतो शामिल थे।
हालांकि, अदालत ने पाया कि अभियोजन पक्ष ठोस और प्रमाणिक साक्ष्य पेश करने में असफल रहा। माननीय अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश-2, जमशेदपुर ने स्पष्ट कहा कि साक्ष्य के अभाव में आरोप न्यायिक कसौटी पर खरे नहीं उतरते। इस आधार पर ख़ालिद मजीद को पूरी तरह से बरी कर दिया गया।
अभियुक्त का पक्ष
ख़ालिद मजीद की ओर से उनके अधिवक्ता मो. ज़ाहिद इक़बाल ने बेहद सशक्त और तर्कसंगत बहस की। उन्होंने अदालत के समक्ष संवैधानिक अधिकारों, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और साक्ष्य की अनुपस्थिति के पहलुओं को रखते हुए यह सिद्ध किया कि यह मामला मात्र एक आशंका पर आधारित था।
न्याय की जीत
इस फैसले ने एक बार फिर यह सिद्ध कर दिया है कि भारतीय न्याय प्रणाली केवल आरोपों के आधार पर नहीं, बल्कि प्रमाणित साक्ष्यों पर विश्वास करती है। यह निर्णय उन सभी के लिए एक संदेश है कि सोशल मीडिया के उपयोग पर तो ध्यान जरूरी है, लेकिन किसी के अधिकार और प्रतिष्ठा को बिना प्रमाण के ठेस नहीं पहुंचाई जा सकती।