स्पेशल डेस्क, नई दिल्ली : इन दिनों सोशल मीडिया पर एक नये तरह की बहस चल रही है। Girlfriend vs Best Friend। गर्लफ्रेंड vs बेस्ट फ्रेंड की थीम पर अलग-अलग यूट्यूबर और सोशल मीडिया एक्टिविस्ट हजारों की संख्या में वीडियो बनाकर अपलोड कर रहे हैं। दरअसल, यह पूरा माजरा रिश्तों की पहेली को और उलझा कर VIEW पाने से जुड़ा हुआ है।
अलग-अलग कहानियों के जरिए कभी गर्लफ्रेंड तो कभी बेस्ट फ्रेंड के पक्ष को ज्यादा मजबूती से उभारा जा रहा है। बॉयफ्रेंड बेचारा दो रिश्तों के बीच मूकदर्शक मात्र बनकर रह गया है। मौजूदा समय में युवा पीढ़ी की लाइफ स्टाइल में फिलहाल यह दो रास्ते ज्यादा महत्वपूर्ण हो गए हैं। लिहाजा युवा दर्शकों को अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए पूरी कहानी इसी के इर्द-गिर्द रची जा रही है।
पहले समझिए सोशल मीडिया का गुणा गणित
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल लाखों लोग अपनी कमाई के लिए कर रहे हैं। ऐसे में सबसे पहले यह देखा जा रहा है कि सोशल मीडिया पर किस तरह का ट्रेंड चल रहा है। ट्रेंड के अनुसार कंटेंट तैयार कर दर्शकों को परोस दिया जा रहा है। फिल्मों में आने वाली कहानियां के प्रभाव और निगरानी के लिए फिल्म सेंसर बोर्ड काम करता है। सोशल मीडिया पर परोसे जा रहे कंटेंट को लेकर किसी तरह की कोई पाबंदी नहीं है।
कई सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म अपने स्तर से जरूर इसकी निगरानी कर रहे हैं लेकिन वह नैतिक और सांस्कृतिक मूल्य तक जाने की बजाये संवेदनशील कंटेंट की रोकथाम तक ही खुद को सीमित किए हुए हैं। ऐसे में कई बार अधूरी जानकारियां भी सीधे नाबालिग बच्चों तक पहुंच जा रही हैं।
रिश्ते, सामाजिक मूल्य और युवा मस्तिष्क के बीच समन्वय जरूरी
सामाजिक मनोविज्ञान के विशेषज्ञ एवं कोल्हान विश्वविद्यालय के मनोविज्ञान विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ जे पी मिश्रा की माने तो मौजूदा समय में रिश्तों का यथार्थ बदल रहा है। पहले परिवार व्यक्ति के जीवन की सबसे महत्वपूर्ण इकाई होता था। सोशल मीडिया के बढ़ते प्रचलन के बीच फ्रेंड, गर्लफ्रेंड, बेस्ट फ्रेंड ने परिवार की जगह ले ली है। अधिकांश युवा अपनी समस्याएं परिवार के लोगों से साझा करने की बजाय अपने दोस्तों से बताना ज्यादा सहज समझते हैं। लिहाजा रिश्तों में विवादा, अलगाव और तनाव के केंद्र में भी अब यही रिश्ते हैं।
मौजूदा समय में युवाओं की सबसे बड़ी समस्या नौकरी और रोजगार के बाद गर्लफ्रेंड हो गई है। जिन लोगों के पास दोस्तों की संख्या अधिक है, उन लोगों ने बकायदा इसका वर्गीकरण भी किया हुआ है। कोई गर्लफ्रेंड है,कोई बेस्ट फ्रेंड है, कोई फ्रेंड है। जाहिर है अपनी सुविधा के अनुसार बांटे गए यह वर्ग कई बार आपसी टकराव का कारण बन जाते हैं। लिहाजा मौजूदा स्थिति को समझते हुए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर एक्टिव क्रिएटर इन्हीं विषयों के इर्द-गिर्द कहानियां बुन रहे हैं। चूंकि इनमें से कई लोगों के पास किसी तरह के विशेषज्ञता नहीं है, इसलिए यह रिश्तों में विवाद को खत्म करने की बजाये अपनी कहानियों और रचनाओं से उलझन को और बढ़ा देते हैं।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर भ्रामक जानकारियां देने की नहीं देनी चाहिए छूट
अधिवक्ता दिनेश साहू की माने तो सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का नया मापदंड बन गया है। कई बार अलोकतांत्रिक होने के आरोप से बचने के लिए शासन-प्रशासन सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर चल रही गतिविधियों को इग्नोर करता है। यह उचित नहीं है। किसी भी प्रसार माध्यम से प्रचारित प्रसारित की जा रही गलत सूचनाएं हमेशा बड़े नुकसान का कारण बन सकती हैं। ऐसे में जाहिर है कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अपलोड की जा रही कंटेंट की नियमित मॉनिटरिंग की व्यवस्था होनी चाहिए।
राज्य और केंद्र दोनों सरकारों को इस दिशा में विशेष पहल करनी चाहिए। आईटी एक्ट में कुछ और संशोधन कर इस कार्य को बेहद सहजता से किया जा सकता है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के इस्तेमाल को लेकर स्पष्ट गाइडलाइन भी होनी चाहिए। कई बार सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म की वीडियो और कंटेंट को देखकर कमजोर मस्तिष्क के लोग वैसा ही एक्ट करने लगते हैं। वह काल्पनिक दुनिया और हकीकत की दुनिया में अंतर नहीं कर पाते। वह वीडियो में दिखाए गए परिणाम को अपने जीवन में चाहते हैं। इस कारण कई बार नियमों का उल्लंघन होता है। इसके रोकथाम की व्यवस्था होनी चाहिए।