पटना: पटना हाईकोर्ट ने बिहार सरकार को बड़ी राहत दी है। अब एक बार फिर बिहार में जाति जनगणना का रास्ता साफ हो गया है। आज कोर्ट ने सुनवाई करते हुए बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने बिहार सरकार द्वारा करायी जा रही जाति जनगणना को चुनौती देने वाली सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया। अब बिहार में जाति जनगणना जारी रहेगी। सरकार ने इसे स्वैच्छिक सर्वेक्षण वाली जनगणना बताया है, जिसका लगभग 80 फीसदी कार्य पूरा हो गया है।
इस संबंध में कोर्ट में सर्वेक्षण पर रोक लगाने की मांग को लेकर छह याचिकाये दायर की गयी थी। इन याचिकाओं में सर्वेक्षण पर रोक लगाने की मांग की गयी थी। इस पर राज्य सरकार की ओर से कहा गया था कि सरकार योजनाओं का फायदा लोगों तक पहुंचाने के लिए इसका उपयोग करेगी।
क्या कहा सरकार ने?
सरकार ने कोर्ट में कहा कि नगर निकायों एवं पंचायत चुनावों में पिछड़ी जातियों को आरक्षण नहीं देने का हवाला देते हुए कहा कि ओबीसी को 20 प्रतिशत, एससी को 16 प्रतिशत और एसटी को एक फीसदी आरक्षण दिया जा रहा है। अभी भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक 50 फीसदी आरक्षण दिया जा रहा है। राज्य सरकार नगर निकाय और पंचायत चुनाव में 13 प्रतिशत और आरक्षण दे सकती है। सरकार ने कोर्ट में तर्क दिया कि इन सब के लिए जातीय गणना जरूरी है।
25 दिन बाद कोर्ट ने सुनाया फैसला
हाईकोर्ट ने सभी पक्षों और दलीलों को सुनने के बाद यह फैसला सुनाया है। कोर्ट ने 25 दिन बाद इस मामले में पर फैसला सुनाया है। जातीय जनगणना के खिलाफ दायर याचिकाओं पर चीफ जस्टिस केवी चंद्रन की खंडपीठ ने लगातार पांच दिनों तक सुनवाई की, इसके बाद यह फैसला सुनाया है।
कोर्ट में महाधिवक्ता ने क्या कहा
सुनवाई के अंतिम दिन राज्य सरकार की ओर से महाधिवक्ता पीके साही ने कोर्ट को बताया कि यह मात्र एक सर्वेक्षण है। इसका मकसद आम नागरिकों के बारे में सामाजिक अध्ययन के लिए आंकड़े जुटाना है। ताकि लोगों के लिए जन कल्याणकारी योजनाएं बनायी जा सके। इससे आम लोगों को ही लाभ होगा।
READ MORE: ओडिशा: 25 साल पुराने मामले में पूर्व विधायक समेत 13 को उम्रकैद