सेंट्रल डेस्क : भारत और चीन के रिश्तों में अक्सर समझौते और सहयोग की बातें होती हैं, लेकिन जब भी इन देशों के बीच विवाद का मामला उठता है, तो वह वैश्विक स्तर पर बड़े प्रभाव डालता है। एक बार फिर चीन ने भारतीय सुरक्षा और पर्यावरण से जुड़ा एक बड़ा कदम उठाया है, जो दोनों देशों के बीच तनाव को और बढ़ा सकता है। हाल ही में चीन ने तिब्बत में ब्रह्मपुत्र नदी पर दुनिया का सबसे बड़ा जलविद्युत बांध बनाने की योजना को मंजूरी दी, जिससे भारत और चीन के बीच जल विवाद की नई कड़ी जुड़ गई है।
भारत के साथ बांग्लादेश के लिए भी है ब्रह्मपुत्र का महत्व
ब्रह्मपुत्र नदी भारत, चीन और बांग्लादेश को जोड़ती है और इन देशों की जल आपूर्ति के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। यह नदी तिब्बत के कैलाश पर्वत से निकलकर भारत के अरुणाचल प्रदेश और असम से होते हुए बांग्लादेश तक बहती है। 2900 किमी लंबी इस नदी का प्रवाह दुनिया की 37 फीसदी आबादी को प्रभावित करता है, क्योंकि भारत और चीन की विशाल आबादी इस नदी पर निर्भर है। यही वजह है कि यह नदी न केवल सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि पर्यावरणीय दृष्टिकोण से भी अत्यधिक संवेदनशील मानी जाती है।
चीन की जलवायु नीति और ‘हाइड्रोपावर’ का दबाव
चीन की बढ़ती जलवायु चिंताओं और जल संसाधनों की कमी ने उसे हाइड्रोपावर परियोजनाओं की ओर आकर्षित किया है। देश के कई हिस्सों में जल संकट और बिजली की कमी जैसी समस्याएं आम हैं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, चीन का लगभग 60 प्रतिशत भूजल दूषित है, और पानी की कमी के कारण उसकी आर्थिक स्थिति पर भी दबाव बढ़ा है। इसके अलावा, चीन का जलवायु परिवर्तन को लेकर भी गंभीर दृष्टिकोण है, और वह 2060 तक नेट कार्बन न्यूट्रलिटी हासिल करना चाहता है।
ब्रह्मपुत्र पर दुनिया का सबसे बड़ा डैम
चीन ने 25 दिसंबर 2024 को तिब्बत में यारलुंग त्सांगपो (ब्रह्मपुत्र) नदी पर दुनिया का सबसे बड़ा जलविद्युत परियोजना बनाने की योजना को मंजूरी दी। यह डैम 60,000 मेगावाट (MW) की क्षमता वाला होगा, जो दुनिया के सबसे बड़े थ्री गॉर्जेस डैम से तीन गुना ज्यादा बिजली उत्पादन करेगा। इस परियोजना के बारे में चीन का कहना है कि यह परियोजना उसे पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों से दूर ले जाने में मदद करेगी और उसे ऊर्जा सुरक्षा प्रदान करेगी।
भारत को होने वाले संभावित नुकसान
भारत इस परियोजना को लेकर गंभीर चिंताओं का सामना कर रहा है। भारत का कहना है कि चीन का यह कदम पूर्वोत्तर भारत के लाखों लोगों की जीवनशैली और पारिस्थितिकी पर गंभीर प्रभाव डाल सकता है। असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने भी इस परियोजना का विरोध करते हुए सवाल उठाए हैं कि इससे नदियों का पानी भारत की सीमा में आने से पहले ही प्रभावित हो सकता है। इस परियोजना से भारत में जलवायु परिवर्तन के कारण आने वाले पानी का प्रवाह घट सकता है, जिससे पूर्वोत्तर भारत के निचले इलाकों में बाढ़ और पानी की कमी जैसी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।
चीन की विस्तारवादी नीति और जलविवाद
चीन की यह जलविद्युत परियोजना सिर्फ एक ऊर्जा स्रोत नहीं है, बल्कि एक हथियार भी हो सकता है। यदि दोनों देशों के बीच सीमा पर तनाव बढ़ता है, तो चीन इस डैम से पानी के प्रवाह को नियंत्रित करके बाढ़ जैसी स्थितियों का निर्माण कर सकता है, जो भारत के लिए एक गंभीर समस्या बन सकती है। यह चीन की विस्तारवादी नीति का हिस्सा हो सकता है, जैसा कि अतीत में भी देखा गया है।
पिछले उदाहरण और चीन के अन्य बांध
चीन के अतीत के अनुभव यह बताते हैं कि जलविद्युत परियोजनाओं के प्रभाव गंभीर हो सकते हैं। उदाहरण के तौर पर, थ्री गॉर्जेस डैम के निर्माण ने क्षेत्रीय पर्यावरण पर गंभीर प्रभाव डाला था, जिसमें लाखों लोगों को विस्थापित किया गया था और भूकंप जैसी समस्याएं उत्पन्न हुई थीं। ब्रह्मपुत्र नदी पर प्रस्तावित डैम का निर्माण भी हिमालयी क्षेत्र में होगा, जहां पहले से ही भूकंप का खतरा अधिक है।
भारत और चीन के जल विवाद के भविष्य की दिशा
भारत और चीन के बीच जलविवाद अब केवल सीमा मुद्दों तक सीमित नहीं रह गया है, बल्कि यह दोनों देशों के लिए एक नए प्रकार का सामरिक युद्ध बनता जा रहा है। पानी एक ऐसी प्राकृतिक संसाधन है जो दोनों देशों की भविष्य की विकास योजनाओं को प्रभावित कर सकता है। ब्रह्मपुत्र नदी पर चीन का बांध बनाने का कदम भारत के लिए एक गंभीर चुनौती है, जो केवल जलवायु, पर्यावरण और समाजिक स्तर पर ही नहीं, बल्कि सामरिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है।
भारत को अब यह सुनिश्चित करना होगा कि इस जलविवाद का समाधान शांतिपूर्ण और समान रूप से हो, ताकि दोनों देशों के रिश्ते और क्षेत्रीय स्थिरता पर नकारात्मक प्रभाव न पड़े। साथ ही, यह भी जरूरी है कि चीन अपने जलविद्युत परियोजनाओं को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल करने से बचें, ताकि क्षेत्रीय सहयोग और स्थिरता बनी रहे।
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