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दिल्ली हाईकोर्ट के जज यशवंत वर्मा ने इस्तीफा देने से किया इनकार, महाभियोग की प्रक्रिया शुरू

by Neha Verma
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नई दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के खिलाफ बर्खास्तगी की प्रक्रिया शुरू हो गई है। यह कदम तब उठाया गया जब उन्होंने अपने सरकारी आवास पर भारी मात्रा में नकदी मिलने के आरोपों और इन-हाउस जांच समिति की रिपोर्ट के बावजूद इस्तीफा देने से इनकार कर दिया।

आग, नकदी और साजिश का दावा

14 मार्च 2025 की रात दिल्ली के तुगलक रोड स्थित न्यायमूर्ति वर्मा के सरकारी आवास में आग लग गई थी। आग बुझाने के बाद, फायर ब्रिगेड कर्मियों ने एक कमरे में जलती हुई नकदी बरामद की। उस समय न्यायमूर्ति वर्मा और उनकी पत्नी मध्य प्रदेश में थे, जबकि उनकी बेटी और वृद्ध मां घर पर मौजूद थीं।

इस घटना के बाद न्यायमूर्ति वर्मा ने मीडिया के सामने बयान दिया कि यह एक “साजिश” है और उनका या उनके परिवार का उस नकदी से कोई लेना-देना नहीं है। उन्होंने घटना की निष्पक्ष जांच की मांग की थी।

इन-हाउस समिति की जांच रिपोर्ट

मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने इस प्रकरण की जांच के लिए एक तीन सदस्यीय इन-हाउस समिति का गठन किया था। इस समिति ने 4 मई 2025 को अपनी रिपोर्ट मुख्य न्यायाधीश को सौंपी।

रिपोर्ट में न्यायमूर्ति वर्मा को आरोपमुक्त नहीं किया गया। समिति ने न्यायमूर्ति वर्मा से स्पष्ट रूप से पूछा था कि कमरे में मिली नकदी का स्रोत क्या था और वह वहां कैसे पहुंची। इस संबंध में न्यायमूर्ति वर्मा की ओर से कोई ठोस और संतोषजनक जवाब नहीं दिया गया।

इस्तीफे से इनकार, बर्खास्तगी की ओर बढ़ते कदम

रिपोर्ट के आधार पर मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने न्यायमूर्ति वर्मा को दो विकल्प दिए — या तो वे स्वेच्छा से इस्तीफा दें या फिर महाभियोग प्रक्रिया का सामना करें।

न्यायमूर्ति वर्मा ने इस्तीफा देने से स्पष्ट इनकार कर दिया। इसके बाद, मुख्य न्यायाधीश ने समिति की रिपोर्ट और न्यायमूर्ति वर्मा की प्रतिक्रिया राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेज दी है। यह कदम संविधान के अनुच्छेद 124(4) के तहत न्यायाधीशों की बर्खास्तगी की प्रक्रिया का हिस्सा है।

अब आगे क्या? संसद में महाभियोग प्रस्ताव संभव

अब यह मामला सरकार और संसद के पास है। यदि संसद में महाभियोग प्रस्ताव लाया जाता है और दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत से पारित हो जाता है, तो न्यायमूर्ति वर्मा को उनके पद से हटा दिया जाएगा।

न्यायपालिका में पारदर्शिता और जवाबदेही

यह प्रकरण न्यायपालिका की पारदर्शिता, आंतरिक जांच की प्रभावशीलता और जवाबदेही की आवश्यकता को सामने लाता है। महाभियोग जैसी प्रक्रिया दुर्लभ होती है और इसके उदाहरण बहुत कम हैं। इसलिए इस मामले पर पूरे देश की नजर टिकी हुई है।

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