नई दिल्ली : पूर्व प्रधानमंत्री और भारत के प्रमुख अर्थशास्त्री डॉ. मनमोहन सिंह का 26 दिसंबर को निधन हो गया। यह खबर कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद ने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म X पर साझा की। लंबे समय से अस्वस्थ चल रहे डॉ. सिंह को आज शाम उनकी तबीयत बिगड़ने पर दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) में भर्ती कराया गया था। वह 2004 से 2014 तक भारत के प्रधानमंत्री रहे और इस दौरान उन्होंने भारतीय राजनीति और अर्थव्यवस्था में कई अहम बदलाव किए। डॉ. मनमोहन सिंह न केवल भारत के पहले सिख प्रधानमंत्री थे, बल्कि उनका कार्यकाल देश के लिए ऐतिहासिक सुधारों का गवाह भी था।
पंजाब से ब्रिटेन तक का सफर
डॉ. मनमोहन सिंह का जन्म 26 सितंबर 1932 को अविभाजित पंजाब के एक छोटे से गांव में हुआ था। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा पंजाब विश्वविद्यालय से प्राप्त की और बाद में उच्च शिक्षा के लिए ब्रिटेन की कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय का रुख किया। 1957 में उन्होंने कैम्ब्रिज से अर्थशास्त्र में फर्स्ट क्लास ऑनर्स की डिग्री प्राप्त की। इसके बाद, 1962 में उन्होंने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के नफ़ील्ड कॉलेज से अर्थशास्त्र में डी.फिल की उपाधि हासिल की।
उनकी शिक्षा का सफर यहीं नहीं रुका। डॉ. सिंह ने अपने ज्ञान को साझा करने के लिए पंजाब विश्वविद्यालय और दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में शिक्षण कार्य भी किया।
सरकारी पदों पर कार्य
मनमोहन सिंह का सार्वजनिक जीवन कई महत्वपूर्ण सरकारी पदों पर कार्य करते हुए सजा। 1971 में, उन्होंने भारत सरकार के वाणिज्य मंत्रालय में आर्थिक सलाहकार के रूप में काम शुरू किया, जिसके बाद 1972 में उन्हें वित्त मंत्रालय में मुख्य आर्थिक सलाहकार के रूप में नियुक्त किया गया। उनके अनुभवों और नीतिगत दृष्टिकोण ने उन्हें वित्त मंत्रालय, योजना आयोग, भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर, प्रधानमंत्री के सलाहकार और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष जैसे महत्वपूर्ण पदों तक पहुंचाया।
विशेष रूप से 1991 से 1996 के बीच उन्होंने भारत के वित्त मंत्री के रूप में कार्य किया और इस दौरान उन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था में ऐतिहासिक सुधारों की नींव रखी। इन सुधारों के चलते भारत ने एक नई आर्थिक दिशा अपनाई, जिसे पूरी दुनिया ने सराहा।
राजनीतिक सफर और प्रधानमंत्री पद
मनमोहन सिंह ने 1991 में राज्य सभा में प्रवेश किया और 1998 से 2004 तक वे राज्य सभा में विपक्ष के नेता रहे। 1999 में, उन्होंने दिल्ली की दक्षिणी सीट से लोकसभा चुनाव लड़ा, लेकिन जीत हासिल नहीं कर पाए। हालांकि, 2004 में हुए आम चुनावों के बाद, डॉ. मनमोहन सिंह ने प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली। वह 2004 से 2014 तक देश के प्रधानमंत्री रहे और इस दौरान भारत की आंतरिक और बाहरी नीति में कई महत्वपूर्ण बदलाव किए।
अंतरराष्ट्रीय पहचान और सम्मान
डॉ. मनमोहन सिंह की नीतियों को न केवल भारत में, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी सराहा गया। उनके द्वारा किए गए आर्थिक सुधारों ने भारत को वैश्विक मंच पर एक नई पहचान दी। इसके लिए उन्हें कई सम्मान और पुरस्कार मिले, जिनमें भारत का दूसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान, पद्म विभूषण (1987) प्रमुख है।
इसके अलावा, उन्हें भारतीय विज्ञान कांग्रेस द्वारा जवाहरलाल नेहरू जन्म शताब्दी पुरस्कार (1995), एशिया मनी अवार्ड (1993 और 1994) जैसे प्रतिष्ठित सम्मान मिले। उनकी अद्वितीय नेतृत्व क्षमता और नीतिगत योगदान के लिए उन्हें कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय और अन्य संस्थानों से मानद उपाधियां भी मिलीं।
निधन और विरासत
डॉ. मनमोहन सिंह का निधन भारतीय राजनीति और अर्थशास्त्र के लिए एक गहरा आघात है। उनका कार्यकाल न केवल भारत की अर्थव्यवस्था को स्थिर करने और वैश्विक स्तर पर उसकी स्थिति को मजबूत करने का था, बल्कि उनके नेतृत्व में भारत ने कई सामाजिक और राजनीतिक सुधारों को भी अपनाया। उनके द्वारा किए गए आर्थिक सुधार, जैसे 1991 में लागू की गई उदारीकरण नीतियां, आज भी भारतीय विकास के बुनियादी स्तंभ के रूप में देखी जाती हैं।
उनकी सादगी, ईमानदारी और दूरदृष्टि भारतीय राजनीति के अनुकरणीय पहलुओं में से हैं, जिन्हें आने वाली पीढ़ियां हमेशा याद रखेंगी। डॉ. मनमोहन सिंह का योगदान न केवल भारतीय राजनीति में, बल्कि वैश्विक राजनीति और अर्थव्यवस्था में भी महत्वपूर्ण रहेगा।
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