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नवरतनगढ़ की खोदाई से सामने आएगा नागवंश का इतिहास

by Rakesh Pandey
Excavation of Navratangarh will reveal the history of Naga dynasty
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रांची : झारखंड के गुमला के सिसई प्रखंड में स्थित नवरतनगढ़ किले और मंदिरों के जीर्णोद्धार और खोदाई का काम दूसरी बार शुरू हो गया है। इसकी खोदाई से नागवंश के इतिहास पर नई रोशनी पड़ सकती है। सबसे खास बात यह है कि झारखंड का यह इकलौता किला है, जो सौ एकड़ से ज्यादा में फैला हुआ है। इसलिए, इसे झारखंड का हंपी भी कहा जाता है। इसकी खोदाई एवं संरक्षण को लेकर रांची सर्किल का पुरातत्व विभाग 2003 से ही प्रयास कर रहा था। 16 साल के अथक प्रयास से 2019 में इसे संरक्षित स्मारक घोषित किया गया।

नवरतनगढ़ की खोदाई से सामने आएगा नागवंश का इतिहास

रांची से 67 किमी दूर

नवरतनगढ़ राजधानी रांची से लगभग 70 किलोमीटर दक्षिण-पूरब में है। रांची से बेड़ो-बसिया-सिसई होकर नवरतनगढ़ पहुंचा जा सकता है। किले के अलावा अनेक मंदिर और अन्य संरचनाएं भी हैं जो दुर्जनसाल के बाद के शासकों द्वारा भी कालक्रम में बनाई जाती रहीं। इन भवनों में जगन्नाथ मंदिर, कपिलनाथ मंदिर, बड़ा महादेव, बूढ़ा महादेव, राजकुल मंदिर, बाउड़ी मठ, कमलनाथ सिंह दरवाजा, गणेश मूर्ति, अंत:पुर मंदिर आदि महत्वपूर्ण हैं। इनमें से कुछ में भित्ति चित्र, अत्यंत सुंदर प्रस्तर अलंकरण एवं प्राचीन अभिलेख आदि भी हैं।

 राजधानी नवरतनगढ़ की खोदाई से सामने आएगा नागवंश का इतिहास

नवरतनगढ़ की खोदाई से सामने आएगा नागवंश का इतिहास/ नागवंश राजाओं की रही है

नागवंश की नींव प्रथम शताब्दी में फणि मुकुट राय द्वारा रांची से लगभग 25 किलोमीटर दूर पिठोरिया-सुतिआम्बे में डाली गई। नागवंश की स्थापना में तत्कालीन स्थानीय मुंडा शासकों की भी भूमिका रही। उन्होंने अपनी राजधानी नौ बार बदली। सुतिआम्बे के बाद खुखरा, चुटिया, डोयसा, पालकोट, रातू आदि स्थान भी उनकी बदलती हुई राजधानियों के रूप में जानी जाती हैं। 17वीं शताब्दी में राजा दुर्जनसाल के समय में नई राजधानी डोयसागढ़ में स्थापित की गई। कहा जाता है कि जहांगीर के काल में मुगलों ने दुर्जनशाल को हराकर ग्वालियर किले में कैद कर लिया था। वे यहां 12 साल तक कैद रहे। पर हीरों की परख की प्रतिभा को देखते हुए कैद से मुक्ति मिल गई। वहां से लौटने के पश्चात राजा दुर्जनशाल ने 17 वीं शताब्दी के मध्य में इन भवनों एवं मंदिरों का निर्माण करवाया।

 राजधानी नवरतनगढ़ की खोदाई से सामने आएगा नागवंश का इतिहास

तीन अभिलेख पाए गए हैं

नवरतनगढ़ में अभी तक कुल तीन अभिलेख मिले हैं। इनमें से दो भगवान जगन्नाथ के मंदिर में विद्यमान है। प्रथम अभिलेख से यह सूचना मिलती है कि राजकीय धर्मगुरु हरिनाथ द्वारा संवत 1739 यानी सन 1682 में निर्मित यह मंदिर भगवान जगन्नाथ को समर्पित है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि रांची का जगन्नाथ मंदिर इसके दस साल बाद 25 दिसंबर 1691 में बनकर तैयार हुआ। उस समय भी राजा के गुरु मराठी हरिनाथ ही थे।

 राजधानी नवरतनगढ़ की खोदाई से सामने आएगा नागवंश का इतिहास

पुरातत्व विभाग ने अभी तक दस स्मारक किए हैं चिहिन्त

1. जगन्नाथ मंदिर संख्या -1, 2. रानी लुकाई, 3. कमल शाही महल, 4. योगी मठ 5. शाही सरोवर, 6. शाही महल, 7. लोहू थोपा मठ, 8. शैलकृत योनिपीठ के साथ शिवलिंग, 9. शैलकृत भगवान गणेश की प्रतिमा, 10. जगन्नाथ मंदिर संख्या-2
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झारखंड का यह महत्वपूर्ण स्थल है। यहां दूसरी बार खोदाई शुरू हो गई है। मार्च तक चलेगा। इसके साथ ही यहां अवशेषों के जीर्णोद्धार का काम भी चल रहा है। यहां साफ-सफाई के साथ पौधारोपण भी किया जा रहा है। जल्द ही एक प्रमुख पर्यटन स्थल बन जाएगा।
डा राजेंद्र देहुरी,

भारतीय पुरातत्व विभाग, अधीक्षक, रांची मंडल
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मुगल शासक जहांगीर के समय में दुर्जनसाल नागवंश का शासक था। मुगलों से कतिपय मतभिन्नता के कारण बिहार के तत्कालीन सूबेदार इब्राहिम खां द्वारा दुर्जनसाल को गिरफ्तार करके ग्वालियर के किले में बंद कर दिया गया। 12 सालों बाद कुछ समझौतों के उपरांत दुर्जनसाल को रिहा कर दिया गया। इस घटना की चर्चा जहांगीर की आत्मकथा ‘तुजुक’ में अंकित है। ग्वालियर से वापस आने पर दुर्जनसाल ने नागवंश की राजधानी को खुखरा से स्थानांतरित किया और वर्तमान गुमला ज़िले के अंतर्गत, सामरिक दृष्टिकोण से अधिक सुरक्षित, डोयसा में अपनी नई राजधानी स्थापित की।

डा हरेंद्र प्रसाद सिन्हा, पुराविद

 

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