क्राइम डेस्क: इन दिनों सोशल मीडिया और साइबर टेक्नोलॉजी में एक छोटी-सी चूक भी इंसान को बर्बाद कर सकती है। आए दिन प्रशासन और सरकार साइबर ठगी को लेकर लोगों को सतर्क करती रहती है। वहीं, दूसरी ओर ठग लोगों को लूटने के नए-नए तरीके खोज ही लेते हैं। हाल ही में नोएडा में रहने वाली एक आईटी इंजीनियर लड़की के साथ डिजिटल अरेस्ट की घटना हुई। इस लड़की को आठ घंटे तक डरा धमकाकर रखा गया और इस लड़की से 11.11 लाख रुपये ठग लिए गए। ऐसे में कई लोगों के मन में सवाल आ रहा है कि आखिर यह डिजिटल अरेस्ट है क्या और कोई इसका शिकार कैसे बन जाता है।
क्या होता है डिजिटल अरेस्ट?
डिजिटल अरेस्ट में ठग द्वारा पीड़ित को फोन कर बताया जाता है कि उनके नाम पर कोई शिकायत दर्ज हुई है। झूठे मामले को लेकर पीड़ित को पहले काफी डराया जाता है, जिससे वह घबरा जाता है। इसके बाद उन्हें घर से बाहर निकलने से मना कर दिया जाता है। इसके बाद एक दूसरा फोन कॉल करके पीड़ित को मदद देने का आश्वासन दिया जाता है। मदद मानकर पीड़ित ठगों की कही हुई हर बात को फॉलो करता है। इस बीच ठग, पीड़ितों को एक ऐप डाउनलोड करने को कहते हैं और लगातार उस ऐप के जरिए पीड़ित से जुड़े रहते हैं। इसके बाद कुछ दिन बाद वो केस को रफा-दफा करने के लिए पीड़ित से कुछ पैसे मांगते हैं और यहां से लगातार पैसों के लेन-देन का मामला शुरू हो जाता है। इस बीच, पीड़ित को इतना डरा दिया जाता है कि वह अपने परिजनों और करीबियों से भी इस तरह की बातें बताने में घबराने लगता है।
क्या था पूरा मामला
नोएडा से साइबर अपराध का नया मामला सामने आया है, जहां जालसाजों ने एक युवती से 11 लाख रुपये की ठगी की है। पीड़िता को 13 नवंबर को एक अनजान नंबर से कॉल आया था। कॉल करने वाले ने खुद को भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) का कर्मचारी बताया और युवती से कहा कि उसके आधार कार्ड से एक सिम खरीदा गया, जिससे मनी लॉन्ड्रिंग की गई है। ठगी को लेकर पीड़िता ने साइबर अपराध सेल में शिकायत की है।
ठगी करने के लिए जालसाजों ने पीड़िता को पुलिस, क्राइम ब्रांच और कस्टम का अधिकारी बनकर डराया और धमकाया। मनी लॉन्ड्रिंग के इस नकली मामले में फंसाकर जालसाजों ने स्काइप कॉल पर निगरानी रखकर पीड़िता को 8 घंटे तक बंधक बनाए रखा और उसे घर से बाहर नहीं जाने दिया। 8 घंटे तक नकली अधिकारी बनकर पूछताछ करने के बाद जालसाजों पीड़िता से 11.11 लाख रुपये ट्रांसफर करवाए और उसके बाद कॉल को डिस्कनेक्ट कर दिया।
वीडियो कॉल पर अधिकारियों से कराते हैं बात
ठग पीड़ितों को जो ऐप डाउनलोड करने को कहते हैं, उसके जरिए वह फर्जी वरिष्ठ पुलिस अधिकारी और अन्य अधिकारियों से बात कराते हैं। वीडियो कॉल पर फर्जी अधिकारियों से बात करने के बाद पीड़ितों को यकीन होने लगता है कि ठगों ने जो कुछ कहा है, वह सच है। इसके बाद धीरे-धीरे वो पीड़ितों की निजी जानकारी निकलवाना शुरू करते हैं और फिर उसी का फायदा उठाकर ठगना शुरू कर देते हैं।
लोगों को जाल में फंसाने के लिए जालसाज मनी लॉन्ड्रिंग और ड्रग्स जैसे मामले में शामिल होने की बात कहते हैं। केवल इतना ही नहीं, कई झूठों आरोप में फंसाने की बात कही जाती है। वो कहते हैं न डर बहुत बड़ी चीज है, जालसाज लोगों के इसी डर का फायदा उठाकर लाखों रुपये ठगने में कामयाब हो जाते हैं, क्योंकि पीड़ित व्यक्ति जालसाजी करने वाली की बातों में फंसकर पैसे देने के लिए राजी हो जाते हैं।
डिजिटल अरेस्ट का शिकार होने पर करें ये काम
किसी भी तरह का ठग करने से पहले अपराधी आपको समझने की कोशिश करता है। यदि उसे लगता है कि वो आपको अपनी बातों में फंसाने में सक्षम है, तो वह आपको फोन करेगा और आपको डराना-धमकाना शुरू कर देगा। दरअसल, कोई भी साइबर अपराधी किसी व्यक्ति के डर को एक शक्तिशाली उपकरण के तौर पर देखते हैं, जिसके जरिए वह हेरफेर करने और साइबर अपराध और वित्तीय धोखाधड़ी के क्षेत्र में अवैध लाभ के लिए फायदा उठाने लगते हैं। जबकि, डिजिटल अरेस्ट एक नकली और झूठे बातों का जंजाल है।
अगर कोई आपको पुलिस या सीबीआई बनकर डिजिटल तौर पर गिरफ्तार करने की धमकी देता है, तो सबसे पहले आपको अपने परिवार के सदस्यों या दोस्तों को सूचित करना चाहिए। साथ ही तुरंत नजदीकी पुलिस स्टेशन में जाकर इसकी शिकायत करानी चाहिए। इस बात से नहीं डरना चाहिए कि पुलिस आपके खिलाफ कोई एक्शन लेगी।
बिना पड़ताल किए किसी की बातों पर भरोसा न करें
ऐसी ठगी से बचने के लिए खुद को किसी विभाग का कर्मचारी बताने वाले व्यक्ति के बारे में पड़ताल किए बिना उसकी बातों पर भरोसा न करें। किसी अनजान नंबर से आए कॉल पर दिए गए निर्देश का पालन न करें। इससे आप ठगी का शिकार हो सकते हैं।
किसी अनजान व्यक्ति के साथ अपनी वित्तीय या व्यक्तिगत जानकारी साझा न करें और वित्तीय लेनदेन न करें। ठगी की आशंका होने पर तत्काल साइबर अपराध सेल (https://cybervolunteer.mha.gov.in) में शिकायत करें। अगर आपको भी साइबर क्राइम से जुड़े हेल्पलाइन का नंबर नहीं पता तो अभी अपने फोन में 1930 नंबर को सेव कर लीजिए। ये नेशनल साइबरक्राइम हेल्पलाइन नंबर है, जिस पर कॉल कर शिकायत दर्ज करा सकते हैं।
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