Home » GI TAG : जाने मथुरा का पेड़ा, आगरा का पेठा और कानपुर के सत्तू को कब मिलेगा जीआई टैग?

GI TAG : जाने मथुरा का पेड़ा, आगरा का पेठा और कानपुर के सत्तू को कब मिलेगा जीआई टैग?

by Rakesh Pandey
WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now
Instagram Follow Now

सेंट्रल डेस्क, नई दिल्ली : उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से अपने प्रदेश की खाद्य वस्तुओं को ग्लोबल पहचान दिलाने और उसके महत्व को बढ़ाने के लिए GI टैग दिलाने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। इसके लिए आवेदन भी किया जा रहा है। हालांकि उतर प्रदेश की कई वस्तुएं हैं जिनकी ग्लोबल पहचान है। सरकार चाहती है और भी वस्तुओं को (GI) टैग लिस्ट में जोड़ा जाए ताकि वस्तुओं की पहचान तो बने ही, साथ ही पर्यटन व उस क्षेत्र का विकास भी हो सके। उस वस्तु को पैदा करने वाले कारीगर का भी आर्थिक स्थिति ठीक हो सके।

क्या होता है ज्योग्राफिकल इंडीकेशन या जीआई?
जीआई टैग का मतलब ज्योग्राफिकल इंडिकेशन होता है। इसे 1999 में भारतीय संसद में रजिस्ट्रेशन एंड प्रोटेक्शन एक्ट के तहत ज्योग्राफिकल इंडिकेशंस आफ गुड्स लागू किया गया। यह इस लिए लागू किया गया था ताकि इस आधार पर भारत के किसी भी क्षेत्र में पाए जाने वाली विशिष्ट वस्तुओं का कानूनी अधिकार उस राज्य को दे दिया जा सके। इसी अधिकार के तहत उतर प्रदेश सरकार अपने उत्पादों की जीआई (GI) टैगिंग कराएगी।

मथुरा का पेड़ा, आगरा का पेठा, कानपुर के सत्तू को भी मिलेगी विशिष्ट पहचान
उतर प्रदेश सरकार इससे पहले वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट के तहत प्रदेश के विभिन्न जिलों के स्थानीय खाद्य वस्तुओं को व्यापक पहचान दिलाने के लिए काम कर रही है। इस क्रम में मथुरा का पेड़ा, आगरा का पेठा, कानपुर के सत्तू समेत कई वस्तुओं को जीआई (GI) टैग मिलने वाला है। इसके लिए राज्य के कृषि विपणन और विदेश व्यापार विभाग ने विभिन्न जिलों के प्रतिनिधित्व करने वाले खास व्यंजनों को जीआई टैग प्रदान करने की तैयारी तेज कर दी है।

यहां यह जान लेना भी जरूरी है कि उतर प्रदेश में कुल 36 उत्पाद है। जिसे (GI) टैग मिल चुका है। वहीं देश में कुल 420 उत्पाद को जीआई टैग मिला है। इनमें 128 उत्पाद कृषि से जुड़े हैं। इलाहाबादी सुरखा अमरुद, मलिहाबादी दशहरी आम, गोरखपुर बस्ती और देवीपाटन का काला नमक चावल, पश्चिमी यूपी का बासमती चावल, महोबा के देसावर पान को (GI) टैग मिल चुका है।

लगभग 15 खाद्य उत्पादों के (GI) टैग की प्रक्रिया अंतिम चरण में
उतर प्रदेश सरकार ने स्थानीय खाद्य उत्पादों को ग्लोबल पहचान दिलाने की प्रक्रिया तेज कर दी है। इसके तहत उत्तर प्रदेश के कुछ खास उत्पादों में वाराणसी का लंगड़ा आम, प्रतापगढ़ का आंवला, बुंदेलखंड के कठिया गेंहू, वाराणसी का लाल पेडा, लाल भरवा मिर्च, गौरजीत आम, वाराणसी की चिरईगांव करौंदा, पश्चिमी यूपी का चौसा आम, पूर्वांचल का आदम चीनी चावल, बनारसी पान, वाराणसी का ठंडाई, जौनपुर की इमरती, मुजफ्फरनगर का गुड, वाराणसी की तिरंगी बर्फी, रामनगर का भान्टा, को सरकार ( GI) टैग दिलाने की शुरू कर दिया है।

अब कानपुर का सत्तू मथुरा का पेड़ा और आगरा का पेठा को मिलेगा जीआई टैग

उतर प्रदेश सरकार द्वारा जारी (GI) टैग दिये जाने की सूची में कानपुर का सत्तू मथुरा का पेड़ा आगरा का पेठा समेत फतेहपुर सीकरी का नमक खटाई अलीगढ़ की चमचम मिठाई, प्रतापगढ़ का मुरब्बा, मैगलगंज का रसगुल्ला, संडीला का लड्डू शामिल है। सरकार इन्हें जल्द से जल्द जीआई टैग दिलाने के लिए सरकार प्रयास कर रही है।

अन्य खाद्य वस्तुओं को भी (GI) टैग दिलाने का प्रयास
उतर प्रदेश सरकार गोरखपुर का पनियाला फल, मूंगफली गुड़ शक्कर, हाथरस का गुलाब, बिठूर का जामुन, फर्रुखाबाद की हाथी सिंगार सब्जी, बाराबंकी का याकुटी आम, अंबेडकरनगर की हरी मिर्च, गोंडा का मक्का, सोनभद्र का सावा कोदो, जौनपुर का मक्का, बुंदेलखंड की अरहर को (GI) टैग दिलाने का प्रयास कर रही है। इसके अलावे लखनऊ की रेवड़ी, सफेदा आम, सीतापुर की मूंगफली, बलिया का साठी चावल, सहारनपुर की देसी तिल, जौनपुर की मूली जैसे उत्पाद भी शामिल हैं ।

कैसे मिलता है जीआई (GI) टैग? क्यों है जरूरी?
जीआई टैग का मतलब ज्योग्राफिकल इंडिकेशन होता है। इसे 1999 में भारतीय संसद में रजिस्ट्रेशन एंड प्रोटेक्शन एक्ट के तहत ज्योग्राफिकल इंडिकेशंस आफ गुड्स लागू किया गया। जीआई टैग के आधार पर किसी वस्तु की उस जगह से पहचान होती है। जीआई टैग के आधार पर देश के किसी भी भाग में पैदा होने वाले खास वस्तु के पहचान का अधिकार उस क्षेत्र को दिया जाता है। उदाहरण के लिए दार्जिलिंग की चाय, बनारस की बनारसी साड़ी है। इनकी पहचान इसी (GI) टैग कानून के तहत है।

जानिए, किस आधार पर मिलता है जीआई (GI) टैग
ज्योग्राफिकल इंडिकेशंस (GI) देने से पहले उक्त वस्तुओं की गुणवता व पैदावार की जांच की जाती है। जीआई टैग देने से पहले भौगोलिक स्थिति को देखा जाता है। भौगोलिक स्थिति व जलवायु का वहाँ पैदा हो रहे वस्तुओं पर कितना प्रभाव होता है। साथ ही वहाँ के काम करने वाले मजदूरों पर वे इन वस्तुओं को तैयार करने में कितने सक्षम है।

GI टैग के लिए क्या प्रक्रिया है ?
ज्योग्राफिकल इंडिकेशंस (GI) की प्रक्रिया के लिए सबसे पहले
चेन्नई स्थित (जीआई) डेटाबेस में संपर्क करना होता है। देश के हर प्रदेश के प्रतिनिधि इस जी आई) डेटाबेस में अप्लाई कर सकते है। GI टैग प्राप्त करने का अधिकार उत्पादों संस्था व व्यक्तियों को होता है। GI टैग 10 वर्षो के लिए किया जाता है। 10 वर्ष बाद इसे फिर से रिन्यू भी किया जाता है।

सबसे पहले 2004 में दर्जिलिंग चाय मिला था जीआई टैग
देश सबसे पहला GI टैग के अधिकार पाने का अवसर 2004 में दर्जिलिंग चाय को मिला था। अबतक देश में 272 वस्तुओ को यह अधिकार मिला है। हालांकि हर 2 वर्ष में इसकी सूची को अपडेट भी किया जाता है। वर्तमान में कई नई वस्तुओं को शामिल किया गया है। देश में सबसे अधिक GI पाने का अधिकार कर्नाटक राज्य को प्राप्त है। देश के कुल 272 वस्तुओं में 40 वस्तुएं सिर्फ कर्नाटक की हैं।

जीआई टैग के बहुत सारे फायदे होते हैं। इसलिए उक्त वस्तुओं से जुड़े प्रदेश उसे ग्लोबल पहचान दिलाने के लिए जीआई टैग के अधिकार प्राप्त करना चाहते हैं। जीआई टैग से वस्तुओं की कीमत और उसका महत्व बहुत बढ़ जाता है। उसका अंतरराष्ट्रीय बाजार में पहचान बनती है। साथी वहां की टूरिज्म भी बढ़ता है। इसके अलावा उक्त वस्तुओं को उत्पन्न करने वाले मजदूर किसान को बहुत फायदा होता है। उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत होती है।

Read Also : रिश्ते हुए शर्मसार, चाचा को चढ़ा प्यार का बुखार, भतीजी से रचा ली शादी

Related Articles