देवघर : मानो तो मैं गंगा मां हूं, ना मानो तो बहता पानी….। गंगा तो गंगा है, वह अविरल पावन व निर्मल है। पतित पावनी गंगा जहां जहां से गुजरी है, वहां लाखों सनातनी धर्मावलंबियों ने अपने तन को डूबो कर मोक्ष पाने की लालसा अर्पित की है। पर जब वह गंगा उत्तरवाहिनी हो जाती है तो वह स्थल और गंगा का वह वेग उस इलाके के लिए खास हो जाता है। देवघर में विश्व का सर्वाधिक लंबी अवधि का मेला श्रावण का अंतिम सोमवार है। श्रावणी मेला जब शुरू होता है तब से बिहार के सुल्तानगंज स्थित गंगा घाट पर दिन रात हर हर महादेव की गूंज सुनायी देने लगती है। और यह गूंज 105 किमी तक बिना विराम के सुनायी देती है। बाबाधाम का कोना कोना बोल बम से गुंजायमान रहता है। आज सोमवार का वह रंग नहीं चढ़ा जो बीते सोमवार को था। उम्मीद है डेढ़ लाख भक्त देर शाम तक जलार्पण करेंगे। सुबह पांच किमी की कतार मंदिर से बाहर तक थी। जो दस बजे सिमट कर तीन किमी हो गई।
शिव, सावन और गंगा
शिव का आविर्भाव का वह समय सावन ही था। गंगा स्वर्ग से इस धरती पर जब हरिद्वार में आयी तब वह सावन का ही महीना था। तो शिव, सावन और गंगा का एक समन्वय भक्ति और आस्था के भाव को अविनाशी बनाता है। भगवान राम अपने माता-पिता संग सुल्तानगंज से गंगाजल भरकर कांवर यात्रा कर अपने इष्ट भगवान शंकर को जल अर्पित किया था। इसकी चर्चा रामायण में की गयी है। बाबा मंदिर के तीर्थपुरोहित दुलर्भ मिश्र कहते हैं कि मर्यादा पुरूषोत्तम राम के कांवर चढ़ाने की चर्चा रामायण में है। लंकापति रावण भी सुल्तानगंज से गंगाजल लाकर अपने आराध्य देव की पूजा देवघर में किया था। इसकी भी चर्चा सुनने को मिलती है। कारण ज्योतिर्लिंग की पूजा सबसे पहले गंगाजल से ही होती है।
अजगैबीनाथ के सामने उत्तरायण होती है गंगा
बिहार के सुल्तानगंज में गंगा बहती है। यहां अजगैबीनाथ का मंदिर है। यहां से जल भरने की खासियत यह है कि यहां उत्तर से पूरब की ओर गंगा बहती है और अजगैबी मंदिर के सामने आकर वह फिर विपरीत यानि उत्तर दिशा में बहने लगती है।
यह जो स्थान गंगा के वेग के बदलने का है वही उत्तरायण है। और यहां पर गंगा की पवित्रता पराकाष्ठा से उपर हो जाती है। इसी स्थान पर शिव भक्त कांवर में पावन जल भरते हैं। आपके मन में यह सवाल उठ रहा होगा कि सुल्तानगंज से ही कांवर क्यों भरा जाता है।
गंगा किनारे का स्थान भारतीय संस्कृति मे तीर्थ स्थान बना है जहां गंगा उल्टी दिशा में बहती है। मतलब जिधर से आयी उसी की ओर फिर मुड़ गयी। जहां जहां गंगा ने अपने वेग को ऐसा किया है वह स्थल पावन तीर्थ स्थान बना है। गंगोत्री में भागीरथ का भाव उत्तर की ओर है।
ऋषिकेश में उत्तर की ओर है। प्रयागराज में दशाश्वमेध घाट में उत्तर दिशा में मुड़ती है। बिहार के आरा, सिमरिया और मुंगेर के कष्टहरनी घाट में भी गंगा उत्तरायण है। सुल्तानगंज से जल भरकर बाबा बैद्यनाथ को चढ़ाने की परंपरा ऋषि, मुनियों ने भी आरंभ से कही है। तो यह सुल्तानगंज का अजगैबीनाथ का धाम प्रसिद्ध् है पावन है।
जहवानवीरा ऋषि ने की थी तपस्या
अजगैबीनाथ के तट पर जहवानवीरा ऋषि तपस्या करते थे। इसलिए इस घाट का नाम ऋषि के नाम पर ही है। ऋषि तपस्या करते थे। उनकी जटा पर चिड़ियां घोंसला बनाकर रहती थी। गंगा का वेग उस घोंसला को बहा कर ले जाता।
ऋषि ने गंगा को समझाया कि तुम किनारे से बहा करो, क्यों इन सबको नुकसान पहुंचाते हो। गंगा अपने अभिमान में थी और वह ऋषि की बात को अनसुना कर दिया। इस पर जहवानवीरा ऋषि को बहुत क्रोध आया और उन्होंने अपनी जंघा चीरकर गंगा क वेग को समाहित कर लिया। इसके बाद तो हाहाकार मच गया। गंगा का प्रवाह रूकने के बाद भगीरथ मुनी, विष्णु आकर ऋषि से प्रार्थना किया।
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वह माने और बोले कि गंगा को विपरीत दिशा में बहना होगा। और गंगा को उत्तर की ओर अपना वेग करना पड़ा। अखिल भारतीय तीर्थपुरोहित महासभा के पूर्व उपाध्यक्ष दुलर्भ मिश्र कहते हैं कि जहां भी गंगा उत्तरायण हुई है वह स्थान अधिक प्रसिद्ध् तीर्थ कहलाता है। सुल्तानगंज से जल भरकर देवघर आने की भी यही प्रमाणिकता है। आज लाखों भक्त ना सिर्फ सावन महीने में बल्कि अब तो सालों भर आते हैं।