Ranchi (Jharkhand) : रांची से शिक्षकों के लिए एक अत्यंत महत्वपूर्ण और बहुप्रतीक्षित खबर सामने आई है। झारखंड हाईकोर्ट ने राज्य के मान्यता प्राप्त निजी डिग्री कॉलेजों के शिक्षकों के पक्ष में एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। अदालत ने शिक्षकों के वेतन और पेंशन से जुड़े इस महत्वपूर्ण मामले में सरकार को तीन महीने के भीतर आवश्यक कार्रवाई पूरी करने का सख्त निर्देश दिया है। इस फैसले से राज्य के बड़ी संख्या में शिक्षकों को राहत मिलेगी।
कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश आशुतोष कुमार और न्यायमूर्ति पार्थ सारथी की डबल बेंच ने यह महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। कोर्ट ने अपने आदेश में स्पष्ट रूप से कहा है कि 19 अप्रैल 2007 से पहले नियुक्त हुए सभी शिक्षकों को उनके वेतन और पेंशन के साथ-साथ अन्य सभी सेवा लाभ प्रदान किए जाएं। अदालत ने सरकार को इस प्रक्रिया को तीन महीने की समय सीमा के भीतर पूरा करने का आदेश दिया है।
इसके अतिरिक्त, हाईकोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि सेवानिवृत्त शिक्षकों को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के वेतनमान के अनुरूप ही पेंशन का भुगतान किया जाएगा। यह निर्णय उन अनेक शिक्षकों के लिए एक बड़ी जीत है जो लंबे समय से इसके लिए संघर्ष कर रहे थे। डबल बेंच ने इस मामले में सरकार द्वारा दायर की गई दो अपीलों को भी खारिज कर दिया है।
कोर्ट ने अपने फैसले में बिहार विश्वविद्यालय अधिनियम, 1976 की धारा 57-A में वर्ष 2015 में किए गए संशोधन का उल्लेख करते हुए कहा कि इस संशोधन का लाभ सभी योग्य शिक्षकों को मिलना चाहिए, चाहे उनके कॉलेज ‘डिफिसिट ग्रांट’ (घाटा अनुदान) के अंतर्गत आते हों या ‘परफॉर्मेंस ग्रांट’ (प्रदर्शन आधारित अनुदान) के अंतर्गत।
हालांकि, सुनवाई के दौरान सरकार की ओर से यह तर्क दिया गया था कि यह संशोधन केवल प्रदर्शन आधारित अनुदान प्राप्त कॉलेजों पर ही लागू होता है। कोर्ट ने सरकार के इस तर्क को अनुचित बताते हुए कहा कि इस प्रकार का भेदभाव शिक्षा नीति की मूल भावना के विरुद्ध है। कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि अधिकांश शिक्षक कॉलेजों की गवर्निंग बॉडी की सिफारिश पर विधिवत नियुक्त हुए थे और वे वर्षों से शिक्षण कार्य कर रहे हैं। हाईकोर्ट का यह फैसला निश्चित रूप से राज्य के निजी डिग्री कॉलेजों के शिक्षकों के लिए एक नई उम्मीद की किरण लेकर आया है।