हिमंत सरमा का बयान, क्या इरफान और आलमगीर का राज बन रहा है खतरा?”
- हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा-अगर हिंदू एकजुट नहीं हुए तो इरफान अंसारी व आलमगीर आलम जैसे लोग झारखंड पर कब्जा कर लेंगे
झारखंड की राजनीति में चुनावी सरगर्मियां तेजी से बढ़ रही हैं। इसी कड़ी में भाजपा के सह चुनाव प्रभारी हिमंत बिस्वा सरमा ने एक विवादास्पद बयान देकर राजनीति में हलचल मचा दी है। उन्होंने चेतावनी दी है कि अगर हिंदू समुदाय एकजुट नहीं हुआ, तो इरफान अंसारी और आलमगीर आलम जैसे नेता राज्य पर कब्जा कर लेंगे। यह बयान भाजपा की विचारधारा और सामुदायिक एकता को लेकर बढ़ती चिंताओं को उजागर करता है।
सरमा ने एक चुनावी रैली में कहा कि वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में यदि हिंदू समाज संगठित नहीं हुआ, तो अल्पसंख्यक नेताओं की संख्या में वृद्धि हो सकती है, जिससे हिंदू जनसंख्या के हितों की अनदेखी की जा सकती है। उनका स्पष्ट संदेश था कि हिंदू समुदाय को अपनी पहचान और अधिकारों की रक्षा के लिए एकजुटता की जरूरत है।
सरमा का यह बयान भाजपा की चुनावी राजनीति में धार्मिक ध्रुवीकरण के आरोपों को बल देता है। उन्होंने कहा, “हिंदू समाज को जागरूक होना होगा। अगर हम एकजुट नहीं हुए, तो हमारे राजनीतिक अधिकार कमजोर पड़ सकते हैं। हमें इरफान अंसारी और आलमगीर आलम जैसे नेताओं से सतर्क रहना होगा।”
इस बयान ने झारखंड की राजनीति में तूफान खड़ा कर दिया है। विपक्षी दलों ने इसे धार्मिक ध्रुवीकरण की कोशिश करार दिया है। झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) के नेताओं का कहना है कि सरमा का बयान असहिष्णुता का प्रतीक है और यह दर्शाता है कि भाजपा अपने राजनीतिक लक्ष्यों के लिए समाज में विभाजन की कोशिश कर रही है।
वहीं, भाजपा नेताओं का मानना है कि उनकी पार्टी ने झारखंड में हिंदू समुदाय के विकास और कल्याण के लिए कई योजनाएं बनाई हैं। सरमा ने यह भी कहा कि भाजपा ने हमेशा समाज के सभी वर्गों के हितों का ख्याल रखा है। लेकिन, उन्होंने दोहराया कि हिंदू समाज को अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए एकजुट होना होगा।
इस बीच, सरमा की टिप्पणियां चुनावी रणनीति का हिस्सा मानी जा रही हैं। झारखंड में भाजपा के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वे अपने वोट बैंक को मजबूत करें, और इस प्रकार के बयान उनके राजनीतिक प्रयासों को संजीवनी दे सकते हैं।
सरमा का बयान उस समय आया है जब झारखंड में चुनावी माहौल गर्म है। सभी पार्टियां अपने-अपने वोट बैंक को साधने के लिए कड़ी मेहनत कर रही हैं। भाजपा ने विकास और रोजगार के मुद्दों को उठाया है, लेकिन ऐसे बयान धार्मिक भावनाओं को भी भड़काते हैं।
अंततः, हिमंत बिस्वा सरमा का यह बयान सिर्फ एक राजनीतिक टिप्पणी ही नहीं, बल्कि यह झारखंड की वर्तमान राजनीतिक स्थिति का परिचायक है। अगर भाजपा इस दिशा में आगे बढ़ती है, तो यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या उनका यह बयान चुनावी नतीजों पर प्रभाव डालता है।
इस प्रकार, झारखंड की राजनीति में सरमा का बयान एक महत्वपूर्ण मोड़ का संकेत दे सकता है, जो आगामी चुनावों में भाजपा की रणनीति को प्रभावित कर सकता है।
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