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जानिए इस बार कब है होली, कब होगा होलिका दहन?

by Rakesh Pandey
Holi 2024
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स्पेशल डेस्क : होली हिंदू धर्म का प्रमुख पर्व है। बसंत का महीना लगने के बाद से ही इसका इंतजार शुरू हो जाता है। (Holi 2024) फाल्गुन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा की रात होलिका दहन किया जाता है और इसके अगले दिन होली मनाई जाती है। जानिए इस बार कब मनाई जाएगी होली और कब है होलिका दहन। दरअसल,अइस बार होली का त्योहार 25 मार्च, सोमवार को मनाया जाएगा। इस बार होलाष्टक 17 मार्च, रविवार से शुरू हो जाएंगे।

पूर्णिमा तिथि (Holi 2024)

हिंदू पंचांग के अनुसार, फाल्गुन पूर्णिमा 24 मार्च को सुबह 9 बजकर 54 मिनट से प्रारंभ हो रही है, जो 25 मार्च को दोपहर 12 बजकर 29 मिनट पर समाप्त हो रही है।

कब है होलिका दहन

24 मार्च 2024 दिन रविवार को होलिका दहन किया जाएगा। इसका मुहूर्त समय 24 मार्च को रात्रि 11 बजकर 13 मिनट से लेकर अगले दिन 25 मार्च को देर रात्रि 12 बजकर 27 मिनट तक रहेगा। होलिका दहन की अवधि कुल 1 घंटा 14 मिनट तक है। इस दौरान आप होलिका दहन की पूजा मुहूर्त के अंतराल में कर सकते हैं।

बुराई पर अच्छाई की जीत

हिंदू धर्म के अनुसार, होलिका दहन को बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना गया है। होली एक सांस्कृतिक, धार्मिक और पारंपरिक त्योहार है। पूरे भारत में इसका अलग ही जश्न और उत्साह देखने को मिलता है। होली भाईचारे, आपसी प्रेम और सद्भावना का त्योहार है। इस दिन लोग एक-दूसरे को रंगों में सराबोर करते हैं। घरों में गुझिया और पकवान बनते हैं। लोग एक-दूसरे के घर जाकर रंग-गुलाल लगाते हैं और होली की शुभकामनाएं देते हैं।

क्या है मान्यता

भारत में होली की अनूठी धूम देखने को मिलती है। हर साल फाल्गुन मास में मनाई जाने वाली होली की विशेष धार्मिक मान्यता होती है। इस दिन से हिरण्यकश्यप, प्रह्लाद और होलिका (Holika) की पौराणिक कथा जुड़ी हुई है। माना जाता है एक समय में हिरण्यकश्यप नामक राजा रहा करता था, जो भगवान विष्णु का विरोधी था। लेकिन, उसका पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु को घनिष्ठ भक्त था। वह दिन-रात श्रीहरि की पूजा करता रहता है। हिरण्यकश्यप को इस बात से परेशानी थी और इसलिए वह प्रह्लाद का वध करना चाहता था।

हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को मारने की बहुत कोशिश की, लेकिन हर बार ही असफल रहा। एक बार हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका को प्रह्लाद का वध करने के लिए कहा। हिरण्यकश्यप ने होलिका से कहा कि वह प्रह्लाद को अपनी गोद में लेकर आग की चिता पर बैठ जाए, क्योंकि होलिका को आग में ना जलने का वरदान प्राप्त था।

लेकिन, भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद बच गया और होलिका आग की लपटों से भस्म हो गई। इसके बाद से ही बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में होलिका दहन किया जाता है। इसके अगले दिन रंगों से होली खेली जाती है।

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