धनबाद: टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी डबलिन (आयरलैंड) के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. अभ्रज्योति तराफदार ने आईआईटी-आईएसएम धनबाद में “Microplastics: Tracing the Invisible Hazard Across Ecosystems, Nutrition, and Healthcare” विषय पर कीनोट लेक्चर दिया। इस विशेष व्याख्यान का आयोजन पर्यावरण विज्ञान एवं इंजीनियरिंग विभाग (ESE) द्वारा किया गया।
माइक्रोप्लास्टिक की जांच व उपचार: शोध के नए दृष्टिकोण
अपने शोध के अहम बिंदुओं को साझा करते हुए डॉ. तराफदार ने बताया कि उनकी टीम ने Bacillus siamensis ATKU1 नामक एक प्लास्टिक-नाशक बैक्टीरिया खोजा है, जो लो-डेंसिटी पॉलीथीन (LDPE) को तोड़ने में सक्षम है। इसके अलावा, उन्होंने एक डाई-आधारित तकनीक का भी ज़िक्र किया, जिसकी मदद से मिट्टी और खाद्य नमूनों में माइक्रोप्लास्टिक की पहचान की जा सकती है।
हेल्थकेयर में भी माइक्रोप्लास्टिक की मौजूदगी, गंभीर चिंता
डॉ. तराफदार ने एक चौंकाने वाला खुलासा करते हुए बताया कि उनकी रिसर्च में इंट्रावीनस (IV) फ्लूइड सिस्टम में भी माइक्रोप्लास्टिक की मौजूदगी पाई गई है। यह खोज चिकित्सा क्षेत्र में नई जैव सुरक्षा चिंताओं को जन्म देती है और हेल्थकेयर सिस्टम में कठोर निगरानी और नवाचार की आवश्यकता को रेखांकित करती है।
स्वास्थ्य, पर्यावरण और नीति निर्माण पर ज़ोर
कार्यक्रम समन्वयक और ESE विभागाध्यक्ष प्रो. अलोक सिन्हा ने डॉ. तराफदार का स्वागत करते हुए कहा कि माइक्रोप्लास्टिक एक बढ़ता हुआ वैश्विक संकट है, जिससे निपटने के लिए अंतरविषयी अनुसंधान और नीति एकीकरण आवश्यक है।
वहीं, सूचना अधिकारी डॉ. अवनिका चंद्रा ने डॉ. तराफदार का परिचय देते हुए बताया कि वे माइक्रोब-प्रदूषक इंटरएक्शन, जैव अपघटन और स्वास्थ्य जोखिम मूल्यांकन के क्षेत्र में विशेषज्ञ हैं।
शोधार्थियों की भागीदारी और भविष्य की दिशा
इस व्याख्यान में 65 से अधिक प्रतिभागियों ने भाग लिया, जिसमें फैकल्टी, शोधार्थी और छात्र शामिल थे। चर्चा में उन्नत जांच तकनीकों, माइक्रोबियल डिग्रेडेशन और जनस्वास्थ्य नीतियों के निर्माण पर ज़ोर दिया गया।
कार्यक्रम के अंत में, प्रो. अलोक सिन्हा ने डॉ. तराफदार को स्मृति चिन्ह भेंट कर उनका आभार जताया। यह कार्यक्रम आईआईटी-आईएसएम के निदेशक प्रो. सुकुमार मिश्रा, डिप्टी डायरेक्टर प्रो. धीरज कुमार और सह-समन्वयक प्रो. सुरेश पांडियन के सहयोग से आयोजित किया गया।
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