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इतना भी आसान नहीं है अंतरिक्ष तक पहुंच, जाने स्पेस मिशन क्यों हो जाते हैं फेल?

by Rakesh Pandey
इतना भी आसान नहीं है अंतरिक्ष तक पहुंच
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मेलबर्न /इतना भी आसान नहीं है अंतरिक्ष तक पहुंच : भारत ने 2019 में चंद्रमा पर एक अंतरिक्षयान उतारने की कोशिश की और वह इसकी बंजर सतह पर मलबे की एक किलोमीटर लंबी लकीर ही खींच सका। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने अब जीत के साथ वापसी की और चंद्रयान-3 का लैंडर पृथ्वी के चट्टानी पड़ोसी चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के निकट की सतह छूने में कामयाब रहा।

इतना भी आसान नहीं है अंतरिक्ष तक पहुंच

भारत की इस सफलता से कुछ ही दिन पहले रूस को तब असफलता मिली, जब उसके लूना-25 मिशन ने पास ही के क्षेत्र पर उतरने की कोशिश की, लेकिन वह चंद्रमा की सतह से टकराकर दुर्घटनाग्रस्त हो गया।

अंतरिक्षयान मिशन मुश्किल एवं खतरनाक

ये दोनों मिशन हमें याद दिलाते हैं कि चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग की पहली सफलता के करीब 60 साल बाद अंतरिक्षयान मिशन अब भी मुश्किल एवं खतरनाक हैं। विशेष रूप से चंद्र मिशन सिक्का उछालने की तरह हैं और हमने हाल के वर्षों में कई बड़े-बड़े देशों को विफल होते देखा है। चंद्रमा एकमात्र खगोलीय स्थान है जहां (अब तक) मनुष्य गये हैं। वहां सबसे पहले जाना समझ में भी आता है। यह लगभग 4,00,000 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हमारा सबसे निकटतम ग्रहीय पिंड है।

इतना भी आसान नहीं है अंतरिक्ष तक पहुंच

पहली सफलता पूर्व सोवियत संघ को मिली

इसके बावजूद अभी तक मात्र चार देश ही चंद्रमा की सतह पर सफलतापूर्वक ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ कर पाए हैं। सबसे पहले पूर्व सोवियत संघ ने यह सफलता हासिल की थी। लूना-9 मिशन लगभग 60 साल पहले फरवरी 1966 में चंद्रमा पर सुरक्षित रूप से उतरा था। अमेरिका ने जून 1996 में ‘सर्वेयर 1’ मिशन के जरिए सफलता हासिल की। इसके बाद चीन 2013 में ‘चांग’ई 3’ मिशन की सफलता के साथ इस समूह में शामिल हो गया और अब भारत भी चंद्रयान-3 के साथ चांद पर पहुंच गया है।

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दुर्घटनाग्रस्त होना असामान्य नहीं

जापान, संयुक्त अरब अमीरात, इजराइल, रूस, यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी, लक्जमबर्ग, दक्षिण कोरिया और इटली के मिशन असफल रहे। दुर्घटनाग्रस्त होना असामान्य बात नहीं है, रूस की अंतरिक्ष एजेंसी ‘रॉसकॉसमॉस’ ने 19 अगस्त, 2023 को घोषणा की कि लूना 25 अंतरिक्ष यान के साथ संपर्क बाधित हुआ है। इसके बाद 20 अगस्त को यान से संपर्क करने के प्रयास असफल रहे। रॉसकॉसमॉस को बाद में पता चला कि लूना 25 दुर्घटनाग्रस्त हो गया है।

इतना भी आसान नहीं है अंतरिक्ष तक पहुंच

पूर्ववर्ती सोवियत संघ से लेकर आधुनिक रूस तक 60 साल से भी अधिक के अनुभव के बावजूद यह मिशन असफल हो गया। हमें नहीं पता कि वास्तव में क्या हुआ, लेकिन रूस के मौजूदा हालात इसके कारक हो सकते हैं। यूक्रेन के साथ जारी युद्ध के कारण रूस में तनाव अधिक है और संसाधनों का अभाव है।

2019 में दुर्घटनाग्रस्त विक्रम लैंडर के दर्जनों मलबे मिले

इजराइल का बेरेशीट लैंडर भी अप्रैल, 2019 में दुर्घटनाग्रस्त हो गया था और इसी साल सितंबर में भारत ने चंद्रमा की सतह पर अपना लैंडर ‘विक्रम’ भेजा था, लेकिन वह उतरते समय दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। नासा ने बाद में अपने ‘लूनर रीकानसन्स ऑर्बिटर’ द्वारा ली गई एक तस्वीर जारी की जिसमें विक्रम लैंडर का मलबा कई किलोमीटर तक फैले लगभग दो दर्जन स्थानों पर बिखरा हुआ नजर आ रहा था। अंतरिक्ष मिशन एक जोखिम भरा काम है। केवल 50 प्रतिशत से अधिक चंद्र मिशन सफल होते हैं। यहां तक कि पृथ्वी की कक्षा में छोटे उपग्रह मिशन भी शत-प्रतिशत सफल नहीं होते। उनकी सफलता दर 40 प्रतिशत से 70 प्रतिशत के बीच है।

इतना भी आसान नहीं है अंतरिक्ष तक पहुंच

98 प्रतिशत मानव युक्त मिशन सफल क्यों होते हैं?

हम मानव रहित मिशन की तुलना मानव युक्त मिशन से कर सकते हैं। लगभग 98 प्रतिशत मानव युक्त मिशन सफल होते हैं, क्योंकि अंतरिक्ष यात्रियों से युक्त मिशन की मदद के लिए पृथ्वी पर काम करने वाले वैज्ञानिक अधिक ध्यान केंद्रित करके काम करेंगे, उनके लिए प्रबंधन अधिक संसाधनों का निवेश करेगा और उनकी सुरक्षा की प्राथमिकता के मद्देनजर देरी को स्वीकार किया जाएगा।

इतना भी आसान नहीं है अंतरिक्ष तक पहुंच

इसके बावजूद बड़ी चुनौतियां बरकरार हैं। यदि मनुष्यों को पूर्ण विकसित अंतरिक्ष-सभ्यता का निर्माण करना है, तो हमें बड़ी चुनौतियों से पार पाना होगा। लंबी अवधि, लंबी दूरी की अंतरिक्ष यात्रा को संभव बनाने के लिए कई समस्याओं का समाधान करना होगा। प्रगति धीरे-धीरे होगी, छोटे कदम धीरे-धीरे बड़े बनेंगे। इंजीनियर और अंतरिक्ष प्रेमी अंतरिक्ष मिशन में अपनी दिमागी ताकत, समय और ऊर्जा लगाते रहेंगे तथा वे धीरे-धीरे और अधिक कामयाब होते जाएंगे। शायद एक दिन हम ऐसा समय देखेंगे जब अंतरिक्ष यान में यात्रा करना कार में बैठने जितना ही सुरक्षित होगा।

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