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Jhargram Maoist Alert : सारंडा से झाड़ग्राम तक माओवादी मूवमेंट की आशंका के बाद सीमावर्ती जंगलों में बढ़ी निगरानी

सारंडा जंगल बना खतरे की घंटी, झाड़ग्राम तक माओवादियों की घुसपैठ की आशंका

by Anand Mishra
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Manoharpur/Jhargram (Jharkhand/Bengal)। एशिया का सबसे बड़ा साल वृक्षों का जंगल सारंडा, अब पश्चिम बंगाल के झाड़ग्राम जिले के लिए खतरे की घंटी बनता जा रहा है। झारखंड के पूर्वी सिंहभूम, पश्चिमी सिंहभूम और सरायकेला-खरसावां जिलों तक फैला यह जंगल वर्षों से माओवादियों का गढ़ रहा है। अब खबरें हैं कि माओवादी झारखंड से बंगाल के सीमावर्ती जंगलों में फिर से सक्रिय हो सकते हैं।

पुलिस कार्रवाई के बाद बढ़ी खुफिया गतिविधियां

पिछले सप्ताह झारखंड के कमलापुर थाने की पुलिस ने पश्चिम बंगाल के बेलपहाड़ी स्थित जमीरडीहा गांव के माओवादी जावा, बिदरी गांव के मंगल सिंह सरदार और पथरनाशा की मालती के घर पहुंचकर कोर्ट का नोटिस तामील कराया। इससे न केवल राजनीतिक हलकों में, बल्कि पुलिस तंत्र में भी हलचल मच गई।

पुलिस को शक है कि ये माओवादी अब सारंडा से झाड़ग्राम के जंगलों की ओर रुख कर सकते हैं। छत्तीसगढ़ में हालिया मुठभेड़ में दो माओवादी कमांडरों की मौत और एक अधिकारी की प्रेशर माइन ब्लास्ट में मौत के बाद माओवादियों की गतिविधियों में इजाफा होने की आशंका है।

झाड़ग्राम पुलिस ने निगरानी तेज की, SP बोले- कोई मूवमेंट नहीं

झाड़ग्राम के पुलिस अधीक्षक अरिजीत सिन्हा ने बताया कि केंद्र और राज्य की खुफिया इनपुट के मुताबिक अभी तक झाड़ग्राम में माओवादियों की किसी मूवमेंट की पुष्टि नहीं हुई है। उन्होंने कहा, ‘यह जिला झारखंड के पूर्वी सिंहभूम से सटा है, जो माओवादी मुक्त घोषित किया जा चुका है। हालांकि, सारंडा जंगल में गतिविधियां संभव हैं और हम सतर्क हैं’।

झाड़ग्राम : पूर्व में नक्सल गतिविधियों का गढ़

झाड़ग्राम और जंगलमहल क्षेत्र में घने जंगलों की उपस्थिति माओवादियों के लिए पहले से ही मुफीद रही है। 1990 के दशक के अंत में पीपुल्स वार ग्रुप (PWG) और माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर (MCC) ने यहां सक्रियता शुरू की थी। बाद में इन दोनों संगठनों का विलय होकर CPI (माओवादी) बना।

कुछ प्रमुख घटनाएं

2 नवंबर 2008 : तत्कालीन मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य और केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान के काफिले पर शालबनी में भूमिगत विस्फोट।

28 मई 2010 : ज्ञानेश्वरी एक्सप्रेस झाड़ग्राम में पटरी से उतरी, 148 यात्रियों की मौत।

इन घटनाओं ने जंगलमहल क्षेत्र को आतंक के गहरे साए में डाल दिया था। बाद में माओवादी नेता किशनजी के मारे जाने के बाद गतिविधियां धीमी पड़ीं, परंतु अब एक बार फिर हलचल तेज हो गई है।

राजनीतिक दलों की चिंता भी बढ़ी

माकपा के झाड़ग्राम जिला सचिव प्रदीप सरकार ने कहा, ‘हमारे कई कार्यकर्ता माओवादियों द्वारा मारे गए हैं। नक्सल हिंसा अब फिर सिर उठाती दिख रही है’। इसके अलावा अन्य राजनीतिक दलों ने भी चिंता जताई है।

केंद्रीय बलों की तैनाती के बाद भी सतर्कता जरूरी

फिलहाल झाड़ग्राम में केंद्रीय बलों की 10 कंपनियां तैनात हैं। फिर भी सुरक्षा एजेंसियां पुराने माओवादी ठिकानों पर नजर बनाए हुए हैं। सीमावर्ती इलाकों की सघन निगरानी की जा रही है, क्योंकि घने जंगलों से एक राज्य से दूसरे राज्य में घुसपैठ करना आसान है।

जंगलमहल में शांति बनी रहे, यही चुनौती

हालांकि झाड़ग्राम में अभी माओवादी मूवमेंट की पुष्टि नहीं हुई है, लेकिन सूत्रों की मानें, तो सारंडा के नजदीकी जंगलों से खतरा टला नहीं है। सुरक्षा बलों की सतर्कता, खुफिया निगरानी और स्थानीय प्रशासन की सक्रियता ही आने वाले समय में स्थिति को नियंत्रण में रख सकती है।

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