पटमदा (झारखंड): झारखंड के एक छोटे से कस्बे पटमदा से आने वाले शुभम कुमार पात्रा ने अपनी मेहनत और हौसले से वो कर दिखाया है जो बड़े-बड़े संसाधनों वाले भी सोचते रह जाते हैं। एक साधारण किसान परिवार से ताल्लुक रखने वाले शुभम ने 97.40 प्रतिशत अंक लाकर इलाके का नाम रोशन किया है।
शुभम के पिता एक किसान हैं और महीने की कुल आमदनी सिर्फ 15,000 रुपये है। घर की आर्थिक स्थिति हमेशा से कमजोर रही, लेकिन कभी भी शुभम के इरादे कमजोर नहीं पड़े। उनके इस सफर में चाचा और दादा ने बड़ा सहारा दिया—चाचा ने किताबें, कॉपियां और फीस का जिम्मा उठाया, वहीं संयुक्त परिवार ने हमेशा हौसला बढ़ाया।

उनकी मां एक गृहिणी हैं और छोटे भाई की पढ़ाई भी साथ चल रही है, जो फिलहाल पांचवीं कक्षा में है। इन तमाम जिम्मेदारियों के बीच शुभम ने न केवल स्कूल और ट्यूशन नियमित रूप से किया, बल्कि हर दिन 5 घंटे सेल्फ स्टडी भी किया।
शुभम की सबसे बड़ी प्रेरणा है अपने परिवार की हालत बदलना। वे चाहते हैं कि एक दिन सरकारी नौकरी पाकर न सिर्फ अपने परिवार की दशा और दिशा बदलें, बल्कि समाज में भी एक प्रेरणादायक उदाहरण बनें।
शुभम कहते हैं, “जब घर में पैसों की तंगी होती थी, तब चाचा किताब दिलवाते थे। मैं जानता हूं कि मेरे परिवार ने मेरे लिए बहुत कुछ सहा है। अब मेरी बारी है उन्हें गर्व दिलाने की।”
शुभम की कहानी सिर्फ एक विद्यार्थी की सफलता की कहानी नहीं है, बल्कि यह उन हजारों छात्रों के लिए रोशनी की किरण है, जो संसाधनों की कमी के बावजूद बड़े सपने देखने का हौसला रखते हैं।
ये कहानी बताती है – सपने सीमाओं में नहीं बंधते, सिर्फ मेहनत और जज्बे की जरूरत होती है।