खूंटी : जब हम गांव का नाम सुनते हैं, तो हमारे मन में एक ऐसी तस्वीर उभरती है जहां खपड़ैल मकान, बच्चों की खुशहाली, मवेशी, और एक साथ रहते लोग होते हैं। गांवों की यही पहचान है, लेकिन खूंटी जिले का एक ऐसा गांव है जो सरकारी रिकॉर्ड में तो है, लेकिन वहां कोई इंसान नहीं रहता। यह गांव है बिरहोर चुआं।
बिरहोर चुआं गांव का इतिहास
बिरहोर चुआं खूंटी जिले के रनिया प्रखंड में स्थित है। सरकारी दस्तावेज़ में इसे एक राजस्व गांव के रूप में दर्ज किया गया है, लेकिन यह एक बेचिरागी गांव (जहां कोई निवास नहीं करता) बन चुका है। इस गांव में कोई घर नहीं है, न कोई इंसान रहता है। स्थानीय लोगों का कहना है कि पहले यहां बिरहोर जनजाति के लोग रहते थे, जो घुमंतु थे और समय-समय पर अपना स्थान बदलते रहते थे।
बिरहोर जनजाति का पलायन
आसपास के गांवों के लोग बताते हैं कि बिरहोर जनजाति के लोग इस गांव को एक “चुआं” का उपयोग करते थे, जो पानी पीने और अन्य कार्यों के लिए इस्तेमाल होता था। इस चुआं के कारण ही गांव का नाम बिरहोर चुआं पड़ा। आज भी वह चुआं गांव में मौजूद है, लेकिन बिरहोर लोग कहां गए, यह कोई नहीं जानता।
गांव में एक आम के पेड़ के नीचे एक कब्रगाह मौजूद है, जहां मिट्टी के बर्तनों में शवों के कंकाल पाए गए हैं। इन शवों के बारे में ग्रामीण भी ज्यादा जानकारी नहीं दे पाते हैं।
सरकारी रिपोर्ट और जनगणना
सरकारी अधिकारियों का कहना है कि बिरहोर चुआं नाम का गांव तो मौजूद है, लेकिन चूंकि यहां कोई आबादी नहीं है, इसलिए इसे बेचिरागी गांव के रूप में रिपोर्ट किया जाता है। जनगणना में भी इस गांव की आबादी शून्य दिखाई जाती है। इस गांव के नाम से किसी भी सरकारी योजना का लाभ नहीं मिलता।
बेचिरागी गांवों की संख्या
खूंटी जिले में 2011 की जनगणना के अनुसार दो ऐसे गांव हैं, जिनकी आबादी शून्य है और जिन्हें बेचिरागी गांव माना जाता है। इनमें से एक बिरहोर चुआं है, जिसका क्षेत्रफल 207.75 हेक्टेयर है। दूसरा गांव छोटा बांडी है, जो खूंटी प्रखंड में स्थित है और इसका क्षेत्रफल 18 हेक्टेयर है।
एक परिवार वाला गांव
रनिया प्रखंड के चेंगरे नामक एक अन्य गांव भी है, जिसमें सिर्फ एक ही परिवार रहता है। इस गांव का कुल क्षेत्रफल 87 हेक्टेयर है और इसमें कुल नौ सदस्य रहते हैं—पांच पुरुष और चार महिलाएं।