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Chhath Puja 2024 : माता सीता और द्रौपदी ने की थी छठ पूजा की शुरुआत, जानें इसके पीछे की पौराणिक कथा

इस महापर्व की शुरुआत के पीछे कई पौराणिक कथाएं हैं, जिनमें माता सीता और द्रौपदी का विशेष स्थान है।

by Rakesh Pandey
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फीचर डेस्क : छठ पूजा सूर्य देव की आराधना और संतान सुख की कामना का पर्व वर्ष में दो बार मनाया जाता है। एक चैत्र मास और दूसरा कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। इस महापर्व की शुरुआत के पीछे कई पौराणिक कथाएं हैं, जिनमें माता सीता और द्रौपदी का विशेष स्थान है। आइए, जानते हैं इन कथाओं के बारे में।

माता सीता का छठ पूजा का आरंभ

एक मान्यता के अनुसार छठ पूजा की शुरुआत भगवान श्रीराम की अर्धांगिनी माता सीता ने की थी। कहा जाता है कि उन्होंने सबसे पहले बिहार के मुंगेर में गंगा तट पर इस पूजा का आयोजन किया। आज भी उस स्थान पर माता सीता के पदचिह्न मौजूद हैं, जो इस बात का प्रमाण है कि उन्होंने वहां 6 दिनों तक छठ पूजा की थी।

वाल्मीकि रामायण में वर्णित है कि जब प्रभु श्रीराम 14 वर्षों के वनवास के बाद अयोध्या लौटे, तब उन्होंने रावणवध के पाप से मुक्ति के लिए ऋषियों के निर्देशानुसार सूर्य देव की पूजा करने का निर्णय लिया था। इस अवसर पर मुदग्ल ऋषि ने उन्हें अपने आश्रम आने का आदेश दिया। माता सीता और श्रीराम ने वहां पहुंचकर छठ पूजा की विधि का वर्णन सुना।

मुद्गल ऋषि ने माता सीता को गंगाजल छिड़ककर पवित्र किया और कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को सूर्य देव की आराधना करने का निर्देश दिया। माता सीता ने यहीं पर भगवान सूर्य की 6 दिनों तक पूजा की। इस स्थान पर आज सीता चरण मंदिर स्थित है, जो श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र बना हुआ है।

द्रौपदी का छठ व्रत


दूसरी एक महत्वपूर्ण कथा महाभारत काल से जुड़ी है, जिसमें द्रौपदी का छठ व्रत रखने का उल्लेख है। जब पांडव अपना राजपाठ जुए में हार गए, तब द्रौपदी ने छठ व्रत किया। यह व्रत उनके लिए फलदायी साबित हुआ और पांडवों को उनका खोया हुआ राजपाठ वापस मिल गया।

सूर्य देव के पुत्र कर्ण का भी उल्लेख होता है, जो सूर्य देव के परम भक्त थे। कर्ण घंटों तक पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते थे, जिससे वे एक महान योद्धा बने। यह परंपरा आज भी छठ पूजा में अर्घ्य दान के रूप में देखने को मिलती है।

छठ पूजा का महत्व

छठ पूजा की ये पौराणिक कथाएं इसे विशेष धार्मिक महत्व प्रदान करती हैं। इस पर्व का उद्देश्य सूर्य देव और छठी मैया की कृपा प्राप्त करना है, जो परिवार और संतान सुख का प्रतीक माना जाता है। लोक परंपरा के अनुसार, सूर्य देव और छठी मैया का भाई-बहन का संबंध है, इसलिए इस पर्व की आराधना फलदायी मानी जाती है।

छठ पूजा न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह हमारी पौराणिक कहानियों और सांस्कृतिक धरोहर का भी प्रतिनिधित्व करती है। माता सीता और द्रौपदी की कथा इस पर्व को गरिमा और महत्व प्रदान करती है। श्रद्धालु इस महापर्व के दौरान इन कहानियों को याद करते हैं, जो उन्हें प्रेरित करती है और उनके मन में आस्था की ज्योति जलाए रखती है।

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