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मन और मशीन

by The Photon News Desk
मन और मशीन
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उम्र और व्यस्तता के बीच ये जीवन
और इसकी सूक्ष्म दृष्टि
एक पड़ाव पर आकर
कुछ ऐसी हो जाती है कि ,
हम महसूस नहीं कर पाते
फूल की सुगंध ,
झरने का सौंदर्य
पहाड़ों की श्रृंखला
और हरित दूब का कोमल स्पर्श।
ये भोर, दुपहरी और सांझ
बस एक समय चक्र की तरह
गुजरते रहते हैं आंखों के सामने
बेस्वाद अहसास बनकर,
भूगोल के किसी पाठ की तरह।

बोध होता है तो बस इतना कि
ये सब अंग हैं विशाल सृष्टि के,
विराट प्रकृति के,

मन का मशीन हो जाना
इसे ही कहते हैं शायद ……

डॉ. कल्याणी कबीर

 

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