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पाकिस्तान में भी पहली दफा शुरू हुआ महाकुंभ, हिंदू समुदाय ने अनोखे तरीके से किया गंगा स्नान

by Neha Verma
Mahakumbh Stampede
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इस्लामाबाद: पाकिस्तान में रहने वाले हिंदू समुदाय के लोग भारत में होने वाले महाकुंभ में शामिल नहीं हो पा रहे हैं, लेकिन उन्होंने अपनी धार्मिक आस्था को बनाए रखने के लिए पाकिस्तान में ही महाकुंभ का आयोजन किया है। इस आयोजन के तहत हिंदू श्रद्धालुओं ने एक विशेष कुंड का निर्माण किया, जहां वे गंगा स्नान की रस्म अदा कर रहे हैं।

पाकिस्तान में बना विशेष कुंड

भारत के प्रयागराज में महाकुंभ 2025 की भव्यता को देखते हुए पाकिस्तान के हिंदू समुदाय ने अपने स्तर पर धार्मिक आयोजन करने का निर्णय लिया। चूंकि वीजा संबंधी कठिनाइयों के चलते वे भारत नहीं आ सकते, इसलिए उन्होंने पाकिस्तान में ही एक कुंड तैयार किया, जिसे ‘गंगा जल कुंड’ नाम दिया गया है। इस कुंड में श्रद्धालु आस्था के साथ स्नान कर रहे हैं, जिससे वे खुद को गंगा स्नान के बराबर पुण्य लाभ का भागी मानते हैं।

महाकुंभ को लेकर पाकिस्तान में बढ़ा आकर्षण

भारत में चल रहे महाकुंभ 2025 को लेकर पाकिस्तान में भी काफी चर्चा हो रही है। सोशल मीडिया पर पाकिस्तानी नागरिक प्रयागराज के महाकुंभ की भव्यता की सराहना कर रहे हैं। कई लोग भारतीय संस्कृति और धार्मिक सहिष्णुता की तारीफ कर रहे हैं, जबकि कुछ पाकिस्तानी इस बात पर अफसोस भी जता रहे हैं कि उनके पूर्वजों ने विभाजन के समय भारत क्यों छोड़ा।

पाकिस्तान के कई हिंदू परिवार महाकुंभ में शामिल होने के लिए भारत आना चाहते थे, लेकिन वीजा संबंधी कठिनाइयों के कारण उन्हें अनुमति नहीं मिली। इसके चलते उन्होंने अपने देश में ही इस धार्मिक आयोजन की शुरुआत की।

पाकिस्तान में हिंदू समुदाय की धार्मिक आस्था

पाकिस्तान में बसे हिंदू समुदाय के लोग पहले भी अपने धार्मिक आयोजनों को जीवंत बनाए रखने के लिए विभिन्न प्रयास करते रहे हैं। इस बार महाकुंभ को लेकर उनकी विशेष तैयारियों ने यह दर्शा दिया है कि वे अपनी संस्कृति और परंपराओं को लेकर कितने सजग हैं।

विशेषज्ञों का कहना है कि पाकिस्तान में हिंदुओं https://youtu.be/RdM8SyNmoYg?si=fwBKkTSRGJrOwyeCके लिए धार्मिक स्वतंत्रता हमेशा से एक मुद्दा रही है, लेकिन इसके बावजूद वे अपनी परंपराओं को निभाने के लिए हरसंभव प्रयास करते हैं। इस बार पाकिस्तान में महाकुंभ का आयोजन और गंगा स्नान की परंपरा का निर्वहन इस बात का प्रमाण है कि आस्था किसी भी सीमा की मोहताज नहीं होती।

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