स्पेशल डेस्क: विवाह (Marriage) एक दो दिलों का संगम, एक नए जीवन की शुरुआत है जो दाम्पत्य जीवन में बंधने जा रहे जोड़ों के लिए खास और अद्वितीय होता है। विवाह जैसे महत्वपूर्ण आयोजन में हिन्दू विवाह की एक अद्वितीय परंपरा है – सात फेरे। इन सात फेरों को लेकर कई प्रश्न लोगों के मन में उमड़ते-घुमड़ते हैं। इस पवित्र संस्कृति में सात फेरों का विशेष महत्व होता है। ऐसे में शादी में सात फेरों को लेकर ऐतिहासिक, धार्मिक और सामाजिक पहलुओं का परिचय होना बेहद जरूरी है।
विवाह (Marriage) का सांस्कृतिक दृष्टिकोण
वैसे तो शादी का समय आते ही हर कुलीन और सांस्कृतिक पहचान वाले हिन्दू समाज के व्यक्ति के लिए यह सवाल उठता है कि शादी में सात फेरे ही क्यों लिए जाते हैं? इस सवाल का उत्तर सांस्कृतिक और धार्मिक दृष्टिकोण से जुड़ा है जो हमारे समाज में बसी विशेषताओं को प्रतिस्थापित करता है। सात फेरे, जिन्हें हम ‘सात पवित्रिका’ भी कह सकते हैं, हिन्दू विवाह एक आदिकालीन और सबसे महत्वपूर्ण संस्कृति हैं। प्रति फेरे में नवग्रहों की शपथ लेना, जीवन के विभिन्न पहलुओं को जोड़ना और भगवान का आशीर्वाद प्राप्त करना, इन फेरों को सांस्कृतिक एवं धार्मिक महत्व माना जाता है।
शादी (Marriage) में क्यों लिए जाते हैं 7 ही फेरे
हिंदू धर्म में, विवाह एक सात जन्मों का बंधन होता है और इस पवित्र संबंध को सात फेरों के माध्यम से प्रतिबद्ध किया जाता है। सप्तपदी या सात फेरे लेना हिन्दू शादी की परंपरागत प्रक्रिया है, जिसमें विवाह के बंधन में बंधने जा रहे जोड़े अग्नि के चारों ओर परिक्रमा करते हुए सात वचन लेते हैं। यह सात फेरे न केवल उन दोनों के बीच की दुविधा को दूर करते हैं, बल्कि यह एक आदर्श साझेदारी को भी दर्शाते हैं, जो शरीर, मन, और आत्मा की समृद्धि की ओर बढ़ने का आशीर्वाद देते हैं। इन सात फेरों के माध्यम से दुल्हन और दूल्हा नित्यता और साझेदारी के लिए एक नए यात्रा का संकल्प करते हैं, जिसे वे जीवन भर निभाने का वचन देते हैं।
Marriage फेरे में 7 की संख्या का महत्व
7 एक महत्वपूर्ण संख्या है जो हमारे समाज और सांस्कृतिक धाराओं में गहरा महत्व रखती है। इसे भिन्न-भिन्न परंपराओं में शुभ और महत्वपूर्ण माना गया है, जैसे कि इंद्रधनुष के सात रंग, सात तारे, और सात स्वर। भारतीय साहित्य और दर्शन ने भी सात को एक अद्वितीय संख्या माना है, जो विशेषकर धार्मिक और रौचिक आधार पर है। भारतीय संस्कृति में संख्या 7 को काफी शुभ माना गया है।
अगर आपको याद हो तो सूर्य के 7 घोड़े, मंदिर या मूर्ति की 7 परिक्रमा, 7 रंग, संगीत के 7 सुर, 7 समुद्र, 7 चक्र, 7 ग्रह, 7 लोक, 7 तारे, 7 तल, 7 दिन, 7 द्वीप और 7 ऋषि का वर्णन किया गया है। इसके साथ ही ऊर्जा के केंद्र भी 7 ही होते हैं। इसी कारण हिन्दू विवाह में भी सात फेरे लेने का परंपरागत महत्व है। यह न केवल दो व्यक्तियों को जीवनभर के लिए एक करता है, बल्कि इन फेरों के माध्यम से हम अपनी पारंपरिक मान्यताओं का समर्थन करते हैं जो हमें सात को एक पूर्ण और पूर्णात्मक संख्या मानते हैं। इस आधार पर, सात फेरे एक विवाहित जीवन की सुरक्षित और सुखमय शुरुआत की ओर एक आशीर्वाद होते हैं।
शरीर में होते हैं 7 ऊर्जा के केंद्र
विशेषज्ञों की मानें तो, शरीर में सात ऊर्जा के केंद्र होते हैं। इन उर्जा केंद्रों को हम चक्र कहते हैं, जो हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के साथ जुड़े होते हैं। इस पौराणिक सिद्धांत के अनुसार, जब दो व्यक्तियों ने शादी (Marriage) के सात फेरे लिए, तो इसका मतलब उन्होंने अपने सात चक्रों को एकजुट किया और एक नए जीवन की शुरुआत की। शादी(Marriage)का यह सांस्कृतिक पहलू हमें हमारे शारीरिक और आध्यात्मिक संतुलन की महत्ता को सिखाता है और हमें एक-दूसरे के साथ संबंध को सजीव रूप में बांधने का मार्ग प्रदर्शित करता है।
Marriage धार्मिक, आध्यात्मिक व सांस्कृतिक दृष्टिकोण
शादी (Marriage )के सात फेरों की इस अद्भुत परंपरा में हिन्दू विवाह का महत्व न केवल सामाजिक बंधनों में है, बल्कि इसे धार्मिक और आध्यात्मिक सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी देखा जाता है। इस प्रक्रिया के माध्यम से, विवाहित जीवन को एक सच्चे मार्ग पर प्रवृत्ति करने का संकल्प किया जाता है, जिससे दोनों ही साथ में खुशियों और कठिनाइयों को साझा कर सकते हैं।
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