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अब दूर नहीं चांद, 5 अगस्त को चंद्रमा की कक्षा में पहुंचेगा चंद्रयान-3, जानें कब होगी सतह पर लैंडिंग

by Rakesh Pandey
5 अगस्त को चंद्रमा की कक्षा में पहुंचेगा चंद्रयान-3 , 23 अगस्त को चंद्रयान-3 को चंद्रमा की सतह पर लैंड कराने की कोशिश की जाएगी, चंद्रमा पर आने वाले भूकंप और मिट्टी का अध्ययन करेगा चंद्रयान-3
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फोटोन न्यूज : तो दिल थाम के बैठिए। भारत के लिए अब चांद ज्यादा दूर नहीं है। आज धरती की कक्षा से निकलकर चंद्रयान-3 चंद्रमा की ओर बढ़ेगा। 23 अगस्त को चंद्रयान-3 को चंद्रमा की सतह पर लैंड कराने की कोशिश की जाएगी। इसरो (Indian Space Research Organisation) के वैज्ञानिकों ने चंद्रयान-3 को पृथ्वी की ऑर्बिट से चांद की तरफ भेजा। इसे ट्रांसलूनर इंजेक्शन (TLI) कहा जाता है।

अबतक अंडाकार कक्षा में घूम रहा था चंद्रयान-3

इससे पहले भारत का चंद्रयान-3 ऐसी अंडाकार कक्षा में घूम रहा था, जिसकी पृथ्वी से सबसे कम दूरी 236 km और सबसे ज्यादा दूरी 1,27,603 km थी। अब 5 अगस्त को ये चंद्रमा की ऑर्बिट में पहुंचेगा और 23 अगस्त को चंद्रमा पर लैंड करेगा।

इंजन को कुछ देर के लिए किया गया चालू

ट्रांसलूनर इंजेक्शन के लिए बेंगलुरु में मौजूद इसरो के हेडक्वार्टर से वैज्ञानिकों ने चंद्रयान का इंजन कुछ देर के लिए चालू किया। इंजन फायरिंग तब की गई जब चंद्रयान पृथ्वी से 236 Km की दूरी पर था। इसरो ने कहा- चंद्रयान-3 पृथ्वी के चारों ओर अपनी परिक्रमा पूरी कर चंद्रमा की ओर बढ़ रहा है। इसरो ने अंतरिक्ष यान को ट्रांसलूनर कक्षा में स्थापित कर दिया है।

क्या है Chandrayaan-3 का मकसद?

चंद्रयान 3 के जरिए भारत चांद के बारे में विस्तृत अध्ययन करना चाहता है। वो चांद से जुड़े तमाम रहस्‍यों से पर्दा हटाएगा। चंद्रयान-3 चांद की सतह की तस्वीरें भेजेगा, वहां के वातावरण, खनिज, मिट्टी वगैरह जुड़ी तमाम जानकारियों को जुटाएगा। बता दें 2008 में जब इसरो ने भारत का पहला चंद्र मिशन चंद्रयान-1 सफलतापूर्वक लॉन्च किया था, तब इसने चंद्रमा की परिक्रमा की और चंद्रमा की सतह पर पानी के अणुओं की खोज की थी।

चंद्रमा पर आने वाले भूकंप और मिट्टी का अध्ययन करेगा चंद्रयान-3

चंद्रयान-3 में लैंडर, रोवर और प्रोपल्शन मॉड्यूल हैं। लैंडर और रोवर चंद्रमा के दक्षिणी बिंदू पर उतरेंगे और 14 दिन वहां एक्सपेरिमेंट करेंगे। यदि ऐसा हुआ तो भारत चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने वाला पहला देश बन जाएगा। प्रोपल्शन मॉड्यूल चंद्रमा की कक्षा में रहकर धरती से आने वाली विकिरणों का अध्ययन करेगा। इस मिशन के जरिए इसरो पता लगाएगा कि चंद्रमा की सतह पर कैसे भूकंप आते हैं। यह चंद्रमा की मिट्टी का अध्ययन भी करेगा।

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23 अगस्त को चंद्रमा पर उतरेगा

चंद्रमा की कक्षा तक पहुंचने के इतिहास भारत पहले ही 2008 (चंद्रयान -1) और 2019 (चंद्रयान -2) में रच चुका है। जिनमें वह चंद्रमा के चारों ओर एक सैटेलाइट भेज चुका है। चंद्रयान-3 का सबसे अधिक महत्वपूर्ण काम चंद्रमा की कक्षा में पहुंचने के बाद का होगा। इसमें चंद्रयान-3 की ऊंचाई को कम करना और उसे 100 किलोमीटर की वृत्ताकार कक्षा में स्थापित करने का चुनौतीपूर्ण काम करना होगा। इसरो 17 अगस्त को प्रोपल्शन मॉड्यूल को लैंडिंग मॉड्यूल से अलग करेगा। उसके बाद 23 अगस्त को चंद्रयान-3 को चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग कराने की कोशिश की जाएगी। इससे पहले 14 जुलाई को चंद्रयान-3 मिशन के लॉन्च होने के बाद उसकी कक्षा लगातार पांच गुना बढ़ाई थी।

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