चाईबासा : सचमुच अद्भुत, लोग कहते हैं कि यह प्रेम का प्रतीक है। इस पेड़ की एक डाली आपस में जुड़ी हुई है, जिसके कारण लोग उसे प्यार का प्रतीक भी कहते हैं। वैसे भी झारखंड की जनजातियां प्रकृति की उपासक हैं। पर्वत, पहाड़, पशु-पक्षी और पेड़- पौधों को भगवान स्वरूप मानती हैं। कई बार कई प्राकृतिक नजारों को देख कर हमारा मस्तक श्रद्धा से झुक जाता है, जो मानवीय परिकल्पना से परे होता है।

ऐसा ही एक अद्भुत दृश्य झारखंड राज्य में पश्चिमी सिहभूम के चक्रधरपुर और चाईबासा के बीच है। यह मुख्य मार्ग पर मड़कमहातु में है। इसे जोड़ा पेड़ के नाम से जाना जाता है। यहां दो पेड़ आपस में जुड़े हुए हैं। इन पेड़ों की जडें अलग- अलग हैं, परंतु ऊपर जाकर दोनों पेड़ आश्चर्यजनक रूप से जुड़े हुए हैं। आदिवासी ‘हो’ समाज के लोग इसे एक पवित्र स्थल मानते हैं। यह एक जायरा (पूजा) स्थल है।
इसे लोग ‘बोंगा द्वार’ यानी ‘भगवान का दरवाजा’ भी मानते हैं। लोग इस स्थल का सम्मान करते हैं।इस जुड़वा पेड़ को प्रकृति की दोस्ती और आस्था के प्रतीक के रूप में माना जाता है। मड़कमहातु ग्राम सभा के आदेशानुसार यहां नारियल फोड़ना, अगरबत्ती जलाना, सिंदूर आदि का प्रयोग, पान गुटखा आदि पर प्रतिबंध है।

रक्षाबंधन के दिन ग्रामीण पेडों को बांधते हैं राखी
कोल्हान प्रमंडल के वन क्षेत्रों में वन समितियां गांवों में वृक्ष को राखी बांध कर रक्षाबंधन का पर्व मनाते हैं। इस कार्य में वन समितियों से जुड़े सभी सदस्य, गांव की महिला, पुरुष एवं बच्चे तथा क्षेत्र के वन विभाग के लोग भाग लेते हैं। इस मौके पर सभी लोग वृक्ष को रक्षासूत्र या राखी बांधकर उसकी हर वक्त रक्षा करने का प्रण भी लेते हैं। रेंज के भिन्न-भिन्न वन समितियों के वृक्ष रक्षाबंधन के इस कार्य में गांव क्षेत्र के लोगों ने पूरे उत्साह के साथ प्रत्येक प्राकृतिक वन संपदा की रक्षा करने का संकल्प लेते हैं।
वन विभाग भी दोनों पेड़ की करती है सेवा
कोल्हान वन प्रमंडल वन क्षेत्र के बरकेला रेंज द्वारा दोनों पौधे सहित आसपास के पौधों को देखरेख हमेशा करती है। लोगों को जागरूक करने के लिए वन विभाग भी यहां काफी योगदान देता है। वन विभाग का कहना है कि दो पेड़ों के मिलने का नजारा मानव को जीवन जीने की प्रेरणा देता है।
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