स्पेशल डेस्क, नई दिल्ली: संसद की सुरक्षा में सेंध लगाने के आरोप में गिरफ्तार लोगों की Polygraph Test की अनुमति दिल्ली सरकार ने अदालत से मांगी है। लाई डिटेक्टर टेस्ट को टेक्निकल भाषा में पॉलीग्राफ टेस्ट (Polygraph Test) के नाम से भी जाना जाता है। यह पॉलीग्राफ मशीन के द्वारा किया जाता है। इस मशीन का उपयोग यह जानने के लिए किया जाता है कि कोई व्यक्ति सच बोल रहा है या फिर झूठ। इसके काम को देखकर कई जगहों पर इसे झूठ पकड़ने वाली मशीन के नाम से भी बुलाते हैं।
हर किसी को इसके इस्तेमाल की इजाजत नहीं है। ज्यादातर कानून एजेंसी और दूसरे संगठन इसका उपयोग करते हैं। इस मशीन से टेस्ट कराने के लिए कोर्ट से इजाजत लेनी पड़ती है और मामले की गंभीरता के अनुसार कोर्ट इसकी अनुमति देता है।
Polygraph test कैसे होता है?
सबसे पहले तो आपको बता दें कि इस टेस्ट में व्यक्ति के हाव-भाव, पल्स रेट, हार्ट बीट, मेंटल एक्टिविटी आदि को देखा जाता है। इसके लिए व्यक्ति के शरीर पर डिवाइस को लगाया जाता है और उससे कुछ सवाल किए जाते हैं। अब व्यक्ति के जवाबों के अनुसार पॉलीग्राफ टेस्ट मशीन एक चार्ट का निर्माण करती है। इस डाटा के आधार पर यह निर्धारित किया जाता है कि व्यक्ति सच बोल रहा है या झूठ। पॉलीग्राफ टेस्ट इस धारणा पर आधारित है कि जब कोई व्यक्ति झूठ बोल रहा होता है, तो शारीरिक प्रतिक्रियाएं (दिल की धड़कन, सांस लेने में बदलाव, पसीना आना आदि) शुरू हो जाती हैं।
पूछताछ के दौरान कार्डियो-कफ या सेंसेटिव इलेक्ट्रोड जैसे उपकरण व्यक्ति से जुड़े होते हैं और रक्तचाप, नाड़ी, रक्त प्रवाह आदि को मापा जाता है। प्रत्येक प्रतिक्रिया को एक संख्यात्मक मान दिया जाता है कि क्या व्यक्ति सच बोल रहा है, धोखा दे रहा है, या वह अनिश्चित है।
क्या polygraph test से बचा जा सकता है?
पॉलीग्राफ मशीन की खोज करीब 100 साल पहले जॉन अगस्तस लार्सन ने की थी। इस मशीन को लेकर अक्सर इस तरह के सवाल मन में आते हैं ये कैसे किसी के झूठ को पकड़ती है और यह कैसे और कितना एक्यूरेट रिजल्ट देती होंगी। वहीं, कई लोगों के मन में यह सवाल होता है कि क्या इस polygraph test से बचा जा सकता है। तो हम आपको बता दें कि इस टेस्ट में अपराधियों के बचने की काफी संभावना होती है, क्योंकि जब यह टेस्ट चल रहा होता है तो शातिर लोग अपने हार्ट बीट के साथ ही अपने हावभाव पर भी नियंत्रण कर लेते हैं और झूठ बोलकर भी बच जाते हैं।
हालांकि, जांच एजेंसियों इन्हें प्राथमिकता देती है, क्योंकि संदिग्धों से सच्चाई उगलवाने के लिए इन्हें ‘थर्ड डिग्री’ के ‘नरम विकल्प’ के रूप में देखा जाता है।
पॉलीग्राफ मशीन कैसे काम करती है?
एक पॉलीग्राफ मशीन में कई कंपोनेंट होते हैं, जिन्हें साथ में मेजर कर किसी व्यक्ति के साइकोलॉजिकल रिस्पॉन्स का पता लगाया जाता है।
न्यूमोग्राफ: यह घटक व्यक्ति के सांस लेने के पैटर्न को रिकॉर्ड करता है और श्वसन गतिविधि में बदलाव का पता लगाता है।
कार्डियोवास्कुलर रिकॉर्डर: यह घटक किसी व्यक्ति की दिल की गति और ब्लड प्रेशर को रिकॉर्ड करता है।
गैल्वेनोमीटर: यह घटक त्वचा की इलेक्ट्रिकल चालकता को मापता है, जो पसीने की ग्रंथि में बदलाव को नोटिस करता है।
रिकॉर्डिंग डिवाइस: यह घटक पॉलीग्राफ मशीन के अन्य घटकों के एकत्र किए गए डेटा को रिकॉर्ड करता है।
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