अपनी लौहनगरी में दिनों-दिन आबादी बढ़ती जा रही है। शहर के साथ-साथ पड़ोस के मानगो में भी आबादी बढ़ गई है, जिसकी बानगी यहां पुल पर दिखती रहती है, जो अक्सर जाम रहता है। इन दिनों जुबिली पार्क का गेट बंद रहने से कीनन स्टेडियम रोड पर भी जाम लग रहा है। खैर, हम बात कर रहे हैं, जाम के लिए प्रसिद्ध मानगो की, जहां एक बार फिर जाम लगना शुरू हो गया है। गणतंत्र दिवस के बाद एक सप्ताह छोड़ दें, तो हर दिन वहां सफेद वर्दी धारी पांच-पांच मिनट के लिए पुल का ट्रैफिक रोक रहे हैं। पहले यह अवधि 10 से 15 मिनट तक रहती थी। उन्हें चिंता रहती है कि ट्रैफिक नहीं रोका तो पुल से गुजरने वाले भारी वाहन से कुचलकर काल कवलित हो जाएंगे। हालांकि पिछले महीने के आखिरी सप्ताह में किसी को खरोंच तक नहीं आई थी। अब यह मत पूछिए, कैसे।
जो सोवत है सो खोवत है
यह कहावत तो आपने सुनी ही होगी। नहीं सुनी है, तो इस उदाहरण से समझ जाइएगा कि फ्लाईओवर का निर्माण करीब पांच माह पहले शुरू हुआ था। उससे पहले भी एक नक्शा प्रचारित हुआ, जिसमें बताया गया था कि पुल किस रास्ते से गुजरेगा। इसी रास्ते में एक बगीचा भी पड़ता है, लेकिन उसके माली को इस बात का पता तब चला, जब बगीचे में पिलर के लिए कुआंनुमा गड्ढे खोदे जाने लगे। जब उन्होंने देखा तो उनकी धड़कन तेज हो गई। मरता, क्या न करता… की तर्ज पर उछलकूद मचाने लगे। लेकिन, वे जहां-जहां गए, निराशा ही हाथ लगी। इसकी वजह साफ थी कि जिन-जिन के पास गुहार लगाने गए, उन्होंने ही पिलर लगाने का एनओसी महीनों पहले दिया था। थक-हार कर माली एक नए बगीचे की डिमांड करने लगे हैं। क्योंकि संस्था चलाने के लिए बगीचा बहुत जरूरी है।
जानें अपना अधिकार
इस देश में आम नागरिक से लेकर समाजसेवी तक सबसे ज्यादा इस बात की खोजबीन करते हैं कि उनके क्या-क्या अधिकार हैं। जब बात किसी जनप्रतिनिधि की होती है, तो इस बात का महत्व बढ़ जाता है, क्योंकि उन्हें आम जनता से कई गुना ज्यादा अधिकार मिलते हैं। जिसकी जितनी बड़ी कुर्सी, उतना ज्यादा अधिकार। ऐसे में नए-नए चुने गए जनप्रतिनिधि कुछ दिन तो इसी बात को जानने में समय बिता देते हैं कि उन्हें कौन-कौन से अधिकार हैं। इसके लिए वे संविधान, नियम-कानून या आचारसंहिता की पुस्तकें पढ़ने की जगह तथाकथित अनुभवी लोगों से शॉर्टकट सलाह ले लेते हैं। इन्हीं में किसी ने जनप्रतिनिधि को ऐसी सलाह दे दी और वह ऐसी जगह पहुंच गईं, जहां उन्हें घुसने का अधिकार नहीं था। बाकायदा, फोटो-वीडियो जारी होते ही कई सवाल खड़े गए हैं। अब विभागों के आला अधिकारी पूछ रहे हैं कि आप वहां कैसे चली गईं।
गाड़ी भरके लाएं लोग
कुछ ही दिनों बाद पंजा-दल का समागम होने वाला है। इसकी तैयारी जोर-शोर से चल रही है। इनके नए आका भी आकर मंत्र दे चुके हैं कि जब तक संख्या नहीं दिखाओगे, खाली नेतागिरी से कुछ नहीं होगा। पांच साल तक लॉलीपॉप के सिवा कुछ नहीं मिला था, आगे भी पांच साल तक हाथ मलते रह जाओगे। इसलिए कम से कम समागम में तो अपनी ताकत दिखाओ। इसके लिए आदेश जारी कर दिया गया है कि पंचायत से लेकर जिला स्तर तक के हर पदाधिकारी को कम से कम एक गाड़ी भरकर लोग भी लाने हैं। ऐसे में पदाधिकारी इस बात की चिंता में डूब गए हैं कि कौन सी गाड़ी ले जाएं, जिसमें न्यूनतम लोग समा जाएं। आपको हैरानी नहीं होनी चाहिए, ज्यादातर ने टोटो-ऑटो की सलाह दी है। हालांकि, इस पर नेताजी ने कहा कि प्रेस्टीज भी कोई चीज होती है कि नहीं।