पटना: बिहार को 26 साल बाद एक मुस्लिम राज्यपाल मिला है। केरल के पूर्व राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने आज बिहार के 42वें राज्यपाल के रूप में शपथ ली। पटना उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश कृष्णन विनोद चंद्रन ने उन्हें पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई। शपथ ग्रहण समारोह में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव, दोनों उप मुख्यमंत्री और अन्य मंत्री भी उपस्थित थे।
शपथ ग्रहण के बाद राज्यपाल का बयान
राज्यपाल बनने के बाद आरिफ मोहम्मद खान ने मीडिया से बातचीत करते हुए बिहार के लोगों की तारीफ की। उन्होंने कहा कि बिहार एक बहुत ही ऊर्जावान राज्य है और यहां की जनता में अपार प्रतिभा है। उनका मानना है कि बिहार की भूमिका देश के विकास में महत्वपूर्ण है, और राज्य के विकास के लिए वह हर संभव प्रयास करेंगे। उन्होंने यह भी कहा कि अभी शपथ ली है, लेकिन आने वाले समय में राज्य की समृद्धि और विकास के लिए वे जितना कर सकते हैं, करेंगे।
आरिफ मोहम्मद खान का यह बयान बिहार की उम्मीदों और उनकी कार्यशैली के प्रति सकारात्मक संकेत दे रहा है। उन्होंने बिहार की विकास यात्रा को लेकर अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त की है और राज्य के लिए काम करने का वादा किया है।
लालू से मुलाकात पर क्या बोले राज्यपाल?
राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान से नए साल के अवसर पर आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव से राबड़ी आवास पर मुलाकात करने को लेकर सवाल किया गया। इस पर उन्होंने कहा कि जेपी आंदोलन के दौरान उनके कई पुराने साथी रहे हैं, जिनसे वे मिलते रहते हैं, और लालू यादव भी उसी कड़ी का हिस्सा हैं। आरिफ मोहम्मद खान ने इसे एक सामान्य मुलाकात बताया और कहा कि क्या पुराने साथियों से नहीं मिल सकते हैं? उनका यह बयान यह दर्शाता है कि राजनीति में उनका नजरिया काफी व्यापक और रिश्तों को निभाने वाला है।
26 साल बाद मुस्लिम राज्यपाल का नियुक्ति
बिहार को 26 साल बाद मुस्लिम राज्यपाल मिला है। इससे पहले, एआर किदवई ने 14 अगस्त 1993 से लेकर 26 अप्रैल 1998 तक बिहार के राज्यपाल के रूप में कार्य किया था। अब आरिफ मोहम्मद खान के रूप में बिहार को एक मुस्लिम राज्यपाल मिलना राज्य की राजनीति में चर्चा का विषय बन गया है। कई राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि केंद्र सरकार ने राज्यपाल की इस नियुक्ति के जरिए आरजेडी के ‘माय’ समीकरण में सेंधमारी करने की योजना बनाई है, खासकर चुनावी साल में। यह तब और अधिक अहम हो गया है, जब राज्यपाल की नियुक्ति के बाद आरजेडी के प्रभाव को लेकर कई तरह की चर्चाएं शुरू हो गई हैं।
आरिफ मोहम्मद खान का राजनीतिक करियर
आरिफ मोहम्मद खान का राजनीतिक करियर काफी विविधतापूर्ण रहा है। वे पहले केरल के राज्यपाल रह चुके हैं और विभिन्न राजनीतिक दलों से जुड़े रहे हैं जिसमें जनता पार्टी, लोकदल, बहुजन समाज पार्टी, कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी शामिल हैं। वे नीतीश कुमार के साथ केंद्रीय कैबिनेट में मंत्री भी रहे हैं।
आरिफ मोहम्मद खान को खास पहचान तब मिली जब उन्होंने शाहबानो मामले पर कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा दे दिया था। यह एक ऐतिहासिक कदम था, जो उनके दृढ़ विचार और साहस को दर्शाता है। वे एक ऐसे नेता हैं जो अपनी विचारधारा पर खड़े रहते हैं और कभी भी किसी भी दबाव में नहीं आते। उनका यह कदम उस समय काफी चर्चा में आया था और राजनीति में उनकी अलग पहचान बनाने का कारण बना।
आरिफ मोहम्मद खान की नियुक्ति और भविष्य के परिपेक्ष्य
बिहार में आरिफ मोहम्मद खान की नियुक्ति को लेकर कई तरह के कयास लगाए जा रहे हैं। कुछ लोग इसे राज्य की राजनीति में बदलाव के संकेत के रूप में देख रहे हैं, वहीं अन्य इसे भाजपा की रणनीति का हिस्सा मान रहे हैं। हालांकि, राज्यपाल के रूप में उनका कार्यकाल कितना प्रभावी रहेगा, यह आने वाले समय में स्पष्ट होगा।
आरिफ मोहम्मद खान की शपथ के बाद, बिहार में राजनीतिक गतिविधियों के बीच यह सवाल भी उठ रहा है कि उनकी नियुक्ति राज्य की सियासत में कैसे बदलाव ला सकती है। बिहार के अगले विधानसभा चुनावों में इस नियुक्ति का क्या प्रभाव पड़ेगा, यह देखने लायक होगा।
आरिफ मोहम्मद खान का बिहार के राज्यपाल के रूप में चयन न केवल एक ऐतिहासिक घटना है, बल्कि यह राज्य की राजनीति में एक नई दिशा की ओर इशारा भी कर सकता है। उनका लंबा राजनीतिक अनुभव और विभिन्न दलों के साथ काम करने का इतिहास उन्हें इस महत्वपूर्ण पद के लिए उपयुक्त बनाता है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि राज्यपाल के रूप में उनकी भूमिका और उनकी नीतियां बिहार के विकास और राजनीति में कैसे बदलाव लाती हैं।
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