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Chaiti Chhath Puja 2025 : उदीयमान सूर्य के अर्घ्य के साथ चार दिवसीय चैती छठ महापर्व का समापन…

by Rakesh Pandey
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पटना : चैती छठ महापर्व शुक्रवार को श्रद्धा और भक्ति के साथ धूमधाम से मनाया गया। यह पर्व विशेष रूप से व्रतियों द्वारा उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ समाप्‍त हुआ। बिहार के विभिन्न जिलों, खासकर जमुई के किउल नदी घाट पर, श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ी थी। यह पर्व चार दिनों तक चलता है, जिसमें व्रतधारी कड़ी तपस्या और कठिन उपवास करते हैं।

चार दिवसीय महापर्व

चैती छठ का यह चार दिवसीय आयोजन विशेष धार्मिक महत्व रखता है। पहले दिन ‘नहाय खाय’ की रस्म निभाई जाती है, जिसमें व्रती स्वच्छता के साथ पानी और मिट्टी से स्नान कर भोजन ग्रहण करते हैं। दूसरे दिन ‘खरना’ होता है, जिसमें व्रती दिनभर उपवास रखते हुए रात को ठेकुआ, खीर और फल आदि का भोग खाते हैं। तीसरे दिन संध्या अर्घ्य दिया जाता है और अंतिम दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देकर यह पर्व संपन्न होता है। व्रती इस दौरान 36 घंटे का कठिन निर्जला उपवास रखते हैं।

पूजा की पारंपरिक विधि

महिलाएं नई साड़ी पहनकर पूजा करती हैं और पूजा की थाली सजाती हैं। इस थाली में ठेकुआ, फल, नारियल, गन्ना, दीपक और दूध रखा जाता है। वहीं, पुरुष व्रती पीले वस्त्रों में पूजा करते हैं। इस दौरान विशेष रूप से वातावरण भक्तिमय और धार्मिक रंग में रंगा हुआ होता है। सभी श्रद्धालु ईश्वर से परिवार की सुख-समृद्धि की कामना करते हैं और अगले वर्ष पुनः इस पर्व को श्रद्धा के साथ मनाने का संकल्प लेते हैं।

सुरक्षा और व्यवस्थाएं

चैती छठ पर्व के दौरान जिला प्रशासन ने सभी जरूरी व्यवस्थाओं का ध्यान रखा। घाटों की साफ-सफाई, पेयजल की उपलब्धता, स्वास्थ्य सेवा और प्रकाश व्यवस्था में कोई कसर नहीं छोड़ी गई थी। पुलिस बल भी श्रद्धालुओं की सुरक्षा के लिए तैनात रहे, ताकि पर्व का माहौल शांतिपूर्ण और सुरक्षित रहे।

समाज में भाईचारे और एकता का प्रतीक

चैती छठ महापर्व ने न केवल धार्मिक आस्था को प्रकट किया, बल्कि सामाजिक समरसता और पारिवारिक एकता का संदेश भी दिया। पर्व के दौरान श्रद्धालुओं ने एक-दूसरे को शुभकामनाएं दीं और एकता के साथ इस पर्व को मनाया। यह पर्व बिहार और पूरे देश के विभिन्न हिस्सों में धार्मिक धरोहर और पारंपरिक रीति-रिवाजों को जीवित रखने का एक अहम अवसर बन गया है।

उदित सूर्य के साथ छठ पर्व का समापन

उगते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद व्रती अपना उपवास तोड़ते हैं और पर्व का समापन करते हैं। यह दृश्य काफी भावपूर्ण और आकर्षक होता है, जब हजारों श्रद्धालु सूर्य को अर्घ्य देते हुए उसे अपने जीवन में सुख और समृद्धि का प्रतीक मानते हैं।

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