लेखक, संजय शेफर्ड, नई दिल्ली : यह दुनिया रहस्यों से भरी हुई है। कुछ ऐसे ही रहस्य महाराष्ट्र यात्रा के दौरान भी मुझे देखने को मिले। खासकर, जब हम मुंबई और पुणे होते हुए औरंगाबाद जिले में स्थित अजंता नामक एक गांव में पहुंचे। कहने को तो यह महाराष्ट्र का एक छोटा सा गांव है लेकिन अजंता-एलोरा की गुफाओं के लिए यह पूरी दुनिया में जाना जाता है।
यह हमारे लिए नया ही नहीं बिल्कुल अद्भुत था। इस जगह पर पत्थरों की एक बहुत ही जीवंत दुनिया नजर आ रही थी और हम देर तक उसी आकर्षण में खोये रहे।
एक एक कर उन तीस बड़ी चट्टानों तक पहुंचे जिन्हें काटकर बहुत सारी गुफाएं बनाई गई हैं। इन चट्टानों को काटकर बनाई गई गुफाओं को बौद्ध गुफा स्मारक कहा जाता है और ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि इनका निर्माण दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व से लेकर लगभग 480 ई. पू. में हुआ है। यह सभी बौद्ध धर्म से जुड़ी कलाकृतियां है, जिनका एक बहुत ही समृद्ध इतिहास है।
इन ऐतिहासिक तथ्यों पर एक नजर गई तो पता चला कि इन गुफाओं का निर्माण दो चरणों में किया गया था। पहले चरण की अजंता की गुफा का निर्माण दूसरी शताब्दी के समय हुआ था और दूसरे चरण वाली अजंता की गुफाओं का निर्माण तीन शताब्दी बाद 460-480 ईसवी में हुआ था। कहा जाता है कि पहले चरण में 9, 10, 12, 13 और 15 ए की गुफाओं का निर्माण हुआ था और दूसरे चरण में 20 गुफा मंदिरों का निर्माण किया गया।
हम एक एक करके कई गुफाओं में गए और देखने समझने के क्रम में ही पता चला कि पहले चरण को उस समय हीनयान कहा गया था जिसका सम्बन्ध बौद्ध धाम के हीनयान मत से है। दूसरे चरण को महायान चरण कहा गया था जिसका संबंध बौद्ध धाम के महायान मत से है।
इन गुफाओं के मिलने को लेकर काफी कुछ कहा जाता है। इस संबंध में हमें एक सज्जन ने बताया कि अजंता की गुफाओं को पहली बार एक ब्रिटिश आॅफिसर ने वर्ष 1819 में तब खोजा था जब वे शिकार कर रहे थे और उन्होंने झाड़ियों और पत्थरों से ढकी एक गुफा देखी।
फिर सैनिकों ने गुफा में जाने के लिए रास्ता बनाया तब उन्हें वहां पुराने इतिहास के साथ कई गुफाएं मिलीं। तब से आज तक अजंता की गुफाओं की खुदाई और अध्ययन का कार्य किया जा रहा है। इस जगह के महत्व को देखते हुए सन 1983 में इन गुफाओं को विश्व विरासत स्थल घोषित किया गया। इस समय यह गुफाएँ भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की देखरेख में हैं। अजंता की इन गुफाओं को देखने के लिए दुनिया भर से पर्यटक आते हैं।
इन गुफाओं को अपनी कारीगरी के साथ-साथ चित्रकला के लिए भी जाना जाता है जोकि बहुत ही विशिष्ट हैं। गुफाओं की दीवारों और छत पर भगवान बुद्ध के जीवन और शिक्षाओं को नक्काशी और चित्रों के द्वारा दशार्या गया है। इस जगह पर कुल 30 गुफाएं हैं जो उस समय के चित्रकला की विशेषता और प्रतिभा को जाहिर करती हैं।
अजंता की इन गुफाओं में 24 बौद्ध विहार और 5 हिंदू मंदिर बने हुए हैं। जिन्हें देखने के लिए हर साल बड़ी संख्या में लोग आते हैं और इनका नाम भारत में सबसे ज्यादा देखें जाने वाले पर्यटन स्थल में आता है। इन गुफाओं का इस्तेमाल बौद्ध मठ के रूप में किया जाता था जहां छात्र और भिक्षु अपने अध्ययन को वैराग में दर्ज करने के साथ करते हैं। यह जगह प्रकृति के बेहद करीब थी और भौतिकवादी दुनिया भी काफी दूर थी।
मुझे इस जगह पर जो चीज सबसे अच्छी लगी वह थी कलात्मकता का अद्भुत संयोजन। अजंता की गुफाओं के चैत्य गृह में प्रवेश करने के साथ ऐसा लगा कि हम किसी कलादीर्घा में आ गए हैं। कई सुंदर चित्र, छत और बड़ी बड़ी खिड़कियों को देखकर हमारा मन प्रसन्न हो गया। पहले चरण की खुदाई में मिली गुफाओं को देखकर मुझे दक्कन में पाई जाने वाली कोंडेन, पिटालखोरा और नासिक की गुफाओं की याद आ गई। इन गुफाओं को बनाने का दूसरा चरण 4 शताब्दी में शुरू हुआ था जोकि वताको के शासन के समय बनाई गई थी। दूसरे चरण की बनाई गई यह गुफाएं सबसे खूबसूरत और कलात्मक थी। इस चरण की गुफाओं में ज्यादातर पेंटिंग का काम किया गया था।
इस जगह पर आकर बार बार मन में यह सवाल भी उठता रहा कि इतनी खूबसूरत जगह पर हम पहले क्यों नहीं आये। जबकि इस जगह पर पहुंचना बहुत ही आसान है बस आपको यह तय करना होगा कि किस माध्यम से जाएं। यह जगह महाराष्ट्र में भले आती हो लेकिन मध्यप्रदेश राज्य की सीमा के करीब स्थित है।
इन गुफाओं की दूरी औरंगाबाद से 120 और जलगाँव से 60 किलोमीटर है। इन दोनों ही नगरों से आप इस जगह पर जा सकते हैं। औरंगाबाद एक बड़ा शहर है जो अच्छी तरह से पर्यटन की सुविधाओं से जुड़ा हुआ है। जलगाँव छोटा शहर है लेकिन यह गुफाओं के सबसे पास स्थित है।
इस जगह पर हम सब अक्टूबर में पहुंचे थे और अक्टूबर से फरवरी तक का समय घूमने के लिहाज से बहुत ही अनुकूल रहता है। इस दौरान अच्छी जलवायु और ठंडा मौसम होता है जिसकी वजह से यहां पर्यटकों की उपस्थिति पूरे साल की अपेक्षा काफी ज्यादा होती हैं। यह जगह खानपान और ठहरने के लिहाज से भी काफी है।
कई तरह के होटल और रिजॉर्ट जैसे विकल्प मौजूद हैं। हमने अपनी सुविधा और सहूलियत के हिसाब से ठहरने के लिए एक रिसोर्ट बुक किया लेकिन होटल और होमस्टे के भी अच्छे विकल्प मौजूद थे। इस जगह पर पर्यटन विभाग के भी कई रेस्ट हाउस के बारे में भी हमें पता चला पर पहले से बुकिंग नहीं होने के कारण हमें नहीं मिल पायी थी।
इस यात्रा में हमने इन गुफाओं को देखने के साथ साथ इस जगह के मौसम और खानपान को काफी एन्जॉय किया और एक कभी नहीं भूलने वाली स्मृति को लेकर अपने घर लौट आये। लेकिन इस जगह पर बहुत कुछ था जो अब तक हमारी यादों में बना हुआ है।
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