नई दिल्ली: इन दिनों उत्तर भारत के कई इलाकों, खासकर उत्तराखंड, में कड़ाके की ठंड महसूस हो रही है। मैदानी क्षेत्रों में शीतलहर का प्रकोप है, वहीं पहाड़ी इलाकों में बर्फबारी हो रही है। मौसम विभाग ने जनवरी में और ज्यादा ठंड और मानसून में असामान्य वर्षा की संभावना जताई है। विशेषज्ञों के अनुसार इस बार हिमालय में बर्फबारी रिकॉर्ड तोड़ सकती है। इसके पीछे जो प्रमुख कारण है, वह है ला नीना।
ला नीना क्या है
ला नीना एक प्राकृतिक जलवायु घटना है, जो समुद्र की सतह के तापमान में गिरावट से जुड़ी होती है। यह घटना विशेष रूप से मध्य और पूर्वी भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर में होती है। जब इन क्षेत्रों में समुद्र का तापमान सामान्य से काफी नीचे गिरता है, तो इसका प्रभाव वैश्विक मौसम पैटर्न पर पड़ता है। विशेष रूप से उष्णकटिबंधीय वायुमंडलीय परिसंचरण (हवा, प्रेशर और बारिश) में बदलाव होता है। इसका मुख्य असर मानसून की बारिश और ठंडक पर देखा जाता है।
भारत में ला नीना आमतौर पर सर्दियों के मौसम को प्रभावित करता है। इस दौरान सर्दियां अधिक ठंडी होती हैं और मानसून में अधिक वर्षा होती है। इसे वैज्ञानिकों द्वारा पर्यावरण और किसानों के लिए फायदेमंद माना जा रहा है, क्योंकि यह कृषि और जलस्रोतों को लाभ पहुंचा सकता है।
ला नीना का भारत पर प्रभाव
सर्दियों की ठंडक:- ला नीना का प्रमुख असर भारत में सर्दियों पर पड़ता है। विशेष रूप से उत्तरी भारत में, जैसे कि गंगा के मैदानी क्षेत्रों में, सर्दियां सामान्य से अधिक ठंडी हो जाती हैं। इस बार, खासकर उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर में बर्फबारी ने कड़ी ठंड का सामना करवा दिया है। जनवरी के महीने में और अधिक ठंड की संभावना है, क्योंकि इन क्षेत्रों में बर्फबारी की स्थिति बनी रहने की संभावना है।
वर्षा में वृद्धि:- ला नीना के दौरान भारत में अधिक वर्षा होने की संभावना होती है, खासकर दक्षिण-पश्चिम मानसून के दौरान। हालांकि, अत्यधिक वर्षा से बाढ़, फसल नुकसान और पशुधन की हानि हो सकती है, लेकिन वर्षा आधारित कृषि को इससे लाभ भी हो सकता है। यह भूजल स्तर में वृद्धि कर सकता है, जो कि कृषि के लिए फायदेमंद हो सकता है।
हिमालयी क्षेत्र में बदलाव:– ला नीना का प्रभाव खासकर हिमालयी क्षेत्र में देखा जा रहा है। यहाँ पर बर्फबारी के रिकॉर्ड टूटने की संभावना है, और मौसम में अचानक बदलाव देखा जा सकता है। यह मौसम कृषि, पर्यावरण और लोगों के जीवन को प्रभावित कर सकता है।
ला नीना के प्रभाव से सर्दियों में बदलाव
ला नीना के दौरान, सर्दियों के मौसम में सामान्य से अधिक ठंडक देखी जाती है। इसका असर खासकर गंगा के मैदानों और उत्तर भारत में होता है। इससे दिल्ली जैसे प्रमुख शहरों में तापमान सामान्य से कम हो सकता है। यह प्रभाव खासकर नवंबर से फरवरी तक देखने को मिलता है। आईएमडी (Indian Meteorological Department) ने 2020 में कहा था कि ला नीना के वर्षों में उत्तरी भारत में सर्दियों में ठंडक बढ़ सकती है, और यह वर्षा की अधिकता के साथ जुड़ा होता है।
ला नीना की अवधि और भविष्यवाणियां
ला नीना की स्थिति आमतौर पर तीन साल तक बनी रह सकती है। IMD ने 26 दिसंबर को बताया था कि ला नीना की स्थिति अगले कुछ महीनों तक बनी रह सकती है और जनवरी 2025 तक इसके प्रभाव जारी रहने की संभावना है। इसके अलावा, NWS (National Weather Service) Climate Prediction Center ने भविष्यवाणी की है कि नवंबर 2024 से जनवरी 2025 के बीच ला नीना की स्थिति उभरने की संभावना है।
ला नीना के दौरान होने वाले प्रभाव
बाढ़ और फसल नुकसान: जैसे कि ला नीना के दौरान अधिक वर्षा होती है, इससे नदियों में बाढ़ का खतरा बढ़ सकता है। इसके साथ ही, फसलों को भी नुकसान पहुँच सकता है, खासकर यदि वर्षा अत्यधिक हो जाए।
कृषि में लाभ: हालांकि बाढ़ और फसल नुकसान हो सकता है, लेकिन वर्षा आधारित कृषि के लिए यह स्थिति फायदेमंद हो सकती है। भूजल स्तर बढ़ने से पानी की उपलब्धता में सुधार हो सकता है, जो दीर्घकालिक कृषि उत्पादन को बढ़ावा देता है।
अन्य जलवायु प्रभाव
इसके अलावा, भारतीय महासागर का समुद्री तापमान भी भारतीय मौसम पर असर डालता है। IMD ने बताया कि वर्तमान में हिंद महासागर के अधिकांश हिस्सों में समुद्र का तापमान औसत से अधिक है, जिससे मौसम में और बदलाव हो सकते हैं।
ला नीना एक महत्वपूर्ण जलवायु घटना है, जिसका असर भारत की सर्दियों, वर्षा और कृषि पर पड़ा सकता है। सर्दियों की ठंडक बढ़ने के साथ-साथ बारिश की अधिकता से पर्यावरण और कृषि दोनों पर प्रभाव पड़ता है। हालांकि, यह स्थिति किसानों के लिए फायदेमंद हो सकती है, लेकिन बाढ़ और फसल नुकसान जैसी समस्याएँ भी उत्पन्न हो सकती हैं। इसके चलते, भारतीय मौसम विभाग और अन्य विशेषज्ञों की निगरानी इस बदलाव को बेहतर तरीके से समझने और इससे निपटने के लिए महत्वपूर्ण है।