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Mahakumbh Mela 2025 : 144 साल बाद लग रहा ऐसा महाकुंभ, जानें कुंभ और महाकुंभ में अंतर

by Rakesh Pandey
Mahakumbh Mela 2025
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फीचर डेस्क : भारत में हिंदू धर्म के सबसे बड़े और पवित्र मेलों में से एक कुंभ मेला हर 12 साल में चार प्रमुख स्थानों – प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में आयोजित होता है। इस बार, 2025 में, एक सामान्य कुंभ मेला नहीं बल्कि महाकुंभ मेला आयोजित होने जा रहा है। और यह महाकुंभ भी खास है, क्योंकि यह 144 साल बाद हो रहा है। आमतौर पर कुंभ मेला हर 12 साल में आयोजित होता है, लेकिन महाकुंभ की तारीख विशेष खगोलीय और ज्योतिषीय स्थिति पर आधारित होती है, जो केवल 144 साल में एक बार बनती है।

महाकुंभ मेला 2025 की विशेषताएं

महाकुंभ मेला 2025 की शुरुआत 13 जनवरी से होगी और यह 26 फरवरी तक चलेगा। इस दौरान लाखों श्रद्धालु विशेष रूप से 14 जनवरी को शाही स्नान के अवसर पर प्रयागराज के पवित्र त्रिवेणी संगम में स्नान करने के लिए पहुंचेंगे। यह महाकुंभ इसलिए विशेष है, क्योंकि इसमें करीब 10 करोड़ श्रद्धालुओं के भाग लेने की उम्मीद जताई जा रही है। श्रद्धालु यहां स्नान करके अपने पापों से मुक्ति और पुण्य की प्राप्ति की कामना करेंगे।

कुंभ और महाकुंभ में अंतर

कुंभ मेला और महाकुंभ मेला दोनों ही ग्रहों और नक्षत्रों की विशेष स्थिति पर आधारित होते हैं, लेकिन इनमें महत्वपूर्ण अंतर है। सामान्य कुंभ मेला तब आयोजित होता है जब सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति एक विशिष्ट खगोलीय स्थिति में होते हैं, जबकि महाकुंभ तब होता है जब बृहस्पति मकर राशि में होता है और सूर्य और चंद्रमा अन्य शुभ स्थानों पर होते हैं। यह खगोलीय स्थिति हर 144 साल में एक बार बनती है, जिसे महाकुंभ’ कहा जाता है।

महाकुंभ का आयोजन एक विशेष ज्योतिषीय संयोग पर निर्भर होता है, जो 144 वर्षों में एक बार होता है। हिंदू धर्म और ज्योतिषीय गणनाओं में इस समय का बहुत महत्व है, क्योंकि 12 कुंभ मेलों के बाद (12×12=144 साल) महाकुंभ मेला आयोजित होता है। इस दौरान पृथ्वी पर विशेष ऊर्जा और दिव्यता का आगमन होता है, जिसे अमृत मंथन से जोड़ा जाता है।

महाकुंभ में पुण्य का महत्व

महाकुंभ मेला और सामान्य कुंभ मेला दोनों ही पुण्य की प्राप्ति के लिए बेहद महत्वपूर्ण माने जाते हैं, लेकिन महाकुंभ को विशेष रूप से अधिक पुण्य देने वाला माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार, महाकुंभ में स्नान और पूजा करने से कई गुना अधिक पुण्य मिलता है। इसे देवताओं और ऋषियों द्वारा अत्यधिक पवित्र माना गया है, क्योंकि यह समय विशेष रूप से उच्च आধ্যात्मिक और खगोलीय स्थिति में होता है।

पौराणिक कथाओं में अमृत मंथन की कथा में कुंभ मेला का उल्लेख मिलता है, जिसमें अमृत कलश से विशेष ऊर्जा पृथ्वी पर उतरी थी। इसी ऊर्जा की वजह से महाकुंभ मेला और भी पवित्र और दिव्य माना जाता है।

महाकुंभ का आध्यात्मिक महत्व

महाकुंभ मेला को मोक्ष प्राप्ति का अवसर भी माना जाता है। यह समय विशेष रूप से साधु-संतों, ऋषियों और योगियों के लिए ध्यान और साधना का होता है। इसके अलावा, यह समय समाज के लिए आध्यात्मिक उन्नति का भी अवसर होता है। महाकुंभ में लाखों श्रद्धालु, संत, महात्मा और अखाड़े शामिल होते हैं, जो धर्म, ध्यान, साधना और संत वचनों के माध्यम से समाज में शांति और सद्भाव फैलाने का काम करते हैं।

विशेषकर महाकुंभ के दौरान, त्रिवेणी संगम पर स्नान करने से पापों का नाश होता है और पुण्य की प्राप्ति होती है। यह अवसर भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता के महत्व को पुनः स्थापित करता है, जिससे लाखों श्रद्धालु इस अवसर का लाभ उठाने के लिए यहां पहुंचते हैं।

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