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झारखंड के जमशेदपुर में 250 ऑटिज्म के बच्चे, जानें क्या है बीमारी और कैसे बचें

by Rakesh Pandey
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हेल्थ डेस्क, जमशेदपुर/World Autism Awareness Day: 2 अप्रैल को विश्व ऑटिज्म दिवस मनाया जाता है। इसके माध्यम से इस बीमारी के प्रति लोगों को जागरूक किया जाता है और बताया जाता है कि इस बीमारी से हम कैसे बच सकते हैं। झारखंड के जमशेदपुर में इस बीमारी के लगभग 250 बच्चे हैं, जिसमें से अधिकतर का इलाज चल रहा है। वहीं, कई ऑटिज्म बच्चे का इलाज सही समय पर शुरू होने से वे एक सामान्य बच्चे की तरह अपनी जिंदगी जी रहे हैं। इस बीमारी की पहचान सही समय पर होना अति-आवश्यक है।

World Autism Awareness Day: जमशेदपुर में मरीजों की संख्या बढ़ी

जमशेदपुर शहर में ऑटिज्म से पीड़ित बच्चों की संख्या बढ़ी है। वर्ष 2004 में ऑटिज्म के मात्र पांच मरीज थे, जो अब बढ़ कर 250 तक पहुंच गए हैं। हालांकि, मरीजों की संख्या बढ़ने का एक कारण लोगों में जागरूकता भी है। पहले लोग इस बीमारी को सार्वजनिक नहीं करते थे, लेकिन अब ऐसे मरीजों का रजिस्ट्रेशन हो रहा है। ऐसे बच्चों को सरकार की तरफ से कई लाभ भी मिलते हैं, जिसमें ट्रेन किराया में रियायत मिलना प्रमुख है।

World Autism Awareness Day: ऑटिज्म क्या है?

जमशेदपुर के जाने-माने मनोचिकित्सक डॉ. महेश हेम्ब्रम कहते हैं कि सबसे पहले ऑटिज्म को लेकर लोगों को जागरूक होने की जरूरत है। इस बीमारी की पहचान सही समय पर होने से अधिकतर बच्चों की बीमारी को नियंत्रित किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि ऑटिज्म एक न्यूरोलॉजिकल स्थिति है। यानी एक प्रकार का मानसिक रोग है, जो विकास से संबंधित विकार है। इसके लक्षण जन्म से ही नजर आने लगते हैं। इस दौरान माता-पिता को विशेष रूप से ध्यान देने की जरूरत होती है। ऑटिज्म से पीड़ित बच्चे का दिमाग सामान्य बच्चों की तुलना में कम विकसित होता है या अलग तरीके से काम करता है।

World Autism Awareness Day: तीन तरह से होता इलाज

डॉ. महेश हेम्ब्रम कहते हैं कि ऑटिज्म का इलाज तीन तरह से होता है। इसमें ऑक्यूपेशनल थेरेपी, स्पीच थेरेपी और बिहेवियर थेरेपी शामिल है। इसके माध्यम से मरीजों की जिंदगी एक सामान्य बच्चों की तरह ही हो जाती है, लेकिन जरूरी है कि बच्चों की बीमारी की पहचान शुरुआती दौर में ही हो जाए। बीमारी की पहचान जितनी जल्दी होगी, मरीज में सुधार की संभावना उतनी ही अधिक रहती है।

World Autism Awareness Day: ऑटिज्म के लक्षण

– छह माह की उम्र में बच्चों का कोई प्रतिक्रिया नहीं आना।

– नौ महीने की उम्र तक अगर बच्चा माता-पिता के साथ कोई भी संप्रेषण न करे तो चिकित्सक से दिखाएं।

– एक साल की आयु तक किसी चीज की ओर इशारा नहीं करना।

– उसका नाम लेकर बुलाने पर कोई प्रतिक्रिया नहीं आना।

 

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