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WORLD THEATRE DAY 2025 : 1929 में स्थापित हुआ ‘पैलेस ऑफ वैरायटी’, कपूर खानदान का रहा है गहरा संबंध

आज भी रंगमंच के क्षेत्र में पैलेस ऑफ वैरायटी की महत्वपूर्ण भूमिका है। यहां पर न केवल फिल्म महोत्सव आयोजित किए जाते हैं, बल्कि कलाकारों के लिए विभिन्न प्रकार की सुविधाएं भी उपलब्ध कराई जाती हैं।

by Rakesh Pandey
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पटना: WORLD THEATRE DAY 2025 : बिहार और थियेटर का नाता बहुत पुराना है। राजधानी पटना में 1929 में पूर्वी भारत का पहला थियेटर स्थापित हुआ था, जो आज भी अपनी ऐतिहासिक धरोहर और रंगमंच की दुनिया में अहम स्थान रखता है। इस थियेटर को ‘पैलेस ऑफ वैरायटी’ के नाम से जाना जाता था, जो आज ‘रीजेंट सिनेमा’ के नाम से प्रसिद्ध है। 8 मई 1928 को इस थियेटर को लाइसेंस मिला था, जो उस समय के कलेक्टर द्वारा जारी किया गया था। इसका इतिहास रंगमंच के क्षेत्र में काफी गौरवशाली और प्रेरणादायक रहा है।

शम्मी कपूर भी आए थे पटना

‘पैलेस ऑफ वैरायटी’ की स्थापना पटना के एक प्रतिष्ठित शख्स कैलाश बिहारी सिन्हा ने की थी। इस थियेटर में नाटक, गीत और संगीत के आयोजन होते थे, जिनमें कोलकाता से भी कलाकार आते थे। खास बात यह थी कि इस थियेटर से जुड़ी बॉलीवुड की कई प्रमुख हस्तियां भी इस मंच पर अपने अभिनय का जलवा दिखा चुकी हैं। प्रसिद्ध अभिनेता पृथ्वीराज कपूर ने भी यहां नाटक का मंचन किया था। उनके पुत्र शम्मी कपूर भी उस समय पटना आए थे, और आज भी उनकी एक तस्वीर ‘पैलेस ऑफ वैरायटी’ के ऐतिहासिक कक्ष में मौजूद है।

रामवृक्ष बेनीपुरी की ‘आम्रपाली’ का मंचन

पैलेस ऑफ वैरायटी के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना तब घटी जब प्रसिद्ध लेखक रामवृक्ष बेनीपुरी की लिखी हुई पटकथा ‘आम्रपाली’ का मंचन यहां हुआ। कैलाश बिहारी सिन्हा के पोते सुमन सिन्हा ने बताया कि पृथ्वीराज कपूर जब इस नाटक के मंचन के लिए पटना पहुंचे, तो उन्हें सही हीरोइन की तलाश थी। उस समय रामवृक्ष बेनीपुरी ने पटना की ही कलाकार नीरा वर्मा से उन्हें मिलवाया, जो इस नाटक की मुख्य हीरोइन बनीं और नाटक का सफल मंचन हुआ।

‘किस्सा कुर्सी का’ फिल्म को जलाया गया

शिवेंद्र सिंह, जो पैलेस ऑफ वैरायटी से जुड़े बिहार के प्रमुख कलाकारों में शामिल थे, ने भी रंगमंच की दुनिया में अपनी अलग पहचान बनाई। उन्हें जवाहरलाल नेहरू ने रॉयल एकेडमी ऑफ ड्रामेटिक आर्ट्स, लंदन में ट्रेनिंग के लिए भेजा था। उन्होंने 4 साल के कोर्स को मात्र 3 साल में पूरा किया। आपातकाल के दौरान शिवेंद्र कुमार सिंह ने फिल्म ‘किस्सा कुर्सी का’ बनाई थी, जिसे सरकार द्वारा जलवा दिया गया था, क्योंकि फिल्म में कुछ ऐसे संदर्भ थे, जो उस समय की राजनीति को चुनौती देते थे।

आज भी हो रहा है थियेटर का संचालन

1949 के बाद, ‘पैलेस ऑफ वैरायटी’ को रीजेंट सिनेमा के नाम से जाना जाने लगा। यहां पहली फिल्म ‘हरिश्चंद्र तारामती’ का प्रदर्शन हुआ था और अब तक रीजेंट सिनेमा में 5000 से अधिक फिल्में प्रदर्शित हो चुकी हैं। इसके बावजूद, सिनेमा हॉल परिसर में आज भी थियेटर का संचालन होता है, जो ‘हाउस ऑफ वैरायटी’ के नाम से जाना जाता है। सुमन सिन्हा, जो कैलाश बिहारी सिन्हा के पोते हैं, अपने व्यक्तिगत प्रयासों से थियेटर का संचालन कर रहे हैं और कई कलाकारों को रंगमंच से जोड़ने का काम कर रहे हैं।

कलाकारों के लिए लगातार किया जा रहा योगदान

सुमन सिन्हा ने बताया कि उनके दादाजी ने जिस पैलेस ऑफ वैरायटी की स्थापना की थी, वह आज भी रंगमंच के क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। यहां पर न केवल फिल्म महोत्सव आयोजित किए जाते हैं, बल्कि कलाकारों के लिए विभिन्न प्रकार की सुविधाएं भी उपलब्ध कराई जाती हैं। उन्होंने यह भी कहा कि बिहार के रंगमंच से कई कलाकार राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बना चुके हैं, जिनमें पंकज त्रिपाठी, संजय मिश्रा और अखलिंद्र मिश्रा जैसे प्रमुख नाम शामिल हैं।

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