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भारत में बढ़ती अंतरराष्ट्रीय बोर्डों की लोकप्रियता क्यों मिलेनियल पेरेंट्स चुन रहे हैं IB और कैम्ब्रिज स्कूल

शहरी भारत में IB और कैम्ब्रिज स्कूल अब "प्रगतिशील सोच" और "फॉरवर्ड-थिंकिंग" का प्रतीक बन चुके हैं।

by Reeta Rai Sagar
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सेंट्रल डेस्क। भारत में ज्यादातर पेरेंट्स बोर्ड के सेलेक्शन को लेकर संशय में है। भारत में IB और कैम्ब्रिज स्कूलों में 300% की बढ़त हुई है। पिछले एक दशक में भारत में अंतरराष्ट्रीय बोर्डों की मांग में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है। इंटरनेशनल बैकलॉरिएट ऑर्गेनाइजेशन (IBO) के अनुसार, वर्ष 2024 तक भारत में 225 से अधिक IB वर्ल्ड स्कूल्स हैं, जबकि 2014 में इनकी संख्या केवल 100 के आसपास थी। वहीं, कैम्ब्रिज असेसमेंट इंटरनेशनल एजुकेशन (CAIE) से जुड़ी स्कूलों की संख्या 700 से अधिक हो चुकी है।

यह वृद्धि विशेष रूप से महानगरों और शहरी क्षेत्रों में देखी गई है, जहां मिलेनियल पेरेंट्स- 1981 से 1996 के बीच जन्मे माता-पिता पारंपरिक भारतीय बोर्डों जैसे CBSE, ICSE या राज्य बोर्डों की बजाय अब IB और कैम्ब्रिज जैसे इंटरनेशनल बोर्डों को प्राथमिकता दे रहे हैं।

क्यों कर रहे हैं मिलेनियल पेरेंट्स इंटरनेशनल बोर्डों की ओर रुख?
CBSE और अन्य पारंपरिक बोर्ड अभी भी थ्योरी और याद करने पर जोर देते हैं, जबकि IB और कैम्ब्रिज जैसे अंतरराष्ट्रीय बोर्ड छात्रों में क्रिटिकल थिंकिंग, प्रॉब्लम सॉल्विंग, टीमवर्क और वास्तविक दुनिया में एप्लिकेशन जैसे कौशल विकसित करने पर केंद्रित हैं।

अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालयों में प्रवेश की तैयारी
IB डिप्लोमा प्रोग्राम या कैम्ब्रिज इंटरनेशनल A लेवल के छात्र अमेरिका, यूके और कनाडा जैसे देशों के विश्वविद्यालयों में अधिक स्वीकृति प्राप्त करते हैं। आंतरिक मूल्यांकन और प्रोजेक्ट वर्क उन्हें प्रतियोगी बढ़त प्रदान करते हैं।

संपूर्ण व्यक्तित्व विकास की दिशा में कदम
IB और कैम्ब्रिज बोर्ड की परीक्षा प्रणाली में प्रोजेक्ट आधारित मूल्यांकन, इन-हाउस असेसमेंट और गतिविधि आधारित शिक्षण शामिल होते हैं। यह न केवल परीक्षाओं का बोझ कम करता है बल्कि विद्यार्थियों के समग्र विकास को भी प्रोत्साहित करता है।

बदलती अभिभावक मानसिकता और पेरेंटिंग फिलॉसफी
आज के मिलेनियल पेरेंट्स बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य और सीखने के अनुभव को अधिक प्राथमिकता देते हैं। वे अपने बचपन की परीक्षा-केंद्रित शिक्षा व्यवस्था से हटकर अब आनंददायक और इंटरेक्टिव लर्निंग मॉडल की ओर बढ़ रहे हैं।

सोशल प्रेशर और स्टेटस सिंबल बनते अंतरराष्ट्रीय बोर्ड
शहरी भारत में IB और कैम्ब्रिज स्कूल अब “प्रगतिशील सोच” और “फॉरवर्ड-थिंकिंग” का प्रतीक बन चुके हैं। पेरेंट्स के बीच यह धारणा बन रही है कि अंतरराष्ट्रीय बोर्ड से पढ़ाई कराना आधुनिकता और समझदारी का संकेत है।

क्या इंटरनेशनल बोर्ड हैं सभी के लिए सही विकल्प?
इन बोर्डों की उच्च फीस एक महत्वपूर्ण कारक है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। यह चयन माता-पिता की आर्थिक क्षमता, भविष्य की योजनाएं और बच्चे की व्यक्तिगत ज़रूरतों पर निर्भर करता है।
स्वमूल्यांकन हेतु प्रश्न:
• क्या आप विदेश में उच्च शिक्षा की योजना बना रहे हैं?
• क्या आप 10–12 वर्षों तक प्रीमियम फीस चुकाने में सक्षम हैं?
• क्या आप अंक-आधारित प्रतियोगिता की बजाय कौशल आधारित शिक्षा को प्राथमिकता देते हैं?

यदि उत्तर “हां” है, तो IB या कैम्ब्रिज बोर्ड आपके लिए उपयुक्त हो सकते हैं। वहीं, यदि बच्चा संरचना और भारतीय प्रवेश परीक्षाओं में उत्कृष्टता प्राप्त करता है, तो CBSE या ICSE अभी भी मजबूत विकल्प हैं।
मिलेनियल पेरेंट्स अधिक जागरूक, वैश्विक मानकों से परिचित और अपने बच्चों के लिए सर्वश्रेष्ठ की चाह रखने वाले हैं। भारत में IB और कैम्ब्रिज बोर्डों की बढ़ती उपस्थिति इस बदलती सोच का प्रमाण है। यह पारंपरिक शिक्षा प्रणाली को नकारना नहीं, बल्कि भविष्य के लिए एक नए दृष्टिकोण की तलाश है।

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