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Jharkhand shaharanaama : शहरनामा  : पाठशाला बनी अखाड़ा

by Birendra Ojha
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राजनीति के लिए बड़ी पाठशाला सरकारी अस्पताल को ही माना जाता है, क्योंकि दूसरों की सेहत का ख्याल रखने वाला ही अक्सर बीमार रहता है। इस बार तो हद ही हो गई, स्वस्थ होने के लिए आए तीन लोग सुरधाम पहुंच गए। खैर, इसी बहाने यह पाठशाला अखाड़ा में तब्दील हो चुकी है। चतुर चाचा भी होशियार भतीजे को खरी-खोटी सुना रहे हैं, तो बहूरानी भी काफी कुछ कह गईं। ले-देकर ठीकरा उसी के माथे फूटा, जिस पर कलंक का टीका लगना था। भतीजा अभी शांत हैं, क्योंकि उसी ने इसके कायाकल्प का संकल्प लिया था। चाचा अपने समय में खून-पसीना बहाकर भी इसे नहीं सुधार सके थे। भतीजे ने भी बिल्डिंग दर बिल्डिंग खड़ी कर दी, जबकि पुराने में प्लास्टर तक कराने की जहमत नहीं उठाई। बहरहाल, इसी पाठशाला में पढ़ाई करके कई आक्रामक नेता बन गए, कुछ ने समाजसेवी की पगड़ी बांध ली।

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समाज की राजनीति

आमतौर पर राजनीति बड़े सदन की कुर्सी के लिए होती है, लेकिन बड़ी संख्या समाज की राजनीति के लिए भी होती है। हर समाज में कुछ कुख्यात-विख्यात-प्रख्यात हस्ती होते हैं, अमूमन उन्हें ही अपना नेता या कहें प्रतिनिधि चुन लिया जाता है। इसमें ज्यादातर प्रतिनिधि आक्रामक स्वभाव के ही होते हैं, जिससे यह धारणा बनती है कि यही व्यक्ति समाज की मांग प्रभावी तरीके से मनवा सकता है। बहरहाल, हम बात कर रहे हैं, ऐसे नेता की जो हाल में असमय काल के गाल में समा गए। कारण चाहे जो हो, लेकिन उनके लिए बड़े नेता भी आ गए। उनके डील-डौल और तेवर को देखकर ऐसा लगा कि अब तो प्रशासन को घुटने पर बैठा ही देंगे, लेकिन पता नहीं क्या हुआ, दूसरे दिन से ही नेताजी कहीं गायब हो गए। उनकी मांग भी पता नहीं कहां चली गई। पुलिसिया अनुसंधान भी अभी पूरी नहीं हुई है।

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पुल ने किया खुश

लौहनगरी के उपनगर मानगो में एक पुल बन रहा है, जिससे अब सभी खुश नजर आ रहे हैं। पहले इसे बनाने वाले नेताजी और उनके समर्थकों ने खुशी व्यक्त की, तो अब इसमें घोटाला-गड़बड़ी की बात करने वाले भी लगता है कि खुश हो गए हैं। चचा भी इसमें कुछ योगदान जुड़वा कर खुश हो गए हैं, तो बीच में काम बंद कराने वाले उनके समर्थक भी लगता है संतुष्ट हो गए हैं। सबसे ज्यादा खुश तो मानगो में विचरण करने वाले हैं, जो अक्सर चौक पर बैरिकेडिंग या संकरे रास्ते की वजह से दुखी रहते थे। पुल बनने के बाद पता नहीं जाम का क्या होगा, लेकिन अभी चौक तो मैदान सरीखा नजर आ रहा है। अब ट्रैफिक पुलिस भी नजर नहीं आती, क्योंकि उनका काम ही हल्का हो गया है। जिसे जहां से मन आता है, इधर से उधर विचरण कर जाता है।

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निगम का क्या होगा

लंबे समय से मानगो को अक्षेस से निगम बने हुए हो गया, लेकिन उसका भविष्य अब भी ठीक नहीं दिखाई दे रहा है। बीच में कुछ लोग मेयर-डिप्टी मेयर व वार्ड सदस्य बनने की होड़ में दिख रहे थे, पता नहीं वे अब किस बिल में समा गए हैं। हो भी क्यों नहीं, उन्हें निगम का ही कोई भविष्य नजर नहीं आ रहा है। बीच में जब चुनाव की सुगबुगाहट शुरू हुई थी, तो समाज में घंटे-दो घंटे देने वाले भी मूंछ पर ताव देने लगे थे। अब उनका भी अता-पता नहीं है। अब वही मार्केट में दिख रहे हैं, जिनके लिए समाजसेवा शौक बन चुका है। हाल में, पंचायत वालों ने विद्रोह का बिगुल फूंक कर निगम की रही-सही संभावना की भी कमर तोड़ कर रख दी है। उन्होंने चेतावनी दी है कि खबरदार, जो हमारी तरफ आंख उठाकर भी देख लिया तो ठीक नहीं होगा।

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