Ranchi (Jharkhand) : झारखंड में करोड़ों रुपये के टेंडर घोटाले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने रांची स्थित पीएमएलए स्पेशल कोर्ट में एक महत्वपूर्ण याचिका दाखिल की है। ED ने कोर्ट को बताया है कि पूर्व मंत्री आलमगीर आलम, उनके विशेष कार्य पदाधिकारी (OSD) संजीव लाल, और ग्रामीण विकास विभाग के पूर्व इंजीनियर-इन-चीफ वीरेंद्र राम के खिलाफ अब तक अभियोजन (मुकदमा चलाने) की अनुमति राज्य सरकार द्वारा नहीं दी गई है।
120 दिन से इंतजार, अब ‘मौन सहमति’ की मांग
ED ने कोर्ट को बताया कि उसने करीब 120 दिन पहले राज्य सरकार से इन तीनों आरोपितों के खिलाफ अभियोजन स्वीकृति मांगी थी, लेकिन अब तक कोई जवाब नहीं मिला है। इसी को आधार बनाकर, जांच एजेंसी ने कोर्ट से अनुरोध किया है कि सरकार की इस लंबी चुप्पी को ‘मानी हुई स्वीकृति’ (deemed sanction) के रूप में मानते हुए, आगे की कार्रवाई की अनुमति दी जाए।
सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले का हवाला
एजेंसी ने अपनी याचिका में सुप्रीम कोर्ट के एक हालिया फैसले का भी जिक्र किया है, जिसके अनुसार नवंबर 2024 से सरकारी अधिकारियों के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग जैसे मामलों में मुकदमा शुरू करने से पहले संबंधित सरकार की अनुमति आवश्यक है। इससे पहले ऐसी स्वीकृति की जरूरत नहीं थी, लेकिन अब यह एक अनिवार्य प्रक्रिया बन गई है।
यह मामला करोड़ों रुपये के टेंडर घोटाले से जुड़ा है, जिसमें आरोपी अधिकारियों पर भ्रष्टाचार और अवैध तरीके से धन अर्जित करने के गंभीर आरोप हैं। ED की यह याचिका दर्शाता है कि एजेंसी इन मामलों में तेजी से कार्रवाई करना चाहती है, लेकिन सरकारी स्तर पर मंजूरी मिलने में हो रही देरी से जांच प्रभावित हो रही है। अब देखना होगा कि पीएमएलए स्पेशल कोर्ट इस याचिका पर क्या रुख अपनाता है और क्या सरकार की चुप्पी को अभियोजन की ‘मानी हुई स्वीकृति’ माना जाता है।
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