सुपौल: महाकुंभ में तो वैसे भी एक बढ़कर एक अनोखी चीजें देखने को मिलती हैं। लोग चमत्कृत हो जाते हैं। आस्था की इतनी अधिक गहराई कहीं और देखने को नहीं मिलती। ऐसे में बिहार के सुपौल जिले के पिपरा प्रखंड के रामनगर कौशलीपट्टी गांव के युवा धावक रूपेश यादव ने अपनी मेहनत और समर्पण से एक अद्भुत काम कर दिखाया। रूपेश ने 1100 किलोमीटर की लंबी दूरी दौड़कर महाकुंभ में स्नान किया। रूपेश के लिए यह न केवल एक धार्मिक यात्रा थी, बल्कि एक साहसिक और संघर्षपूर्ण यात्रा भी थी।
हर दिन दस घंटे दौड़ा, मुश्किलों का सामना
रूपेश ने 23 जनवरी को अपने इस ऐतिहासिक सफर की शुरुआत सहरसा से की और 8 फरवरी को प्रयागराज के संगम में पहुंचकर स्नान किया। हर दिन करीब 10 घंटे की दौड़ में रूपेश ने कठिन रास्तों और कई मुश्किलों का सामना किया, लेकिन रूपेश के कदम लक्ष्य की ओर बढ़ते रहे। उनकी यह यात्रा आत्मबल, संघर्ष और राष्ट्रभक्ति का प्रतीक बन गई।
रास्ते में आईं कठिनाइयां, नहीं हारी हिम्मत
यात्रा के दौरान रूपेश को कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। सबसे बड़ी चुनौती तब आई जब उनका पर्स और मोबाइल चोरी हो गया, जिससे उनका सफर मुश्किलों में घिर गया। हालांकि, रूपेश ने हार नहीं मानी और स्थानीय लोगों की मदद से आगे बढ़ते रहे। उन्होंने QR कोड के जरिए रास्ते में आर्थिक मदद भी जुटाई और करीब 5-6 हजार रुपये लोगों की मदद के माध्यम से इकट्ठे किए।
रास्ते से लौट गए दोस्त, अकेले पूरा किया सफर
रूपेश की यात्रा की शुरुआत में दो दोस्त उनके साथ थे, लेकिन बख्तियारपुर पहुंचने से पहले ही वे थककर वापस लौट गए। इसके बाद, रूपेश ने अकेले ही 1100 किलोमीटर की लंबी दूरी तय की। यह उनके साहस और दृढ़ता का अद्भुत उदाहरण था, जिससे उन्होंने साबित किया कि जब हिम्मत और इच्छाशक्ति मजबूत हो, तो कोई भी मुश्किल रुकावट नहीं बन सकती।
शुरुआत में उड़ा मजाक, अब पूरे गांव में हो रही तारीफ
रूपेश के पिता रामप्रवेश यादव बताते हैं कि शुरुआत में गांव के लोग उनके बेटे का मजाक उड़ाते थे और इसे पैसे कमाने का एक तरीका मानते थे। लेकिन जब लोगों ने रूपेश की दृढ़ इच्छाशक्ति और संघर्ष को देखा, तो उनकी सोच बदल गई। आज पूरे इलाके में रूपेश की तारीफ हो रही है, और उनका परिवार गर्व महसूस कर रहा है।
अग्निवीर के रूप में चयनित
रूपेश ने अपनी यात्रा के साथ-साथ अपनी पढ़ाई भी जारी रखी है। वह बीएनएमयू के घैलाढ़ कॉलेज से स्नातक की पढ़ाई कर रहे हैं और 2024 में भारतीय सेना के अग्निवीर के रूप में चयनित हो चुके हैं। उनका सपना भारत के लिए मैराथन में गोल्ड मेडल जीतना है और इसके लिए उन्होंने समाज और सरकार से सहयोग की अपील भी की है।
दूसरों के लिए बने प्रेरणास्रोत
रूपेश की यह यात्रा और उनकी संघर्षपूर्ण कहानी निश्चित रूप से दूसरों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी है। उन्होंने यह साबित कर दिया कि जब किसी में आत्मविश्वास और संघर्ष की भावना हो, तो कोई भी मुश्किल रास्ता उसे रोक नहीं सकता।