रांची: मुख्य सचिव अलका तिवारी ने झारखंड में जल संरक्षण के लिए नए उपाय अपनाने पर जोर दिया और अधिकारियों से समन्वय बनाकर इस दिशा में कार्य करने का निर्देश दिया। शुक्रवार को नेशनल वाटर मिशन के तहत राज्य आधारित एक्शन प्लान पर स्टीयरिंग कमेटी की बैठक की वह अध्यक्षता कर रही थीं। उन्होंने कहा कि राज्य में पर्याप्त बारिश होती है, लेकिन जल संरक्षण की दिशा में अभी भी बहुत कुछ किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि देश के कई हिस्सों में जल संकट एक गंभीर समस्या बन चुका है, हालांकि झारखंड में यह स्थिति नहीं है। फिर भी बढ़ती जनसंख्या और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को देखते हुए राज्य में जल संकट की स्थिति धीरे-धीरे उत्पन्न हो सकती है, जिससे निपटने के लिए पहले से ही प्रयास करना जरूरी है। मौके पर नगर विकास सचिव सुनील कुमार, जल संसाधन सचिव प्रशांत कुमार, कृषि सचिव अबु बक्कर सिद्दीकी और अन्य अधिकारी मौजूद थे।
जल खपत का जुटाएं आंकड़ा
उन्होंने जल संरक्षण के लिए इजराइल और साइप्रस जैसे देशों के उपायों को भी उदाहरण के तौर पर लिया। जहां जल संकट के बावजूद तकनीक और संसाधनों के बेहतर प्रबंधन से जल संरक्षण में सफलता मिली है। मुख्य सचिव ने जल खपत के आंकड़ों को जुटाने के महत्व को भी रेखांकित किया, जो जल संसाधन के प्रबंधन और संरक्षण में सहायक हो सकते हैं। इस दौरान बताया गया कि राज्य सरकार टाटा और बोकारो स्टील जैसी बड़ी कंपनियों को जल आपूर्ति करती है, लेकिन जिन उद्योगों द्वारा भूगर्भ जल का उपयोग किया जाता है उनके आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं। इस मुद्दे पर जल्द ही एक्शन प्लान तैयार किया जाएगा।
सेंट्रल यूनिवर्सिटी झारखंड के साथ करार
राज्य आधारित एक्शन प्लान के तहत झारखंड सरकार ने सेंट्रल यूनिवर्सिटी झारखंड के साथ एमओयू किया है, ताकि राज्य के जल संसाधनों का डेटा तैयार किया जा सके। यूनिवर्सिटी विभिन्न विभागों के साथ समन्वय कर इस डेटा को तैयार कर रही है। यूनिवर्सिटी के अध्ययन के अनुसार, झारखंड में जल संरक्षण के लिए बहुत सारे अवसर हैं, क्योंकि राज्य में प्रचुर जल संसाधन मौजूद हैं। हालांकि, जल संरचनाओं के नवीनीकरण और विभिन्न एजेंसियों के बीच तालमेल की आवश्यकता है। राज्य में जल संकट बढ़ने के संकेत हैं जहां जलवायु परिवर्तन के साथ बढ़ती जनसंख्या प्रमुख चुनौती बन रही हैं।