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LBSM College में याद किए गए मुंशी प्रेमचंद, प्राचार्य ने कहा-‘होरी-धनिया’ आज भी प्रासंगिक, समाज को करना होगा आत्मचिंतन

Munshi Premchand remembered in LBSM College, Principal said - 'Hori-Dhaniya' is still relevant today, society will have to introspect...

by Anand Mishra
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Jamshedpur (Jharkhand) : मुंशी प्रेमचंद जैसे महान साहित्यकार सदियों में एक बार जन्म लेते हैं, जिनकी रचनाएँ आज भी समाज का दर्पण बनी हुई हैं। यह बात एलबीएसएम कॉलेज के प्राचार्य प्रो. (डॉ.) अशोक कुमार झा ‘अविचल’ ने मुंशी प्रेमचंद की जयंती के अवसर पर आयोजित एक कार्यक्रम में कही। गुरुवार को कॉलेज के हिंदी विभाग द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में प्रेमचंद के साहित्य और आज के समाज की तुलना पर गहन चिंतन किया गया।

‘होरी-धनिया’ की प्रासंगिकता और बदलते ग्रामीण परिदृश्य

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्राचार्य प्रो. झा ने प्रेमचंद के समय के ग्रामीण समाज और आज के गांव की स्थितियों के बीच का अंतर स्पष्ट किया। उन्होंने मार्मिक लहजे में कहा, “होरी-धनिया क्या करें? गोबर तो शहरी हुआ, छोड़ा अपना गांव!” इन पंक्तियों को विस्तार से समझाते हुए उन्होंने जोर दिया कि आज के समाज में हमें नए होरी, धनिया और गोबर की कथा कहनी होगी। यह दर्शाते हुए कि कैसे ग्रामीण जीवन और उसके संघर्ष आज भी मौजूद हैं, लेकिन उनका स्वरूप बदल गया है।

भूगोल विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. संतोष कुमार ने इस बात पर सहमति व्यक्त की कि यद्यपि तकनीकी स्तर पर समाज ने बहुत विकास किया है, फिर भी समाज की मानसिकता बहुत हद तक पुरानी ही है। उन्होंने कहा कि प्रेमचंद की कहानियां हमारे समाज का सच्चा दर्पण हैं, जिनमें सामाजिक-आर्थिक विषमता का यथार्थ और उससे संघर्ष जीवंत रूप से चित्रित है, जो उन्हें आज भी बेहद प्रासंगिक बनाता है।

प्रेमचंद का साहित्य : समाज का दर्पण और मानवीय संवेदनाओं का उद्गम

वक्ताओं ने प्रेमचंद की रचनाओं के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला। पूजा बास्के ने बताया कि प्रेमचंद ने जो देखा, उसे ही अत्यंत सरल भाषा में अपनी कहानियों में उकेरा। उनकी कहानियां, जैसे ‘ईदगाह’ में पोते की दादी के प्रति संवेदना या ‘सद्गति’ में दुखी का शोषण, जो उसकी जान ले लेता है; पाठक के हृदय को गहराई से झकझोर देती हैं।अर्चना बारला ने रेखांकित किया कि प्रेमचंद ने अपनी लगभग तीन सौ कहानियों और डेढ़ दर्जन उपन्यासों में ग्रामीण जीवन की समस्याओं और स्त्रियों की दुर्दशा को अत्यंत मार्मिकता से दर्शाया है। उनकी रचनाएं इतनी वास्तविक और हृदयस्पर्शी लगती हैं कि पाठक उनमें पूरी तरह डूब जाता है।

नए जनतांत्रिक भारत का वैचारिक शिल्पकार थे मुंशी प्रेमचंद

कार्यक्रम का सफल संचालन कर रहे डॉ. सुधीर कुमार ने मुंशी प्रेमचंद को नए जनतांत्रिक भारत का वैचारिक शिल्पकार बताया। उन्होंने कहा कि प्रेमचंद ने न केवल भावी संकटों की ओर संकेत किया, बल्कि वे हमारे विवेक, न्यायबोध और संवेदना को जागृत करने वाले एक महान लेखक भी हैं। उनके साहित्य का अध्ययन हमें संकुचित और संकीर्ण रूढ़िवादी मानसिकता से स्वतंत्र करता है और हमारी अंतरात्मा को विशाल बनाता है। सामंती, वर्णवादी और वर्चस्ववादी पुरुष मानसिकता के साथ-साथ सांप्रदायिकता, पूंजीवाद और साम्राज्यवाद के विरुद्ध संघर्ष में भी प्रेमचंद का साहित्य आज भी पूरी तरह प्रासंगिक है। यही कारण है कि उनके साहित्य का अध्ययन आज भी अत्यंत आवश्यक है।

इस अवसर पर कॉलेज के कई छात्र-छात्राएं और शिक्षक उपस्थित थे, जिनमें सागर मंडल, अलेख महाकुड़, गांधी बांकिरा, खुशी महतो, वंदनी झा, सुनीता माहली, नैन्सी एक्का, कविता महतो, सुष्मिता कुमारी, पिंकी सरदार, धर्मेन्द्र मुंडा, जमुना सोरेन, दुर्गा गोप, सोमवारी केराई, प्रिया डोडराय, राकेश गोप, विष्णु भक्त सहित अन्य शामिल थे।

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