मंदिर की सीढ़ियां उतर ही रहा था कि पीछे से बुदबुदाहट कानों में पड़ी। कोई भगवान का नाम जपते-जपते पीछे से उतरता हुआ आगे निकला। मेरे बराबर आते ही आवाज स्पष्ट हुई तो चौंक गया। पीछे-पीछे चल दिया। नीचे उतरते ही गुरु को अहसास हो गया कि कोई पीछे लग गया है। बेमन से रुके। इस बार उधर से सवाल का गोला दागा गया। और…। तुम कब से मंदिरों की सीढ़ियां चढ़ने लगे। जवाब दिया, ‘बस यूं ही… कभी-कभार आ जाता हूं। मन शांत हो जाता है।’ गुरु बोले, ‘ठीक है, चलता हूं।’
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बिना कुछ बात किए जाने देने के लिए मन नहीं मान रहा था। किसी तरह चाय के लिए मनाया। पास की एक चाय दुकान के सामने खड़े-खड़े चुस्कियां लेते औपचारिक रूप से बात शुरू करते हुए पूछा, ‘आप क्या रोज मंदिर आते हैं।’ गुरु ने जवाब दिया, ‘हां, लगभग आ ही जाता हूं। कुछ समय भगवान की शरण में भी बिताना चाहिए। कब क्या हो जाए, कौन जाने’।
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बात तो सही थी, लेकिन मन में जरूर कुछ चल रहा है, यह सोचकर पूछा कि क्या कोई बात है। गुरु बोले कि नहीं, कुछ खास नहीं। अब देखो कि इस दुनिया में लोग भी कैसे-कैसे होते हैं। कब किसी की नीयत बदल जाए, कहा नहीं जा सकता। गुरु मुद्दे पर आ रहे थे। मेरे चेहरे पर जिज्ञासा का भाव पढ़ते हुए आगे बढ़े- इस राज्य ने खेल और खिलाड़ी बहुत दिए हैं। कुछ खिलाड़ियों के ‘खिलाड़ी’ भी। ऐसे ही एक बड़े खिलाड़ी का जीवन खेल के लिए समर्पित रहा। खेल के लिए बड़े कारोबारी घराने से मोर्चा तक ले लिया।
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भले ही कुछ मामलों में मानवीय कमजोरियां रही होंगी, लेकिन जुनून के पक्के। एकला चलो की राह पर चलते हुए राजधानी में खेल के बड़े संगठन को खड़ा किया। अंतरराष्ट्रीय स्तर के आयोजन को कारोबारी शहर से राजधानी खींच लाए। सेहत ने साथ नहीं दिया और दुनिया को छोड़ गए, लेकिन नाम का सिक्का आज भी चलता है। अब गुरु पूरे रौ में थे। चाय खत्म हो चुकी थी, लेकिन बातें पीक पर थीं। रोकने का सवाल ही नहीं था, लेकिन मन में एक बड़े सुपरस्टार का नाम उभर रहा था।
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गुरु ने सवाल किया- अब तुम सोच रहे होगे कि मैं बताना क्या चाहता हूं। तो सुनो, इसका दूसरा पहलू। इस खिलाड़ी ने खेल को आगे बढ़ाने के साथ अपने भविष्य के लिए भी कुछ काम किए। शायद प्रशासनिक व संवैधानिक पद आड़े आ रहा होगा। इसलिए अपना नाम खराब नहीं करना चाहा होगा। किसी दूसरे के नाम पर कुछ जायदाद खड़ी ही कर ली तो क्या हो गया। हर किसी को अपने भविष्य की चिंता रहती है। किसे पता था कि वह इतनी जल्दी इस दुनिया से चले जाएंगे। हुआ यह कि जिसके नाम से जायदाद ली, उसकी नीयत खराब हो गई।
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इतना ही नहीं, कैंटीन वगैरह तक चल रहा था। सबकुछ अस्तित्व में है, लेकिन उन सभी पर इस खिलाड़ी के परिवारवाले दावा करें भी तो कैसे। सब नाम का खेला है। जिसकी लाठी, उसकी भैंस वाली बात हो गई है। अनुनय-विनय सब बेकार साबित हो रहे हैं। समय का फेर देखो, इस खिलाड़ी के साथ काम करने वाले भारतीय पुलिस सेवा के बड़े अधिकारी भी अब अपने साथी के परिवार को साथ देने में कन्नी काट रहे हैं। यहां तक तो गनीमत है। ये लोग इस परिवार की भागदौड़ को देख मजे भी ले रहे हैं। क्या कहूं, भगवान सबका भला करे।
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