Jamshedpur News : एमजीएम अस्पताल की अव्यवस्था और लापरवाही ने एक गरीब की जान ले ली। पोटका के कलिकापुर पोचापाड़ा निवासी वरुण भगत को कुत्ते के काटने के बाद हालत बिगड़ने पर मंगलवार को एमजीएम अस्पताल लाया गया था। लेकिन अस्पताल में न तो समय पर इलाज मिला और न ही बेड। चार घंटे तक फर्श पर तड़पने के बाद उसकी मौत हो गई।
परिजनों का कहना है कि वरुण भगत को 15 दिन पहले कुत्ते ने काटा था और इलाज भी चल रहा था। मंगलवार दोपहर करीब 1 बजे जब उसकी तबीयत ज्यादा बिगड़ गई, तो उसे एमजीएम अस्पताल लाया गया। डॉक्टरों ने जांच के बाद उसे रांची के रिम्स रेफर कर दिया, लेकिन एंबुलेंस उपलब्ध नहीं थी। परिजनों ने करीब 3:30 बजे 108 एंबुलेंस सेवा को कॉल किया, लेकिन जवाब मिला कि ‘एंबुलेंस लाइन में है’।
अस्पताल में न मिला बेड, न इलाज
परिजनों ने बताया कि वरुण घंटों अस्पताल के फर्श पर पड़ा रहा। उसे एक इंजेक्शन तो दिया गया, लेकिन कोई समुचित इलाज नहीं मिला। डॉक्टरों ने कोई ध्यान नहीं दिया। न ही कोई वार्डबॉय मदद को आया और न ही कोई स्टाफ मरीज की हालत देखने पहुंचा। एंबुलेंस के इंतज़ार में ही उसकी हालत और बिगड़ती गई और उसने तड़प-तड़प कर दम तोड़ दिया।
सरकारी दावों की खुली पोल
राज्य सरकार दावा करती है कि एमजीएम अस्पताल को आधुनिक सुविधाओं से लैस किया गया है, लेकिन जमीनी सच्चाई कुछ और ही है। वरुण भगत की मौत ने सरकार और प्रशासन की तैयारियों की पोल खोल दी है। यह सिर्फ एक व्यक्ति की मौत नहीं, बल्कि झारखंड की स्वास्थ्य व्यवस्था की असलियत को उजागर करने वाला दर्दनाक उदाहरण है। अब सवाल यह है कि जब एक आम नागरिक को अस्पताल में बेड, इलाज और एंबुलेंस जैसी बुनियादी सेवाएं नहीं मिल पा रही हैं, तो सरकारी योजनाएं आखिर किसके लिए हैं।