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झामुमो का चाईबासा में सरना धर्म कोड को लेकर बड़ा प्रदर्शन, राष्ट्रपति के नाम सौंपा ज्ञापन

मंत्री दीपक बिरुआ बोले: “जिस तरह झारखंड लड़ कर बना, उसी तरह सरना धर्म कोड भी लड़ कर लेंगे”

by Anurag Ranjan
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चाईबासा : आदिवासियों के लिए अलग सरना धर्म कोड की मांग को लेकर झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) ने मंगलवार को चाईबासा में जोरदार धरना प्रदर्शन किया। प्रदर्शन के बाद झामुमो नेताओं ने राष्ट्रपति के नाम एक ज्ञापन उपायुक्त को सौंपा।

धरना को संबोधित करते हुए झारखंड सरकार के मंत्री दीपक बिरुआ ने केंद्र सरकार पर निशाना साधा और कहा कि जिन समुदायों की आबादी कम है, उन्हें भी अलग धर्म कोड मिला है, लेकिन आदिवासियों की बड़ी जनसंख्या के बावजूद अब तक सरना धर्म कोड नहीं दिया गया है। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर केंद्र सरकार जल्द कदम नहीं उठाती है, तो झामुमो सड़क से लेकर संसद तक आंदोलन करेगा।

“जिस तरह झारखंड को लड़ कर लिया गया था, उसी तरह सरना धर्म कोड भी लड़ कर हासिल किया जाएगा,” – दीपक बिरुआ

मंत्री ने बताया कि झारखंड विधानसभा से सरना धर्म कोड की अनुशंसा केंद्र को भेजी जा चुकी है, अब केंद्र और राष्ट्रपति को इस पर फैसला लेना है। जब तक यह मांग पूरी नहीं होती, आंदोलन जारी रहेगा।

सांसद जोबा मांझी ने भी केंद्र सरकार से मांग की कि सरना धर्म कोड के मुद्दे पर लोकसभा का विशेष सत्र बुलाया जाए और इसे सदन से पारित किया जाए। उन्होंने कहा कि यह आदिवासियों की अस्मिता, भाषा और संस्कृति की रक्षा का सवाल है।

मनोहरपुर विधायक जगत माझी ने कहा कि अगर सरकार आदिवासियों को उनकी धार्मिक पहचान नहीं देती, तो आंदोलन और तेज किया जाएगा।

कार्यक्रम की अध्यक्षता झामुमो जिला अध्यक्ष सोनाराम देवगम ने की और संचालन जिला सचिव राहुल आदित्य ने किया। कार्यक्रम के अंत में राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन उपायुक्त को सौंपा गया।

इस मौके पर बड़ी संख्या में झामुमो कार्यकर्ता उपस्थित रहे, जिनमें प्रमुख रूप से बुधराम लागुरी, सन्नी उरांव, इक़बाल अहमद, निसार हुसैन, विश्वनाथ बाड़ा, बंधना उरांव, बामिया माझी, मंगल तुबिद, सतीश सुंडी, तूराम बिरुली, राहुल तिवारी, सुभाष बनर्जी, रंजीत यादव और रामलाल मुंडा शामिल थे।

क्या है सरना धर्म कोड?

सरना धर्म कोड की मांग उन आदिवासी समुदायों द्वारा की जा रही है जो प्रकृति पूजा में विश्वास रखते हैं और खुद को हिंदू, ईसाई या किसी अन्य धर्म से अलग मानते हैं। जनगणना में इन्हें एक अलग धार्मिक पहचान देने की मांग लंबे समय से की जा रही है।

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