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MGM Hospital Incident : मंत्री जी! एमजीएम अस्पताल में अभी इससे भी बड़े हादसे का इंतजार है…?

by Anand Mishra
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Jamshedpur (Jharkhand) : झारखंड के जमशेदपुर में स्थित महात्मा गांधी मेमोरियल अस्पताल (MGM Hospital) पूरे कोल्हान प्रमंडल में सबसे बड़ा अस्पताल है। काफी पुराने और खस्ताहाल हो चुके इस अस्पताल में पिछले कुछ वर्षों के दौरान भवन के छज्जे गिरने की घटनाएं प्रकाश में आती रही हैं। लेकिन, पिछले शनिवार को मेडिसिन बिल्डिंग के कॉरिडोर की छत गिरने से तीन मौत और 12 मरीजों के घायल होने की घटना से पूरे शहर ही नहीं बल्कि सियासत तक को हिला दिया है।

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के निर्देश पर राज्य के स्वास्थ्य मंत्री डॉ. इरफान अंसारी देर रात यहां पहुंचे। घटनास्थल का जायजा लिया। इस दौरान जिला प्रशासन व अस्पताल के अधिकारियों से घटना की जानकारी ली। फिर संवेदना व्यक्त करते हुए मृतकों के आश्रितों के लिए पांच-पांच लाख और घायलों के लिए 50-50 हजार रुपये मुआवजा औऱ दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की घोषणा कर लौट गये। कुल मिलाकर इतना करने के बाद उन्होंने अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली। लेकिन इतनी बड़ी घटना के बाद अस्पताल में भर्ती मरीजों को रखने की व्यवस्था, उस भवन की हालत पर भी उनका ध्यान गया?

स्वास्थ्य मंत्री डॉ. अंसारी सिर्फ अपने नाम के आगे यूं ही डॉक्टर की उपाधि नहीं लगाते, बल्कि वे डॉक्टर भी हैं। इस नाते भी मरीजों के प्रति उनकी संवेदना झलकनी चाहिए। दरअसल, जिस भवन का एक हिस्सा भरभरा कर ध्वस्त हो गया, उस भवन की हालत को देखते ही कलेजा कांप जाता है। बावजूद, पहले ही तल्ले को देखें, तो कॉरिडोर (बरामदा) में लगे बेडों पर मरीज भरे पड़े हैं। इस तल्ले की भी हालत वही है।

सीढ़ी से पहले तल्ले पर पहुंचते ही बायीं तरफ करीब छह-सात इंच लंबा और लगभग पांच इंच चौड़ा छेद (होल) है। जी हां, छेद, जिससे निचले तल्ले (ग्राउंड फ्लोर) की फर्श दिखती है। उसी के ठीक ऊपर छत बीम लटकी हुई है। इतना ही नहीं, वहीं ठीक ऊपर कोने में भी एक होल है, जहां से ऊपरी तल्ला दिखाई देता है। वहीं से कुछ दूरी पर इस तल्ले के बरामदे में लाइन से बेड लगे हुए हैं। सभी बेड मरीजों से भरे हुए हैं। इस पूरे भवन को धूम कर देख लिया जाये, तो वहां खड़ा रहने की हिम्मत नहीं होगी। बावजूद मरीज इलाज के लिए पड़े हुए हैं। वह इसलिए कि किसी बड़े प्राइवेट अस्पताल में इलाज कराने की उनकी हैसियत नहीं है अथवा कोई अन्य बाध्यता भी हो सकती है।

मंत्री जी भी उसी सीढ़ी औऱ कॉरिडोर से होते हुए घटनास्थल को देखने गए होंगे। यदि नहीं गये, तो जाना चाहिए था, तब शायद भवन के उस हिस्से पर उनकी नजर पड़ती, जिसकी बानगी इस रिपोर्ट में प्रस्तुत की गई है। इन सबको देखते हुए इस भवन को खाली कराने की दिशा में ठोस निर्णय लिया जाना चाहिए था। इन सबके बावजूद सर्वथा-सर्वदा की तरह मुआवजा, जांच व कार्रवाई की घोषणा मात्र रही। अब सवाल है कि क्या अभी इससे भी भयावह मंजर बाकी है?

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