तिरुवनंतपुरम: पोर्नोग्राफी देखने को लेकर दर्ज मामले की सुनवाई करते हुए केरल हाई कोर्ट ने कहा कि अकेले में पॉर्न देखना निजी पसंद की बात है और कानून के तहत इसे अपराध नहीं माना जाना चाहिए। इसके साथ ही न्यायमूर्ति पी. वी. कुन्हिकृष्णन ने धारा 292 के तहत 33 वर्षीय व्यक्ति के खिलाफ दर्ज मामले को रद्द कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि किसी भी व्यक्ति की निजता पर हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए। अगर कोई शख्स अकेले में पॉर्न देखता है तो इसमें कुछ गलत नहीं है। अकेले अश्लील तस्वीरें या वीडियो देखना कानून के तहत अपराध नहीं है। यह किसी व्यक्ति की निजी पसंद की बात है। इस तरह के कृत्य को अपराध घोषित करना किसी व्यक्ति की निजता में दखल और उसकी निजी पसंद में हस्तक्षेप होगा।
जानिए कोर्ट ने और क्या टिप्पणी की:
हाई कोर्ट ने कहा, ‘अदालत यह घोषित नहीं कर सकती कि यह अपराध की श्रेणी में आता है। इसका केवल एक कारण है कि यह उसकी निजी पसंद है और इसमें हस्तक्षेप करना उसकी निजता में दखल देने के समान है। इसके साथ ही न्यायमूर्ति पी वी कुन्हीकृष्णन ने 33 वर्षीय व्यक्ति के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 292 के तहत अश्लीलता के एक मामले को रद्द कर दिया।
माता-पिता को भी हिदायत
जज ने पॉर्न वीडियो को लेकर माता-पिता को हिदायत दी है। वे इसके बारे में माता-पिता को यह संदेश देते हैं कि नाबालिग बच्चे के लिए अश्लील वीडियो का देखना नकरात्मक प्रभाव डाल सकता है। जज ने यह भी कहा कि मोबाइल फोन देने से पहले पैरेंट्स को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वह उनके बच्चे के लिए सुरक्षित और उपयोगी साबित हो। साथ ही, फुटबॉल और क्रिकेट जैसे खेलों को प्रोत्साहित करने से बच्चे का शारीरिक और मानसिक विकास भी होता है, जो उनके लिए बेहद महत्वपूर्ण होता है।
क्या था पूरा मामला?
दरअसल एक शख्स को पुलिस ने सड़क पर अपने मोबाइल फोन पर अश्लील वीडियो देखने के आरोप में गिरफ्तार किया था। इसके बाद आरोपी के खिलाफ आईपीसी की धारा 292 के तहत मामला दर्ज किया गया था। जस्टिस पीवी कुन्हिकृष्णन ने आरोपी के खिलाफ दर्ज मामले को रद्द करते हुए कहा कि इस मामले को अपराध घोषित नहीं किया जा सकता क्योंकि यह किसी व्यक्ति की निजी पसंद है जिसमें दखलअंदाजी करना उचित नहीं है।
सदियों से चलन में पोर्नोग्राफी
केरल हाईकोर्ट ने कहा कि अकेले में पोर्न देखना अपने आप में दंडनीय अपराध नहीं है, लेकिन नाबालिग बच्चों को अपने मोबाइल फोन के जरिए इंटरनेट तक बेरोक-टोक पहुँच की अनुमति देने में बड़े नुकसान हैं। कोर्ट ने कहा, “इस मामले से अलग होने से पहले, मुझे हमारे देश में नाबालिग बच्चों के माता-पिता को याद दिलाना चाहिए। पोर्नोग्राफी देखना अपराध नहीं हो सकता है, लेकिन अगर नाबालिग बच्चे पोर्न वीडियो देखना शुरू कर देंगे, जो अब सभी मोबाइल फोन पर उपलब्ध हैं तो इसके दूरगामी परिणाम भुगतने होंगे।“ उन्होंने यह भी कहा कि पोर्नोग्राफी सदियों से चलन में है और नए डिजिटल युग में यह और भी अधिक सुलभ हो गया है।