कुर्सी पर रखा रुमाल
अब तक हम यही जानते थे कि ट्रेन या बस में लोग रुमाल रखकर कहीं टहल आते थे, लेकिन राजनीति में भी किसी सीट या कुर्सी पर रुमाल रखा जाता है, अब पता चल रहा है। अपने सूबे में इस बात की जोरों से चर्चा हो रही है कि कोल्हान की दो सीटों पर रुमाल ही रखा गया था, जिस पर असली दावेदार बैठने वाला है। अब असली दावेदार कब बैठेगा, यह कहना मुश्किल है। छह माह या एक वर्ष भी लग सकते हैं।
आपको बता दें कि जिसकी चर्चा हो रही है, उसमें दोनों सीट अपने सगे के लिए रखी गई है। एक में आधा दर्जन बार विस की यात्रा कर चुके बैठे हैं, तो दूसरी कुर्सी पर आधा दर्जन बार यात्रा करने वाले वेटिंग लिस्ट में हैं। यह चर्चा एक सप्ताह से ज्यादा जोर पकड़ी है। हर हाल में घी थाली में गिरेगा।
गुड समरिटान बनी खाकी
आमतौर पर खाकी वर्दी धारी ही संकट के समय मदद करते रहते है, इसमें कोई नई बात नहीं है। लेकिन, हाल ही में एक ऐसी घटना हुई, जिसमें खाकी एक घंटे में कौन कहे, आधे घंटे में ही घायल को लेकर अस्पताल पहुंच गई। यही नहीं, इलाज कराकर उसे वहीं छोड़ दिया, जहां वह घायल हुआ था। अब इस मामले में उच्चस्तरीय जांच की मांग की जा रही है कि आखिर व्यक्ति सड़क दुर्घटना में कैसे घायल हुआ। शुरू में घायल ने बताया था कि उसका सिर डंडे से फूट गया। उसके सिर से खून भी काफी बह रहा था। इलाज कराने के बाद जब वह लौटा, तो उसने बताया कि वह खुद ही सड़क पर गिर गया था। गौर करने वाली बात है कि वह बाइक सवार हेलमेट नहीं पहना था, इसलिए सिर तो फूटना स्वाभाविक था, चाहे जैसे फूटे। डंडे की चोट से या गिरकर।
फल-फूल पर संकट
कोल्हान सहित पूरे झारखंड में फल-फूल पर संकट के बादल हैं। पहले कहा जा रहा था कि पिछले चुनाव में दोनों चिह्न ने अलग होकर लड़ा था, इसलिए उनका बंटाधार हुआ। यही सोचकर इस बार दोनों ने साथ मिलकर चुनाव लड़ा, लेकिन हश्र पिछली बार जैसा ही या कहें, उससे भी बुरा हो गया। इसके साथ ही उन नेताओं पर भी संकट के बादल मंडरा रहे हैं, जिन्होंने चुनाव जिताने के लिए पगड़ी पहनी थी। अब ढूंढने से भी दिखाई नहीं दे रहे हैं। कोल्हान में तो एक-दो की इज्जत बच गई, लेकिन यहां भी पगड़ी पहनने वाले नेता झेंपते नजर आ रहे हैं। लोकल नेता पर तो चुनाव प्रचार के समय से लेकर अब तक बगावत का झंडा बुलंद करने वाले हाथ-पैर धोकर पीछे पड़े हैं। पहले बड़े नेता की सभा में खाली कुर्सी पर पहलवान टाइप नेता को घेरा गया, अब पक्षपात पर सवाल है।
कहां हैं, कुमारजी
अपने शहर में एक तेजतर्रार और दर्जनों उपाधि लेकर चुनाव लड़ने वाले कुमारजी के बारे में पूछा जा रहा है कि अब वे कहां हैं। पहले भी यहां नहीं रहते थे, लेकिन पहले कोई यह बात नहीं पूछता था, क्योंकि चुनाव से एक माह पहले वे छुट्टी लेकर अपने घर आ गए थे। न केवल खूंटा गाड़कर यहां रहे, बल्कि धुआंधार जुबान खर्च किया। उनकी तेज जुबान के आगे कोई नहीं टिक पा रहा था, इससे लगने लगा था कि जुबानी खर्च में तो उनका कोई सानी नहीं है। दूसरे नंबर पर रहे, इसलिए इज्जत वाली हार लेकर चुनावी घर से निकले। उम्मीद की जा रही थी कि वे अब अपना घर छोड़कर यहां से नहीं जाएंगे। अगले पांच साल तक फील्डिंग करते रहेंगे, लेकिन हुआ वही, जो होना था। कुमारजी एक बार फिर भटकने के लिए निकल गए हैं। हालांकि, ऐसा पहली बार नहीं हुआ है।