Daltonganj: डाल्टनगंज स्थित केंद्रीय कारा से 23 विचाराधीन कैदियों (Under Trial Prisoners- UTPs) को रिहाई मिली है। यह रिहाई 15 जुलाई को हुई अंडर ट्रायल रिव्यू कमेटी (Under Trial Review Committee) की बैठक में दी गई सिफारिशों के आधार पर की गई है। यह जानकारी पलामू जिला विधिक सेवा प्राधिकार (Palamu District Legal Services Authority- DLSA) के सचिव राकेश रंजन ने दी। उन्होंने बताया कि कमेटी के समक्ष 24 मामलों पर विचार हुआ था, जिनमें से एक मामला अभी लंबित है।
केंद्रीय जेल में 34% हैं विचाराधीन कैदी
राकेश रंजन ने बताया, “डाल्टनगंज में स्थित केंद्रीय जेल में औसतन 34% कैदी विचाराधीन होते हैं।” उन्होंने कहा कि यहां कैदियों की संख्या घटती-बढ़ती रहती है और अधिकतर मामूली अपराधों में जेल में आते हैं, जिनमें कई अपराध compoundable होते हैं।
कमेटी के पास 16 श्रेणियों के अंतर्गत होती है सुनवाई
अंडर ट्रायल रिव्यू कमेटी 16 अलग-अलग श्रेणियों के अंतर्गत विचाराधीन कैदियों के मामलों पर विचार करती है। इस कमेटी में प्रमुख जिला एवं सत्र न्यायाधीश, उपायुक्त (DC), पुलिस अधीक्षक (SP), जेल अधीक्षक और DLSA सचिव शामिल होते हैं।
BNSS की धारा 479 के प्रावधान और सीमाएं
राकेश रंजन ने कहा, “भारतीय न्याय संहिता (BNSS) की धारा 479 में स्पष्ट प्रावधान है कि जिन मामलों में मृत्यु या आजीवन कारावास की सजा निर्धारित है, वे इस समिति के दायरे में नहीं आते।”
उन्होंने बताया कि धारा 479 के अनुसार, “यदि किसी विचाराधीन कैदी ने उस अपराध की निर्धारित अधिकतम सजा की आधी अवधि तक जेल में बिताई है, तो उसे कोर्ट द्वारा जमानत पर रिहा किया जा सकता है।” उन्होंने स्पष्ट किया कि यह जमानत है, न कि बरी किया जाना। कानूनी प्रक्रिया तब तक जारी रहेगी जब तक उसका न्यायिक निष्कर्ष नहीं आ जाता।
पहली बार अपराध करने वालों को राहत की अधिक संभावना
DLSA सचिव ने कहा कि जो कैदी पहली बार अपराध कर रहे हैं और उनके अपराध में मृत्युदंड या आजीवन कारावास की सजा निर्धारित नहीं है, उन्हें कमेटी द्वारा सिफारिश किए जाने पर जमानत मिलने की संभावना अधिक होती है।
जमानत से भागना न्यायालय की अवमानना
राकेश रंजन ने चेतावनी देते हुए कहा कि “जमानत पर रिहा होने के बाद कई बार व्यक्ति कोर्ट में उपस्थित नहीं होते, जो कि न्यायालय की अवमानना है। ऐसे में कोर्ट स्थायी गिरफ्तारी वारंट (लाल वारंट) जारी करता है। यह एक सख्त कानूनी कार्रवाई है जिससे आरोपी को सबक सिखाया जाता है।” उन्होंने माना कि छोटे-मोटे अपराधों के कारण जेल में भीड़ बढ़ती है और ऐसी स्थितियों में रिव्यू कमेटी की सिफारिशें जेलों के भीड़भाड़ को कम करने में मददगार होती हैं।
न्याय तक पहुंच आसान, लेकिन शर्तों के साथ
पालामू DLSA के सचिव राकेश रंजन ने साफ किया कि अंडर ट्रायल रिव्यू कमेटी की सिफारिशें जेलों के बोझ को कम करने, विचाराधीन कैदियों को न्याय तक पहुंचाने, और कानून के भय को बनाए रखने की एक संतुलित प्रक्रिया है। लेकिन कोर्ट की शर्तों का पालन नहीं करना गंभीर परिणाम ला सकता है।