गोरखपुर/Kavya Gosti : सांस्कृतिक, साहित्यिक व सामाजिक संस्था ‘संगम’ की 308वीं मासिक काव्य गोष्ठी शनिवार को रेलवे स्टेशन स्थित शिवम गेस्ट हाउस के सभागार में हुई, जहां कवियों-कवयित्रियों ने फाग की बयार से सबको मदमस्त कर दिया। मुख्य अतिथि सुभाष चंद्र यादव की उपस्थिति व नर्वदेश्वर सिंह की अध्यक्षता में गोष्ठी का आरंभ प्रीति मिश्रा ने मां वीणापाणि की वंदना से की।
गोष्ठी की पहली फुहार विनोद निर्भय ने ‘तपस्वी की तरह लंका कभी वन में बिताती है, सवालों में घिरी रहती वही सीता कहाती है…’ शानदार ग़ज़ल पढी। भीम प्रसाद प्रजापति ने ‘सब कर पानी राखत राखत आपन पानी सूखि गईल..’ पढकर करारा व्यंग्य किया। केशव पाठक ‘सृजन’ ने ‘वो मुझे मैं उसे प्यारा होता काश वो चाँद हमारा होता…’ पढकर मंत्रमुग्ध कर दिया.
प्रतिभा गुप्ता ने ‘गुझिया का मीठापन उतरे सबके मन के अंतस तक फगुआ के फागों में लिपटे रंगों की बौछार मिले…’ पढकर माहौल को रंगत प्रदान की। डॉ. प्रीति त्रिपाठी ने बासंती ऋतु और शीतल बयार पुरवा का झोंका… और प्रेम की फुहार… पढकर माहौल को खुशनुमा बना दिया। रामसमुझ सांवरा ने ‘दुई पुड़िया रंग घोरलं एक बल्टी पानी फगुनवा में देवरु करें छेड़खानी…’ पढकर समां बांध दिया। कमलेश मिश्रा ने ‘उस पार ले चलो फिर मझधार में न छोड़ो नईया तेरे सहारे साहिल के ओर मोड़ो… खूबसूरत अंदाज़ में पढ़ी।
सुभाष चंद्र यादव ने पढा ‘कभी वो दिन नहीं होते कभी रातें नहीं होती बहुत हम बात करते हैं मगर बाते नहीं होती…’ डॉ.अजय अनजान ने ‘जब मिल जाए मन से मन तो मानो बसंत आ गया…’ प्रीति मिश्रा ने ‘होली के हमजोली निकले लेकर रंग गुलाल… अजय यादव ने ‘रंग अबीर गुलाल ले आवे माने एक ना बतिया ना खेलब तोहसे होली सुनs हो रंग रसिया…’ साधना सिंह ने ‘मन का मलाल घुला प्रेम में गुलाल घुला…’ एकता उपाध्याय ने ‘नैनो को भाये सजनी तेरा रूप बड़ा ही अनूप…’ सूरज राम आदित्य ने ‘मैं जिसको जान समझा था उसी ने जान ले ली है…’ दिनेश गोरखपुरी ने ‘मैं मद का प्याला पी बैठा…’ राघवेंद्र मिश्र ने ‘होली में बस अपना गाँव यादआता है…’ सुरेन्द्र जयसवाल मोड़ आदि कवियों ने माहौल को रंगत प्रदान कर खुशनुमा बना दिया।
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