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‘जब तक उंगलियां चलती रहेंगी, मैं लिखता रहूंगा, पढ़ता रहूंगा’ : मृत्युंजय कुमार सिंह

मृत्युंजय कुमार सिंह ने अपने जीवन में किताबों की अहमियत पर काफी कुछ बताया। उन्होंने किताबों को भगवन बिरसा के बराबर पूजनीय दर्जा दिया है। छिपकर किताबें पढ़ने से लेकर मरते दम तक किताबों का साथ रखने तक, जानें किताबों की कहानी मृत्युंजय की जुबानी।

by Priya Shandilya
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‘जब तक मस्तिष्क चलता रहेगा, उंगलियां चलती रहेंगी, मैं लिखता रहूंगा, पढ़ता रहूंगा’

सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी मृत्युंजय कुमार सिंह के इन शब्दों का अर्थ महज शब्दों तक सीमित नहीं है। गहराई से सोचें तो एहसास होगा कि उनके लिए किताबें, साहित्य उनके जीवन का अभिन्न अंग है।

‘छाप’ इनॉगरल लिटरेचर फेस्टिवल सराईकेला-खरसावां और साहित्य कला फाउंडेशन के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित इस कार्यक्रम में देशभर के जाने माने साहित्यकार, आलोचक और वक्ता शामिल हुए। इस दौरान मृत्युंजय कुमार सिंह ने अपने जीवन में किताबों की अहमियत पर काफी कुछ बताया। उन्होंने किताबों को भगवन बिरसा के बराबर पूजनीय दर्जा दिया है। छिपकर किताबें पढ़ने से लेकर मरते दम तक किताबों का साथ रखने तक, जानें किताबों की कहानी मृत्युंजय की जुबानी।

उन्होंने झारखंड से अपने जुड़ाव से शुरुआत करते हुए कहा, “मैं हजारीबाग के कोलंबस कॉलेज का पढ़ा हूं इसलिए इस जमीन, इस मिट्टी से ताल्लुक बहुत गहरा है। मैं गांव का पला बढ़ा आदमी हूं, मेरे पिता को लगता था कि किताबें भ्रष्ट करती हैं, तो हमलोग छिपकर उपन्यास और किताब पढ़ा करते थे। मां हमारी बिलकुल ही अनपढ़ थीं तो उन्हें आभास ही नहीं था कि हम कर क्या रहे हैं।”

आगे मृत्युंजय ने किताबों के योगदान पर चर्चा की जिसमें उन्होंने कहा, “किताबें पढ़ने का मतलब धीरे धीरे पता चला। भाषा एक ऐसी चीज होती है, जो हिंसक नहीं होती, उदारचेता होती है, सिखाती है इतिहास से लेकर तमाम चीजें। हमने जब भाषाओं के बीच संवाद करना सीखा, जैसे मैं भोजपुरी, अंग्रेजी पढ़ता हूं, भाषा इंडोनेशिया पढ़ता हूं, हिंदी में भी लिखता पढ़ता हूं, भाषाओं के बीच जो संवाद होती है, उससे पता चलता है कैसे हमारी सभ्यताएं कैसे, कहां से, किस तरह से विकसित होती रही हैं। और तमाम चीजें हमें सिखने को तो मिलती है, पर उसके साथ-साथ हमारा चरित्र निर्माण भी होता है। कई बार ऐसे पात्रों से कविताओं में, ऐसे दृश्य से हमारी मुलाकात होती है, जहां हमारा अचानक से चरित्र ही बदल जाता है, लगता है जैसे- हमें तो ऐसा ही होना था, मैं भी ऐसा ही सोचता हूं, लेकिन ऐसा हो तो नहीं रहा है क्योंकि सामने की दुनिया बहुत छोटी होती है , जिसे हम अपने नाक के तले देख रहे हैं। पर दुनिया के बाहर कितनी चीजें हो रही है, आज आप नहीं समझेंगे। आज तो उदारीकरण का जमाना है, तो आप हर जगह बड़े आराम से जुड़ जाते हैं। “

“तो मेरे लिए सच पूछिए तो भगवान बिरसा का जो बिरसाइत था, वो एक तरह से धर्म था, एक तरह से सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, हर समझ को समझने का तरीका था, वही किताबें मेरे लिए रही हैं, साहित्य मेरे लिए रहा है, और आगे भी मेरा ख्याल है जब तक मस्तिष्क चलता रहेगा, उंगलियां चलती रहेंगी, मैं लिखता रहूंगा, पढ़ता रहूंगा। धन्यवाद।”

मृत्युंजय कुमार सिंह का परिचय

पश्चिम बंगाल कैडर के सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी मृत्युंजय कुमार सिंह का साहित्य और कला से गहरा रिश्ता है। बिहार में जन्मे, उन्होंने अपनी स्नातक की पढ़ाई झारखंड के हजारीबाग से पूरी की है। उनके भोजपुरी उपन्यास ‘गंगा रतन बिदेशी’ और उसके हिंदी अनुवाद को काफी प्रशंसा मिली थी। भोजपुरी के पहले कहानी कहने वाले मोबाइल ऐप यायावरी वाया भोजपुरी पर आधारित इस उपन्यास के ऑडियोबुक को काफी पसंद किया गया है। उनके हालिया काव्य संग्रह ‘द्रौपदी’ की देशभर में सराहना हुई है।

दो दिवसीय इवेंट का उद्देश्य

‘छाप’ इनॉगरल लिटरेचर फेस्टिवल सराईकेला-खरसावां और साहित्य कला फाउंडेशन के संयुक्त तत्वावधान में ऑटो क्लस्टर, आदित्यपुर के सभागार में आयोजित किया गया है। यह दो दिवसीय बुकफेस्ट राज्य के युवाओं को साहित्य, कला और संस्कृति से जोड़ने का एक अनूठा प्रयास है। 18 और 19 अक्टूबर 2024 को आयोजित इस बुकफेस्ट का उद्देश्य कला, संस्कृति और किताबों के जरिए समाज के सभी वर्गों को लोकतंत्र में अपनी जिम्मेदारी निभाने के लिए जागरूक करना है। ‘छाप’ में झारखंड सहित देशभर के प्रतिष्ठित लेखक, साहित्यकार, और कलाकार शामिल होंगे, जो हिंदी, भोजपुरी, मैथिली, बांग्ला, ओड़िया और संथाली भाषाओं में अपनी पुस्तकों और विचारों को प्रस्तुत करेंगे।

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