सेंट्रल डेस्कः कर्नाटक विधानसभा में जनता दल (सेक्युलर) के विधायक एमटी कृष्णप्पा का एक बयान विवाद का कारण बन गया और राज्य सरकार की वित्तीय नीतियों पर गरमागरम बहस छिड़ गई। सत्र के दौरान, कृष्णप्पा ने सुझाव दिया कि कांग्रेस-शासित सरकार को महिलाओं को हर महीने 2,000 रुपये देने के अपने चल रहे कल्याणकारी कार्यक्रम के तहत पुरुषों को हर सप्ताह दो मुफ्त शराब की बोतलें वितरित करनी चाहिए।
हर सप्ताह दो बोतल, इसमें गलत क्या है….
उन्होंने कहा, “आप महिलाओं को हर महीने 2,000 रुपये दे रहे हैं, मुफ्त बिजली और मुफ्त बस यात्रा दे रहे हैं। यह हमारी ही रकम है। तो जो लोग शराब पीते हैं, उन्हें हर सप्ताह दो बोतल शराब मुफ्त दीजिए। उन्हें पीने दीजिए। हम पुरुषों को हर महीने पैसे क्यों देंगे? इसके बजाय, उन्हें कुछ दीजिए, हर सप्ताह दो बोतल। इसमें क्या गलत है? सरकार इसे सोसाइटी के माध्यम से प्रदान कर सकती है।”
चुनाव जीतो, सरकार बनाओ और फिर ये करो
उन्होंने मुख्यमंत्री सिद्धारमैया द्वारा हाल ही में शराब से मिलने वाली राजस्व लक्ष्य को 36,500 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 40,000 करोड़ रुपये करने के संदर्भ में यह टिप्पणी की। उनकी यह टिप्पणी कांग्रेस नेताओं से कड़ी प्रतिक्रिया का कारण बनी। ऊर्जा मंत्री केजे जॉर्ज ने इस प्रस्ताव को खारिज करते हुए कहा, आप चुनाव जीतिए, सरकार बनाइए और ये काम कीजिए। हम तो लोगों को शराब कम पीने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। विधानसभा अध्यक्ष यूटी ख़ादिर ने भी इस विचार का विरोध करते हुए कहा, बिना दो बोतल दिए ही हम संघर्ष कर रहे हैं। अगर हम उन्हें शराब मुफ्त देंगे तो क्या होगा?
महिला विधायकों ने किया तीव्र विरोध
कृष्णप्पा ने आगे दावा किया कि कई विधायक खुद शराब का सेवन करते हैं और उन्होंने एक पूर्व विधायक के शराब पीने की आदतों पर टिप्पणी की। उनकी यह टिप्पणियाँ विशेष रूप से महिला विधायकों से तीव्र विरोध का कारण बनीं, जिन्होंने उन्हें उन महिला विधायकों की उपेक्षा करने के लिए आलोचना की, जो शराब नहीं पीतीं।
यह बहस कर्नाटक की वित्तीय नीतियों पर चल रही चर्चा को रेखांकित करती है, जिसमें कांग्रेस सरकार के तहत चलाए जा रहे बड़े कल्याणकारी कार्यक्रमों को लेकर पक्ष और विपक्ष के बीच विवाद बढ़ता जा रहा है। जहां मुफ्त बस यात्रा और महिलाओं को नकद सहायता जैसे कार्यक्रमों को सामाजिक कल्याण के कदम के रूप में देखा जा रहा है, वहीं विपक्ष और आलोचक इसे वित्तीय बोझ मानते हैं।